शनिवार, 8 दिसंबर 2012

जो क़ैदियों के बच्चों को देती है मां का प्यार



नेपाल की रहने वाली 28 साल की पुष्पा बसनेट जब भी किसी क़ैदी के बच्चे को देखती हैं तो उन्हें अपनी शरण में ले लेती हैं.

पुष्पा ये काम पिछले आठ साल से कर रही हैं- इन बच्चों को पनाह देना, शिक्षा दिलाना और सबसे बढ़कर माँ का प्यार देना.अब उन्हें साल 2012 का सीएनएन हीरो ऑफ द ईयर का पुरस्कार मिला है. सीएनएन ने दुनियाभर में इसके लिए ऑनलाइन मतदान करवाया था.

जब वे इस पुरस्कार के लिए नामांकित हुई थीं तो उन्होंने कहा था कि अगर वे जीतती हैं तो उस पैसे का इस्तेमाल बच्चों को बेहतर सुविधाएँ देने के लिए करेंगी.




पिछले तीन सालों में सीएनएन हीरो अवॉर्ड जीतने वाली पुष्पा दूसरी नेपाली महिला हैं. अनुराधा कोइराला को भी ये सम्मान मिल चुका है.

पुष्पा को बच्चे प्यार से मामू बुलाते हैं. उनका कहना है कि दो लाख 50 हज़ार डॉलर की इनामी राशी का इस्तेमाल वो उन 80 बच्चों को नेपाली जेलों से बाहर लाने में खर्च करेंगी जो बिना ग़लती के वहाँ रहने को मजबूर हैं.



अकसर क़ैदियों के बच्चों को जेल में बंद अपने गरीब माता-पिता के साथ रहना पड़ता है क्योंकि उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता.

पुष्पा बताती हैं कि जो 46 बच्चे उनके साथ रहते हैं उनमें से कइयों ने भयावह किस्म के अपराध देखे हैं.

बीबीसी से बातचीत में पिछले हफ्ते उन्होंने बताया, “पाँच साल की एक बच्ची है जिसका उसके ही पिता ने बलात्कार किया था क्योंकि उसकी माँ किसी के साथ भाग गई थी. कई बच्चे घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं.”

पुष्पा के लिए ये सिलसिला तब शुरु हुआ जब यूनिवर्सिटी की तरफ से वे एक स्थानीय जेल में गईं.

पुष्पा बताती हैं, “मैं आठ महीने की एक बच्ची को जेल में देखा. उसे और उसके जैसे और बच्चों की व्यथा मेरे दिल को छू गई. मुझे लगा कि इनके लिए कुछ करना चाहिए और मैं इस काम में जुट गई.” पुष्पा कहती हैं कि वे शादी नहीं करना चाहती.

लॉस एजेंलेस में एक शानदार समारोह में पुष्पा ने अवॉर्ड हासिल करते हुए उन बच्चों को याद किया जिनकी वे देखभाल करती हैं.

उन्होंने कहा, “ये पुरस्कार मेरे लिए बहुत मायने रखता है. जेल में अब भी 80 बच्चे हैं. मैं यकीन से कह सकती हूँ कि मामू आपको जेल से बाहर लेकर आएगी.”




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