खतरे में जैसलमेर का किला
उपेक्षा के दंश, प्रकृति के बदलते तेवर और इंसान की बढ़ती जरूरतों ने विश्व की अनमोल धरोहरों में से एक सोनार किले को जर्जर हालात में पहुंचा दिया है. हालियां रिपोर्टों और आए दिन इसकी गिरती दीवारों ने यहां रहने वालों की पेशानी पर बल लाना तो शुरू कर दिया है पर प्रशासनिक उपेक्षा का आलम बरकरार है.
ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के एक उच्च अधिकारी बताते हैं कि किले के पहाड़ की मिट्टी 154 लाख साल पुरानी है. अब जहां मिट्टी का 'हृास' हो रहा है, वहीं सीवरेज का पानी नींव में जा रहा हैं. और तो और, किले में चल रहे नए निर्माण कार्य से पहाड़ पर बढ़े भार ने आग में घी का काम किया है.
बॉम्बे कोलेबरेटी अर्बन डिजाइनिंग ऐंड कंजर्वेशन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर, स्ट्रक्चरल ज्योटेकनीकल वर्क एस.सी. देशपांडे बताते हैं कि किले के पहाड़ में हो रही हलचल की जांच के लिए करीब 9 स्थानों पर टेस्टिंग की गई थी. इसके डाटा का आकलन यूके में किया गया था. इसकी स्टडी रिपोर्ट सचमुच चौंकाने वाली है. किले की हालत बहुत खराब है. इसके पहाड़ खिसक रहे हैं. करीब 3 स्थानों पर पहाड़ में न केवल मूवमेंट हो रहा है बल्कि कोटड़ी पाड़ा, ढूंढा पाड़ा और एक अन्य स्थान पर भूकंप की फॉल्ट लाइन की पहचान की गई है.
वर्ल्ड वॉच मॉन्युमेंट की भारत में प्रतिनिधि अमिता बेग दुनिया की चुनिंदा 100 धरोहरों में शुमार इस विख्यात किले के दिनोदिन खतरनाक हालत में तब्दील होने से खासी दुखी हैं. वे बताती हैं ''किले की नींव में लगातार पानी जाने से पहाड़ीनुमा ढलान धंसती जा रही है. इसमें झुकाव शुरू हो गया है. किले के पत्थर अंदर ही अंदर मिट्टी में बदलते जा रहे हैं.''
किले के साथ की जा रही छेड़छाड़ और बारिश से 99 बुर्जों वाले इस किले के 16 बुर्ज पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं. उधर, किले के बारे में स्टडी, रिसर्च व योजनाएं बनाने में पिछले 8 साल से बैठकें और दौरे हो रहे हैं, लेकिन कोई ठोस कार्य शुरू नहीं हो सका है. हर छह माह में एएसआइ के उच्चाधिकारी बदल जाते हैं. पिछले तीन साल में जैसलमेर में पांच जिला कलेक्टर बदले जा चुके हैं. इसी कारण संरक्षण कार्य सही ढंग से नहीं हो पा रहा है.
केंद्र सरकार ने सोनार किले के संरक्षण के लिए किए जाने वाले खर्च के लिए नोडल एजेंसी नेशनल कल्चर फंड बना रखा है. उसने 4 करोड़ रु. दिए थे जबकि 2.5 करोड़ रु. वर्ल्ड वॉच मॉन्युमेंट ने मुहैया करवाए थे, यह राशि उनके बैक खातों में 2003 से पड़ी है. इस प्रकार 6.5 करोड़ रु. आठ साल से नेशनल कल्चर फंड के बैंक खातों में जमा हैं. लेकिन उनका कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.
गौरतलब है कि भाटी राजपूतों की आठवीं राजधानी लुद्रवापुर में थी. मगर वह हर लिहाज से असुरक्षित थी. मुगलों के बार-बार होने वाले हमलों से दुखी तत्कालीन राजा जैसल ने लुद्रवा से करीब 18 किमी दूर त्रिकुट पर्वत पर 1212 में 99 बुर्जों वाला एक शानदार किला बनवाया. इस किले की संरचना इस तरह की गई थी कि दुश्मन लाख चाहे तो इस पर हमला नहीं कर सकता था.
आज इस किले में एक पूरा शहर समाया हुआ है. यहां करीब 5,000 की आबादी, छोटे बड़े 30 से ज्यादा होटल, एक दर्जन रेस्तरां, 100 से ज्यादा छोटी-मोटी दुकानें हैं. पुरातत्व प्रशासनिक अधिकारी व अन्य संस्थाएं इसके संरक्षण को लेकर कभी-कभी होने वाली बैठकों में घड़ियाली आंसू बहा कर अपने फर्ज की इतिश्री कर लेते हैं.
जैसलमेर में 8 नवंबर, 1991 और 26 जनवरी, 2001 को जबरदस्त भूकंप आया था. इस दौरान भी सोनार किले को भारी नुकसान पहुंचा था. यहां के मकानों में दरारें आई थीं और कई जर्जर इमारतों की दीवारें ढह गई थीं. पिछले साल आए भूकंप से भी सोनार किले में बड़ी संख्या में मकानों में दरारें आई थीं.
इन सारे हालात को देखते हुए अगर सरकार समय रहते हरकत में नहीं आती तो ऐतिहासिक महत्व के इस किले को कभी भी बड़ा नुकसान होने की पूरी संभावना है. खास यह है कि यहां रहने वाले लोग भी खतरे के साये में हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें