बुधवार, 30 जनवरी 2013

आरएएस के नए पैटर्न पर उठे सवाल

आरएएस के नए पैटर्न पर उठे सवाल

अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने राजस्थानी के पाठ्यक्रम प्रतिशत को माना नाकाफी, कहा- अन्य प्रदेशों की तरह अपनी भाषा को क्यों नहीं प्राथमिकता?
बाड़मेर आरएएस के नए पैटर्न में जहां आरपीएससी ने राजस्थानी भाषा और साहित्य को तवज्जो दिए जाने का दावा किया है वहीं अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर ने राजस्थानी के पाठ्यक्रम प्रतिशत को नाकाफी माना है।
समिति केसंभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने कहा है कि राजस्थानी भाषा को जितना भी स्थान दिया गया है वह स्वागत योग्य है, परन्तु आरपीएससी को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसे राजस्थान में नियुक्त किए जाने के लिए प्रशासनिक अधिकारी तैयार करने हैं और राजस्थान मूल के ही अभ्यर्थियों का चयन करना है। भाटी ने पंजाब, गुजरात व महाराष्ट्र सहित कई अन्य प्रांतों का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां प्रांतीय भाषाएं इन परीक्षाओं की माध्यम भाषाएं तो हैं ही, प्रांतीय भाषा व निबंध के अनिवार्य प्रश्र पत्र भी होते हैं। साथ ही वहां की भाषा और उसके साहित्य को वैकल्पिक विषय के रूप में चुने जाने की सुविधा भी अभ्यर्थी को मिलती है। उन्होंने सवाल उठाया कि अन्य प्रदेशों की तरह आएएएस का पाठ्यक्रम निर्माण क्यों नहीं किया जाता? वर्तमान पाठ्यक्रम में राजस्थानी भाषा ज्ञान के लिए 100 अंक का अनिवार्य प्रश्र पत्र निर्धारित करने की वकालत करते हुए भाटी ने कहा कि तभी राजस्थानी प्रतिभाओं के साथ न्याय हो सकेगा। नहीं तो पूर्व की भांति बाहरी अभ्यर्थी ही लाभ में रहेंगे। समिति ने कहा है कि आरएएस, एडीजे, पीआरओ, चिकित्सा एवं इन्जिनियरिंग सहित अन्य पदों हेतु आयोजित परीक्षाओं में भी राजस्थानी भाषा के प्रश्र पत्र को अनिवार्य किए जाने से ही लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित अधिकारी सही मायने में लोक सेवक सिद्ध हो सकेंगे। लोक भाषा के ज्ञान के बिना लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित अधिकारी लोक दण्डक साबित होंगे।

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