मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

बाडमेर का अनोखा राजहंस जैन मन्दिर

भूरचन्द जैन, बाडमेर

पश्चिमी राजस्थान प्रदेश का सीमावर्त्ती, रेगिस्तानी बाडमेर जिला सदियों से प्राकृतिक विपदा अकाल से प्रभावित रहा है । यह अन्तर्राष्ट्रीय सीमावर्त्ती जिला होने और सन् १९६५ एवं १९७१ के भारत-पाक युद्वों के समय और अब इसके भूगर्भ से बडी मात्रा में पेट्रोल, कोयला, जिप्सम आदि खनिज पदार्थ निकलने के कारण आर्थिक जगत में अपनी अनूठी पहचान विश्व स्तर पर बना ली है । वहां इस जिले का जैन धर्मावलम्बिलयों का जैन तीर्थ नाकोडा, वैष्णवों का खेड रणछोडराय, आसोतरा का ब्रह्मा मन्दिर तीर्थ धाम के रूप में भारत में ही नहीं विश्व में अपनी अनोखी धार्मिक पहचान बनाये हुए हैं । इसी धार्मिक तीर्थ श्रृंखला में जैन धर्मावलम्बियों का अनोखा, अद्भूत,आकर्षक नवनिर्मित श्री मुनिसुव्रत स्वामी का राजहंस जैन मन्दिर अपनी धार्मिक, कला, संस्कृति के साथ शिक्षा, सेवा और संस्कार के रूप में अपनी अद्वितीय पहचान बन जावेगा । ऐसे विशाल जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा १३ फरवरी २०१३ को जैन धर्म के खरतरगच्छ के उपाध्याय श्री मणिप्रभ सागरजी की पावन निश्रा एवं साध्वी बहन डॉ. विद्युत्प्रभा श्रीजी की प्रेरणा से नव दिवसीय भव्यातिभव्य समारोह के बीच कई साधु साध्विय की उपस्थिति में सम्पन्न होने जा रही हैं। जिसमें देश भर के हजारों हजार लोग सम्मलित होने का सौभाग्य प्राप्त करेंगे । बाडमेर की धर्म धरा पर राष्ट्रीय राजमार्ग १५ पर नगर से पांच किलोमीटर दूर बाडमेर अहमदाबाद सडक मार्ग पर चौहटन के भूमिदाता श्री आसूलाल डोसी द्वारा १३८ बीधा एवं बाडमेर के श्री बंशीधर सर्राफ द्वारा सवा बीधा भूमि श्री जिन कुशलसूरि सेवा ट्रस्ट बाडमेर को भेंट देने पर बन रहा है । इस अद्वितीय जैन तीर्थ के निर्माण की कल्पना जैन साध्वी बहन डॉ. विद्युत्प्रभा श्रीजी ने अपनी गुरूवर्या प्रवर्तिनी श्री प्रमोद श्रीजी के बाडमेर नगर में धार्मिक आराधना, उपासना, भक्ति करते हुए प्राण त्याग दिये थे, उनकी स्मृति में उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी की दूरदर्शिता एवं मागर्दशक में और ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री भंवरलाल छाजेड के नेतृत्व में ट्रस्ट मंडल साथियों के अथक प्रयास, परिश्रम, लगन, निष्ठा से हजारों भामाशाहों, तीर्थो, जैन संघों, जैन संस्थाओं, ट्रस्टों, पेढयों आदि द्वारा श्री मनोजकुमार हिरण की मनमोहिनी वाणी से प्रभावित एवं प्रेरित होकर स्वेच्छा से धन विसर्जन करने पर तीर्थ बना हैं । इसके निर्माण की कल्पना योजना सांचोर में सन् १९८९ के डॉ. विद्युत्प्रभाजी के चातुर्मास में ’’कुशल वाटिका‘‘ के रूप में बनी थी जो २४ वर्षो के अविस्मणीय परिश्रम के बाद सन् २०१३ को १३ फरवरी को श्री मुनिसुव्रत स्वामी राजहंस मन्दिर की उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी द्वारा प्रतिष्ठा सम्पन्न कराने के साथ साकार स्वरूप में सामने आयेगी । जैन धर्म के बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी का राजहंस मन्दिर कुशल वाटिका का मुख्य मन्दिर है जो चबूतरे पर ५५ फीट ऊंचे भव्य शिखर स्वरूप में बना हुआ है । जिसके सभा मंडप परिसर में तीर्थ के मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी के यज्ञ, यज्ञाणी के अतिरिक्त श्री चन्द्रप्रभ स्वामी, श्री शखेश्वर पार्श्वनाथ, श्री महावीर स्वामी, श्री पार्श्वनाथ, श्री नाकोडा पार्श्वनाथ, श्री शांतिनाथ, श्री केसरियानाथ, श्री वासुपूज्य, श्री मुनिसुव्रत स्वामी तीर्थंकर प्रतिमाओं के साथ श्री सीमन्धर स्वमी, श्री गौतम स्वामी की प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया जावेगा। मन्दिर का मूल गम्भारा, सभा मंडल, श्रृंगार मंडप पर बने शिखर राष्ट्रीय मार्ग पर दूर-दूर से दृष्टिगोचर होते हुए जैन मन्दिर होने का आभास करवा रहे हैं । सम्पूर्ण मन्दिर श्वेत संगमरमर के पाषाणों से सुन्दर शिल्पकलाकृतियों से निर्मित किया गया है । कुशल वाटिका के मूल श्री मुनिसुव्रत स्वामी के राजहंस जैन मन्दिर के आगे नवगृह जैन मन्दिर, दादावाडी, आचार्य श्री कांतिसागर सूरिजी व प्रवर्तिनी श्री प्रमोद श्रीजी गुरू मन्दिरों के अतिरिक्त श्री नाकोडा भैरव, श्री अम्बिका माता, श्री पदमावती एवं श्री संच्चियाय माता के शिखरधारी मन्दिर देव कुलिका के रूप में निर्मित करवाये गये हैं । जिसमें नवग्रह जैन मन्दिर में सूर्यग्रह के श्री पदमप्रभु, चन्द्र के श्री चन्द्रप्रभ, मंगल के श्री वासुपूज्य, बुध के श्री शान्तिनाथ, गुरू के श्री आदिनाथ, शुक्र के श्री सुविधिनाथ, शनि के श्री मुनिसुव्रत स्वामी, राहू के श्री नेमीनाथ और केतु ग्रह के श्री पार्श्वनाथ स्वामी की अत्यन्त ही सुन्दर,कलात्मक एवं दर्शनीय प्रतिमाऐं प्रतिष्ठित की जा रही हैं । दादावाडी मन्दिर में खरतरगच्छ के दादा श्री जिनदत्तसूरिजी के साथ अन्य तीन दादाओं के प्रतिमाओं के साथ खरतरगच्छ आचार्य पाट परम्परा में श्री सुधर्मा स्वामी से लेकर आचार्य श्री कांतिसागर सूरिजी तक की ७८ प्रतिमाओं को आचार्य क्रमानुसार प्रतिष्ठित किया जाना हैं । जो अपने आपमें सम्भवतः भारत का ऐसा पहला गुरू मन्दिर होगा । बाडमेर के श्री मुनिसुव्रत स्वामी राजहंस मन्दिर तीर्थ निर्माता एवं प्रतिष्ठा निश्रा देने वाले उपाध्याय श्री मणिप्रभ सागरजी द्वारा अपने गुरू आचार्य श्री जिन कांतिसागर सूरीश्वरजी का उनकी कर्मशील भूमि में गुरू मन्दिर बनाकर उनकी स्मृतियों को सदियों तक संजोय रखने का अनुमोदनीय प्रयास एवं गुरू के प्रति समर्पित भाव दर्शाता है । वैसे ही तीर्थ निर्माण की प्रेरणेता साध्वी बहन डॉ. विद्युत्प्रभाजी ने अपनी गुरूवर्या प्रवर्तिनी श्री प्रमोद श्रीजी का यहां गुरू मन्दिर बना कर उन्हें अन्तःकरण से श्रद्वासुमन अर्पित करने का अद्वितीय प्रयास किया है । राजहंस मन्दिर परिसर में चमम्कारी श्री नाकोडा भैरव, जैन शासन देवी श्री पदमावती, जैन रक्षक देवी श्री अम्बिका माता एवं ओसवालों की कुलदेवी श्री संच्चियाय माता के मन्दिर इस तीर्थ की धार्मिक महत्ता को ओर अधिक बढाने में सहायक बने हुए हैं । मूल श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी के मन्दिर के आगे श्री नवग्रह जैन मन्दिर, दादावाडी, गुरू कांति मन्दिर, गुरू प्रमोदश्रीजी मन्दिर, नाकोडा भैरव, पदमावती, अम्बिका माता और संच्चिाय माता मन्दिर इंसान के हृदय पटल पर राजहंस के आकार के धरातल पर निर्मित करक शिल्पकार श्री मुकेशकुमार कन्हैयालाल ने अनूठा प्रयास और परिश्रम किया है । इन सभी मन्दिरों में छोटी बडी करीबन १३३ से अधिक सुन्दर, कलात्मक, चित को आकर्षित करने वाली दर्शनीय, पूजनीय, वन्दनीय संगमरमर के श्वेत पाषाणों की बनी मूर्तियों को विधिकारक श्री अश्विनभाई के शास्त्रों उच्चारण के साथ प्रतिष्ठित की जावेगी । उस समय हेलीकोप्टर द्वारा उन पर पुष्प वर्षा होगी । कुशल वाटिका परिसर में जिन शासन प्रभावना स्वरूप बने जैन मन्दिरों, गुरू मन्दिरों, देवी देवताओं की देवकुलिकाओं के अतिरिक्त जैन साधु साध्वियों के लिये अलग अलग उपाश्रय, सेवा केन्द्रों का निर्माण जैन धर्म की ऐतिहासिक विरासत बनकर अपनी यशोगाथा सदियों तक गुनगुनाते रहेंगे । इन धार्मिक स्थलों से जुडे केशर, मंगल पूजा, भक्ति आश्रम आदि कक्षों का व्यवस्थित रूप में निर्माण करवाया गया हैं । वहां इस तीर्थ के दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों की सुविधाओं के लिये आधुनिक शिल्पकला के रूप में भोजनशाला,यात्रिक भवन, विश्राम गृह, धर्मशाला, आंयबिलशाला, संघ भवन, प्याऊऐं आदि के साथ तीर्थ के ट्रस्ट मंडल की बैठक हेतु सभा भवन और ट्रस्टियों द्वारा तीर्थ की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु उनके लिये ट्रस्टी कक्ष और तीर्थ की सम्पूर्ण देखरेख एवं निगरानी रखने हेतु आधुनिक संचार आदि व्यवस्थाओं युक्त कार्यालय (पेढी) का निर्माण अपने आपमें योजना बद्ध तरीके से किया गया है । ऐसे सभी निर्माण कार्यो में आरटिटेक श्री अनिल चोरडिया का परिश्रम झलकता है । जैन धर्म प्रभावना का अनूठा यह श्री मुनिसुव्रत स्वामी राजहंस मन्दिर परिसर में बच्चों में धार्मिक के साथ व्यवहारिक शिक्षा देने और उनमें अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करने के लिये प्राथमिक, उच्च माध्यमिक एवं महाविद्यालय को संचालित करने की व्यवस्था की गई है । जिसमें वर्त्तमान में ४०० बालक बालिकाऐं संस्कारवान बनने हेतु धार्मिक व्यवहारिक ज्ञान अर्जित कर इस तीर्थ की शैक्षणिक महत्ता बनाये हुए हैं । यहां के तीर्थ ट्रस्ट ने भविष्य में मानव सेवा के रूप में यहां आधुनिक सभी प्रकार की तकनीकी सुविधा युक्त अस्पताल चलाने की योजना बना रखी है । जो निकट भविष्य में अपना स्वरूप लिये सेवारत होगी । कुशल वाटिका जिन शासन, सेवा, संस्कार, शिक्षा का आधुनिक आवश्यकताओं को पूर्ति करने वाला अद्वितीय, अविस्मरणीय, ऐतिहासिक धार्मिक स्थल बने इसके लिये साध्वी बहन डॉ. विद्युत्प्रभाजी के स्वप्नों को उपाध्याय श्री मणिप्रभसगारजी ने साकार रूप दिया है । जिसका शिलान्यास बाडमेर के मूल निवासी सर्वश्री लूणकरण, धर्मचन्द, शंकरलाल छाजेड ने ६ मार्च १९९४ को किया था और कृष्णागिरि शक्तिपीठ के यति श्री बसंतजी द्वारा भूमि शुद्विकरण के बाद यहां निर्माणकार्य तीव्र गति से चलता रहा है जो सम्भवतः भविष्य में कई भावी योजना में दादा श्री कुशलसूरिजी की भव्य ५६ फीट ऊंचे चबूतरे (आसन) पर ५२ फीट ४ इंच की बैठी प्रतिमा को प्रतिष्ठित करने आदि के साथ अन्य कई योजनाओं को लेकर चलता रहेगा । ऐसे नवनिर्मित जैन तीर्थ कुशल वाटिका अर्थात श्री मुनिसुव्रत स्वामी राजहंस जैन मन्दिर की भव्यातिभव्य ऐतिहासिक प्रतिष्ठा १३ फरवरी २०१३ को सम्पन्न होने जा रही है । जिसे सफलतापूर्वक सानन्द सम्पन्न करवाने में तीर्थ ट्रस्ट कमेटी एवं श्री तेजराज गुलेच्छा के संयोजन बनी प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के साथ कई श्रद्वालू भक्तगण तन, मन एवं धन के साथ जुटे हुए हैं । प्रतिष्ठा के इस अवसर पर कुशल वाटिका परिसर को राजसी वैभव की तरह राजसी दुल्हन के रूप म सजाया संवारा गया है । जिसे देख मन हर्षित हुए बिना नहीं रहता । जहां ६ फरवरी २०१३ से १४ फरवरी २०१३ तक कई प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम बाडमेर विधायक श्री मेवाराम जैन द्वारा आगुन्तकों का स्वागत करने, श्री नरेन्द्र वाणीगोता एवं श्री विनोद आचार्य के सफल संचालन से सम्पन्न होंगे ।

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