विदेशी हुए लोकसंगीत के मुरीद
जैसलमेर। कलात्मक सुंदरता व बारीक नक्काशी के बूते विश्व पर्यटन मानचित्र पर विशिष्ट पहचान बना चुके मरूप्रदेश के लोक संगीत का जादू विदेशियो के सिर चढ़कर बोल रहा है। यही नहीं, जुदा संस्कृति होने के बावजूद लोक संगीत इन मेहमानो के दिलो की गहराइयो मे उतरकर मन को झनकृत कर देता है। यही कारण है कि तबला, हारमोनियम, राजस्थानी नृत्य व सुरों की लय सीखने के लिए सात समंदर पार से सैलानी जैसलमेर आ रहे हैं। जैसलमेर के उस्ताद मोहन खां के पास विदेशों से आए कुछ युवक युवतियां वाद्य यंत्र बजाने के गुर सीख रहे हैं।
अफ्रीका से तीन युवक रैनी, अलिक्सेन्ड्रा व एरिक कॉफी को तबला वादन मे पारंगत होने की चाहत जैसलमेर खींच लाई है। उस्ताद मोहन खान से बुधवार को तबला वादन की शिक्षा लेना शुरू कर दिया। फ्रांसिसी महिला डोमिनिक को उस्ताद के सिखाने का लहजा इतना भाया कि वे उनके सानिध्य में पांच महीने तक रह कर उनसे राजस्थानी नृत्य के साथ हारमोनियम व संगीत के सुरों की शिक्षा लेंगी।
खान ने अपने चारों शिष्यों को शिक्षा देना शुरू कर दी है। अफ्रीकन मूल के अलिक्सेनड्रा ने बताया कि उन्हें यहां के तबला वादक की जानकारी इन्टरनेट से मिली तो वे यहां का पता लगाते हुए जैसलमेर पहुंचे है और तीन दिन तक जैसलमेर का दीदार करने के साथ तबला वादन सीखेंगे। उन्हें तबला बजाना अच्छा लगता है। फ्रांसिस महिला डोमिनिक ने बताया कि वे भारत की संस्कृति की कायल है और यहां की संस्कृति विरासत को बांधे रखने वाले सुर, संगीत व नृत्य को सीखने के लिए यहां आए है।
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