शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

रेगिस्तान के बबूल के बीज से अब बनेगी कॉफी

रेगिस्तान के बबूल के बीज से अब बनेगी कॉफी
बाड़मेर। सब ठीक रहा तो कॉफी के शौकीन अब विलायती बबूल के बीज से बनी कॉफी पीते नजर आएंगे। उम्मीद है कि मार्च 2013 के बाद इस कॉफी का व्यावसायिक उपयोग होने लगेगा। सीमावर्ती बाड़मेर जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र दांता में इसका संयंत्र भी लग गया है। यहां बबूल से बनी कॉफी का उत्पादन हो रहा है। इसे बनाने में काजरी जोधपुर के वैज्ञानिकों की खास भूमिका रही है। खाद्य सुरक्षा को लेकर नेशनल इंस्टीट्यूट न्यूट्रीशियन हैदराबाद ने इसका परीक्षण भी किया है। इसके नतीजे भी आशानुरूप आए हैं, हालांकि अभी क्रोनिक प्रोक्सिसिटी टेस्ट के नतीजे आने हैं, लेकिन इसके भी आरम्भिक नतीजे उत्साहवर्घक हैं। ऎसे में वह दिन दूर नहीं जब बबूल के पेड़ के बीज से बनी कॉफी बाजार में बिकने लगेगी।

सीमावर्ती जिले में बहुतायत और प्राय: अनुपयोगी समझे जाने वाले विलायती बबूल से कॉफी बनेगी। काजरी में अनुसंधान के बाद आरम्भिक तौर पर जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र दांता में कॉफी उत्पादन संयंत्र लगाया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार बबूल के बीजों को पीसकर 270 सेंटीग्रेड पर गर्म किया जाता है। बाद में ठण्डा कर दिया जाता है। एक किलो कॉफी के पैकेट में सात सौ ग्राम बबूल की कॉफी, दो सौ ग्राम प्राकृतिक कॉफी और सौ ग्राम चिकरी पाउडर (कॉफी की कड़वाहट कम करने के लिए) मिला इसे तैयार करते हैं।

स्वास्थ्यप्रद होगी
बबूल के बीज से बनने वाली कॉफी प्राकृतिक कॉफी से कहीं सस्ती और स्वास्थ्यवर्घक है। प्राकृतिक कॉफी में जहां निकोटिन की मात्रा अधिक होती है, वहीं इसमें आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस और कार्बोहाइटे्रट की मात्रा अधिक होने से नुकसानदायक नहीं है। प्राकृतिक कॉफी की बाजार कीमत करीब पन्द्रह सौ रूपए प्रतिकिलो है जबकि यह कॉफी तीन सौ रूपए किलो में तैयार हो रही है।

मार्च तक बाजार में
इसे काजरी ने खाद्य सुरक्षा को लेकर नेशनल इंस्टीट्यूट न्यूट्रीशियन हैदराबाद में जांच के लिए भेजा। वहां एक्यूट प्रोक्सिसिटी (प्रथम जनरेशन जांच) में इसे सही पाया गया। वर्तमान में क्रोनिक प्रोक्सिसिटी जांच (एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन पर प्रभाव) चल रही है। इसके नतीजे मार्च 2013 तक आने की उम्मीद है। इसके बाद इसका व्यावासयिक उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।

बन सकता है लघु उद्योग
जिले मे पांच-छह किसानों ने बबूल के बीज से कॉफी बनाने में रूचि दिखाई है। उत्पादन आरम्भ होते ही सीमावर्ती जिले में कॉफी उत्पादन लघु उद्योग के रूप में विकसित हो सकता है। इसमें घर बैठे ही रोजगार की असीम संभावनाएं रहेगी।

संयंत्र लगा है- बबूल के बीज से कॉफी उत्पादन हो रहा है। दांता में स्थापित संयंत्र से अभी तो इसे प्रायोगिक तौर पर बाजार में दिया जा रहा है।
डॉ. प्रदीप पगारिया, केन्द्र प्रभारी,कृषि विज्ञान केन्द्र दांता

मार्च के बाद उत्पादन
बबूल के बीज से कॉफी उत्पादित करने में काजरी को सफलता मिली है।
डॉ. जे सी तिवारी प्रधान वैज्ञानिक, काजरी, जोधपुर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें