दीनों के दयाल- दीनदयाल तँवर
पश्चिमी राजस्थान की यह मरुधरा रत्न उपजने वाली रही है जहाँ सदियों से ऎसे महान् रत्नों की सुदीर्घ श्रृंखला सतत प्रवाहित रही है जिन्होंने हर युग में अपने युगीन कर्मयोग को जीवन में अपनाते हुए आदर्श व्यक्तित्व की गंध से तन-मन व परिवेश को जीवनी शक्ति की अद्भुत गंध से सींचा और लोक मंगल की ऎसी छाप छोड़ गए कि पीढ़ियाँ उन्हें भुला न पाएंगी। जैसलमेर की सरजमी पर जन्म लेने वाले कर्मयोगियों क परम्परा में स्व. दीनदयाल तँवर का नाम श्रृद्धा और आद से लिया जाता है।
हर दिल अजीज शख्सियत तँवर ने अपने लोक सेवी कर्मयोग से समाज, जीवन में अनूठी छाप छोड़ी तथा अपने नाम को सार्थक करते हुए दीनों के प्रति दयालु स्वभाव का ऎसा परिचय दिया कि हर दिल अजीज के रूप में पहचान कायम कर अविस्मरणीय इतिहास का सृजन कर दिया। जैसलमेर में तँवर ( तुँवर ) गोत्रीय संस्कारित परिवार में पिता अचलसिंह के घर माताश्री सोनल कँवर की कोख से 24 दिसम्बर सन् 1933 में जन्म लेने वाले दीनदयाल को मानवीय मूल्यों व लोकोपकारी संस्कार अपने दादा दलसिंह तथा पिता अचलसिंह से प्राप्त हुए। चार बहनों में मूली व नैनी उनसे बड़ी तथा माणका एवं मोहिनी छोटी थी। पूरे परिवार में एकमात्र कुलदीपक दीनदयाल ने अपने ताऊ पूंजाराजसिंह के बेटों बाबूलाल एवं भोपालसिंह को अपना सगा भाई माना और जिन्दगी भर वैसा ही व्यवहार किया। बहुआयामी हुनर ने दी विलक्षणता दीनदयाल ने आरंभिक शिक्षा-दीक्षा जैसलेर में पायी। ज्ञान के क्षेत्र में हर जिज्ञासा को शांत करने की उनमें ऎसी धुन सवार थी कि कड़ी मेहनत की बदौलत थोड़े समय में ही उन्होंने कई विषयों में जबर्दस्त महारत हासिल कर ली। विलक्षण मेधा के धनी दीनदयाल तंवर का पूरा जीवन फर्श से अर्श तक की यात्रा का साक्षी रहा। एक मामूली वाहन चालक से अपने केरियर की शुरूआत कर वे इंजीनियर के पद पर पहुंँचे। आसमाँ के संकेत तक भाँपने में माहिर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी दीनदयाल ड्राईविंग, मोटर मैकेनिक, इलेक्ट्रीशियन, पाकशास्त्री, भजन गायकी, फाग गायकी, स्वरमाधुर्य की मूर्ति, प्रखर वक्ता, पर्यावरण प्रेमी, सगुन विचार आदि कई विलक्षणताओं से परिपूर्ण थे। खगोलशास्त्र के ज्ञाता इतने कि आसमान में तारामण्डल को देख कर सटीक समय बताने के साथ ही खगोलीय घटनाओं का पूर्वाभास भी कर लेते। कई पदों को किया गौरवान्वित सन् 1956 में जैसलमेर राज परिवार में दरबार साहब के निजी ड्राईवर के रूप में नौकरी की शुरुआत करने के बाद ओ.एन.जी.सी में नौकरी की, पुलिस में कानिस्टेबल/ ड्राईवर रहे, बाड़मेर सार्वजनिक निर्माण विभाग में ड्राईवर व मिस्त्री का काम किया तथा अपनी योग्यता के बूते सुपरवाईजर का दायित्व संभाला और कनिष्ठ अभियंता पद से 31 दिसम्बर 1991 को सेवानिवृत्त हुए। उनकी अधिकतर सेवाएँ बाड़मेर को मिली। वर्ष 1960 से 1985 तक पूरे बाड़मेर जिले में सत्तर फीसदी सड़कों का सर्वे या निर्माण उनकी देखरेख में हुआ। बाड़मेर जिले भर में चिरपरिचित हस्ताक्षर के रूप में उन्होंने खूब ख्याति पायी । मजबूत की वंश समृद्धि की नींव दीनदयाल का दाम्पत्य जीवन आजादी पाने के वर्ष सन् 1947 में शुरु हुआ जब रामप्यारीदेवी से उनका पाणिग्रहण हुआ। उनकी संतानों में तीन पुत्र व दो पुत्रियां (घनश्याम सिंह, चंदा, शांति, कमलसिंह एवं उम्मेदसिंह) हैैं। उम्मेदसिंह तंवर इस समय जैसलमेर नगर विकास न्यास के अध्यक्ष पद को गौरवान्वित कर रहे हैं। दीनदयाल तँवर की धर्मपत्नी श्रीमती रामप्यारी देवी 15 दिसम्बर , 2004 को ही राम को प्यारी हो गई। इसके बाद दीनदयाल ने अपने आपको पूरी तरह संसार की सेवा में समर्पित कर दिया। मुँह बोलते थे उनके काम दीनदयाल तँवर जहाँ कहीं रहे वहाँ पूर्ण मनोयोग एवं ईमानदारी से अपने कामों को अंजाम दिया। यही कारण था कि उनके द्वारा किए हुए काम अपनी गुणवत्ता व उपादेयता का बखान खुद करने लगते। इन कामों ने उन्हें खूब शोहरत भी दी और आत्म संतुष्टि भी। सन् 1967-68 में प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया का अकाल राहत जायजा लेने सेउवा का दौरा हो या कोटड़ा के पास ’दीना नाड़ी’ का निर्माण या फिर आँचलिक विकास का कोई सा काम, हर काम उनकी यश कीर्ति को ऊँचाइयां देता रहा। बमबारी के बीच बनवाई सैन्य सड़क सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान गडरा सेक्टर में भारतीय सेना के नेवीगेटर ( रास्ता दर्शक ) केे रूप में की गई उनकी सेवाओं ने सेना के शीर्ष अधिकारियों की खूब सराहना पायी। राष्ट्रभक्ति का जब्जा रखने वाले दीनदयाल ने सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जसाई स्थल में भारी बम्बबारी बीच सड़क का निर्माण कार्य करवा कर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। स्वाभिमान और स्वामीभक्ति की मिसाल स्वाभिमानी ऎसे कि अपनी आन के लिये जैसलमेर रियासत के तत्कालीन राजदरबार की सेवा को देख कर चल दिए। इसी तरह विश्वस्त स्वामी भक्त इतने कि उसी राजदरबार की दो पीढ़ियों तक जब-जब राजकुमारियाँ ब्याही गयी तब तक चँवरी ( विवाह मण्डप ) से जनवासे तथा जनवासे से उनके सुसराल तक पहुँचाने के लिए विशेष रुप से उन्हें बाड़मेर से बुलाया जाता तथा वे नवविवाहित दम्पत्ति के वाहन को ड्राईव करके उसे गंतव्य तक पहुंचाते थे, जबकि राज दरबार में उस समय ड्राईवरों की कोई कमी नहीं थी। पूरे जज्बे के साथ निभाया लोक सेवाओं का फर्ज मानवीय संवेदनाओं एवं नैतिक मूल्यों के साथ लोकसेवा का आदर्श स्थापित करने वाले दीनदयाल ने दृढ़ आत्मविश्वास के साथ हर काम को अंजाम दिया। खलीफे की बावड़ी प्रकरण में उन्होेंने विपदाग्रस्तों की पूर्ण मदद की और पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ ली। दीनदयाल हर जरूरतमंद, असहाय व गरीब की सहायता के फर्ज को कभी नहीं भूले बल्कि हर संभव योगदान देकर उदार मानवीय मूल्यों व सहृदयता का परिचय दिया। दूर-दूर तक व्याप्त थी व्यक्तित्व की गंध अदम्य साहस व अपार ऊर्जा इतनी कि एक बार बस दुर्घटना में फंस गए तब अकेले ही बस की पिछली जाली तोड़ कर बाहर निकले। उनके कर्मयोग की झलक दिखाने के लिए वर्षो तक चित्र प्रदर्शनियों मेें उनके सृजन से जुड़े चित्रों का योगदान भी रहा। उनके मित्रों में पूर्व विधायक अब्दुल हादी का नाम प्रमुख है। अपनी पूरी जिंदगी में नवसृजन, सेवा एवं सम्बल की त्रिवेणी बहाने वाले दीनदयाल तंवर ने इसी वर्ष 10 अगस्त ( कृष्ण जन्माष्टमी- रमजान के पाक महीने में जुम्मे के दिन शुक्रवार को संसार से विदा ले ली। युगों तक संचरित होती रहेगी कर्मयोग की प्रेरणा दीनदयाल तंवर आज हमारे मध्य मौजूद नहीं हैं लेकिन मानवीय आदर्शों से भरे उनके लोकसेवी कर्मयोग की गंध नवसृजन के पथिकों के लिए आने वाले कई युगों तक पथ प्रदर्शन करती रहेगी। उनकी 79 वीं जन्म जयंती पर कृतज्ञ मरुधरावासियों की ओर से कोटि-कोटि नमन् एवं भावभीनी श्रृद्धांजलि।
हर दिल अजीज शख्सियत तँवर ने अपने लोक सेवी कर्मयोग से समाज, जीवन में अनूठी छाप छोड़ी तथा अपने नाम को सार्थक करते हुए दीनों के प्रति दयालु स्वभाव का ऎसा परिचय दिया कि हर दिल अजीज के रूप में पहचान कायम कर अविस्मरणीय इतिहास का सृजन कर दिया। जैसलमेर में तँवर ( तुँवर ) गोत्रीय संस्कारित परिवार में पिता अचलसिंह के घर माताश्री सोनल कँवर की कोख से 24 दिसम्बर सन् 1933 में जन्म लेने वाले दीनदयाल को मानवीय मूल्यों व लोकोपकारी संस्कार अपने दादा दलसिंह तथा पिता अचलसिंह से प्राप्त हुए। चार बहनों में मूली व नैनी उनसे बड़ी तथा माणका एवं मोहिनी छोटी थी। पूरे परिवार में एकमात्र कुलदीपक दीनदयाल ने अपने ताऊ पूंजाराजसिंह के बेटों बाबूलाल एवं भोपालसिंह को अपना सगा भाई माना और जिन्दगी भर वैसा ही व्यवहार किया। बहुआयामी हुनर ने दी विलक्षणता दीनदयाल ने आरंभिक शिक्षा-दीक्षा जैसलेर में पायी। ज्ञान के क्षेत्र में हर जिज्ञासा को शांत करने की उनमें ऎसी धुन सवार थी कि कड़ी मेहनत की बदौलत थोड़े समय में ही उन्होंने कई विषयों में जबर्दस्त महारत हासिल कर ली। विलक्षण मेधा के धनी दीनदयाल तंवर का पूरा जीवन फर्श से अर्श तक की यात्रा का साक्षी रहा। एक मामूली वाहन चालक से अपने केरियर की शुरूआत कर वे इंजीनियर के पद पर पहुंँचे। आसमाँ के संकेत तक भाँपने में माहिर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी दीनदयाल ड्राईविंग, मोटर मैकेनिक, इलेक्ट्रीशियन, पाकशास्त्री, भजन गायकी, फाग गायकी, स्वरमाधुर्य की मूर्ति, प्रखर वक्ता, पर्यावरण प्रेमी, सगुन विचार आदि कई विलक्षणताओं से परिपूर्ण थे। खगोलशास्त्र के ज्ञाता इतने कि आसमान में तारामण्डल को देख कर सटीक समय बताने के साथ ही खगोलीय घटनाओं का पूर्वाभास भी कर लेते। कई पदों को किया गौरवान्वित सन् 1956 में जैसलमेर राज परिवार में दरबार साहब के निजी ड्राईवर के रूप में नौकरी की शुरुआत करने के बाद ओ.एन.जी.सी में नौकरी की, पुलिस में कानिस्टेबल/ ड्राईवर रहे, बाड़मेर सार्वजनिक निर्माण विभाग में ड्राईवर व मिस्त्री का काम किया तथा अपनी योग्यता के बूते सुपरवाईजर का दायित्व संभाला और कनिष्ठ अभियंता पद से 31 दिसम्बर 1991 को सेवानिवृत्त हुए। उनकी अधिकतर सेवाएँ बाड़मेर को मिली। वर्ष 1960 से 1985 तक पूरे बाड़मेर जिले में सत्तर फीसदी सड़कों का सर्वे या निर्माण उनकी देखरेख में हुआ। बाड़मेर जिले भर में चिरपरिचित हस्ताक्षर के रूप में उन्होंने खूब ख्याति पायी । मजबूत की वंश समृद्धि की नींव दीनदयाल का दाम्पत्य जीवन आजादी पाने के वर्ष सन् 1947 में शुरु हुआ जब रामप्यारीदेवी से उनका पाणिग्रहण हुआ। उनकी संतानों में तीन पुत्र व दो पुत्रियां (घनश्याम सिंह, चंदा, शांति, कमलसिंह एवं उम्मेदसिंह) हैैं। उम्मेदसिंह तंवर इस समय जैसलमेर नगर विकास न्यास के अध्यक्ष पद को गौरवान्वित कर रहे हैं। दीनदयाल तँवर की धर्मपत्नी श्रीमती रामप्यारी देवी 15 दिसम्बर , 2004 को ही राम को प्यारी हो गई। इसके बाद दीनदयाल ने अपने आपको पूरी तरह संसार की सेवा में समर्पित कर दिया। मुँह बोलते थे उनके काम दीनदयाल तँवर जहाँ कहीं रहे वहाँ पूर्ण मनोयोग एवं ईमानदारी से अपने कामों को अंजाम दिया। यही कारण था कि उनके द्वारा किए हुए काम अपनी गुणवत्ता व उपादेयता का बखान खुद करने लगते। इन कामों ने उन्हें खूब शोहरत भी दी और आत्म संतुष्टि भी। सन् 1967-68 में प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया का अकाल राहत जायजा लेने सेउवा का दौरा हो या कोटड़ा के पास ’दीना नाड़ी’ का निर्माण या फिर आँचलिक विकास का कोई सा काम, हर काम उनकी यश कीर्ति को ऊँचाइयां देता रहा। बमबारी के बीच बनवाई सैन्य सड़क सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान गडरा सेक्टर में भारतीय सेना के नेवीगेटर ( रास्ता दर्शक ) केे रूप में की गई उनकी सेवाओं ने सेना के शीर्ष अधिकारियों की खूब सराहना पायी। राष्ट्रभक्ति का जब्जा रखने वाले दीनदयाल ने सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जसाई स्थल में भारी बम्बबारी बीच सड़क का निर्माण कार्य करवा कर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। स्वाभिमान और स्वामीभक्ति की मिसाल स्वाभिमानी ऎसे कि अपनी आन के लिये जैसलमेर रियासत के तत्कालीन राजदरबार की सेवा को देख कर चल दिए। इसी तरह विश्वस्त स्वामी भक्त इतने कि उसी राजदरबार की दो पीढ़ियों तक जब-जब राजकुमारियाँ ब्याही गयी तब तक चँवरी ( विवाह मण्डप ) से जनवासे तथा जनवासे से उनके सुसराल तक पहुँचाने के लिए विशेष रुप से उन्हें बाड़मेर से बुलाया जाता तथा वे नवविवाहित दम्पत्ति के वाहन को ड्राईव करके उसे गंतव्य तक पहुंचाते थे, जबकि राज दरबार में उस समय ड्राईवरों की कोई कमी नहीं थी। पूरे जज्बे के साथ निभाया लोक सेवाओं का फर्ज मानवीय संवेदनाओं एवं नैतिक मूल्यों के साथ लोकसेवा का आदर्श स्थापित करने वाले दीनदयाल ने दृढ़ आत्मविश्वास के साथ हर काम को अंजाम दिया। खलीफे की बावड़ी प्रकरण में उन्होेंने विपदाग्रस्तों की पूर्ण मदद की और पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ ली। दीनदयाल हर जरूरतमंद, असहाय व गरीब की सहायता के फर्ज को कभी नहीं भूले बल्कि हर संभव योगदान देकर उदार मानवीय मूल्यों व सहृदयता का परिचय दिया। दूर-दूर तक व्याप्त थी व्यक्तित्व की गंध अदम्य साहस व अपार ऊर्जा इतनी कि एक बार बस दुर्घटना में फंस गए तब अकेले ही बस की पिछली जाली तोड़ कर बाहर निकले। उनके कर्मयोग की झलक दिखाने के लिए वर्षो तक चित्र प्रदर्शनियों मेें उनके सृजन से जुड़े चित्रों का योगदान भी रहा। उनके मित्रों में पूर्व विधायक अब्दुल हादी का नाम प्रमुख है। अपनी पूरी जिंदगी में नवसृजन, सेवा एवं सम्बल की त्रिवेणी बहाने वाले दीनदयाल तंवर ने इसी वर्ष 10 अगस्त ( कृष्ण जन्माष्टमी- रमजान के पाक महीने में जुम्मे के दिन शुक्रवार को संसार से विदा ले ली। युगों तक संचरित होती रहेगी कर्मयोग की प्रेरणा दीनदयाल तंवर आज हमारे मध्य मौजूद नहीं हैं लेकिन मानवीय आदर्शों से भरे उनके लोकसेवी कर्मयोग की गंध नवसृजन के पथिकों के लिए आने वाले कई युगों तक पथ प्रदर्शन करती रहेगी। उनकी 79 वीं जन्म जयंती पर कृतज्ञ मरुधरावासियों की ओर से कोटि-कोटि नमन् एवं भावभीनी श्रृद्धांजलि।
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