शनिवार, 22 दिसंबर 2012

सात वर्ष बाद कोर्ट में एफआर पेश करने पर हाईकोर्ट नाराज



जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने गंगानगर जिलांतर्गत भादरा में वर्ष 1998 में हुए दहेज मृत्यु के एक मामले में पुलिस द्वारा पीडि़त पक्ष की ओर से रिपोर्ट दर्ज करने के पांच दिन बाद एफआर लगाने व उसे सात वर्ष बाद अदालत में पेश करने को गंभीरता से लिया है। न्यायधीश संदीप मेहता ने भादरा निवासी कृष्णा उर्फ किशना राम व सुरेन्द्र कुमार की ओर से दायर विविध आपराधिक याचिका की सुनवाई में गृह विभाग व पुलिस महानिदेशक डीजीपी को निर्देश जारी करते हुए मामले की जांच कराते हुए 21 मार्च 2013 तक अदालत में रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए हैं।


यह था मामला


मामले के अनुसार भादरा निवासी किशना राम के पुत्र सुरेन्द्र कुमार की पत्नी मनोज की अपने ससुराल में 18 अगस्त 1998 को जहर सेवन करने के कारण मृत्यु हो गई। इस पर जहां किशना राम की ओर की ओर से पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई वहीं मृतका मनोज के पिता मोहनलाल की ओर से भी लड़की के ससुराल वालों पर दहेज प्रताडऩा का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई गई।

पुलिस ने आईपीसी धारा 498 ए व 304 बी के तहत दर्ज की गई इस रिपोर्ट के दर्ज करने के पांच दिन बाद 23 अगस्त 1998 को ही पुलिस ने लड़की के पिता के आरोपों को सही नहीं मानते हुए अंतिम रिपोर्ट फाइल में लगा दी। हालांकि फाइल में एफआर लगाने के बाद 1 से 8 सितंबर 1998 तक विभिन्न गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए गए है जिन्होंने लड़की के ससुराल वालों को निर्दोष बताया गया है।


सात वर्ष बाद अदालत में पेश की एफआर


पुलिस ने अनुसंधान के बाद मामले की एफआर अदालत में 25 फरवरी 2005 को पेश की। इस पर पीडि़त पक्ष ने एसीजेएम भादरा के यहां प्रोटेस्ट पिटिशन फाइल की। अदालत ने किशनाराम व सुरेन्द्र कुमार आदि के खिलाफ प्रसंज्ञान लिया तो उन्होंने सेशन कोर्ट में निगरानी याचिका दायर की वह भी खारिज हो गई तो उसके खिलाफ हाईकोर्ट में विविध आपराधिक याचिका दायर की गई

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