रियासतकालीन राज्याश्रयी संगीत परम्पराओं की समाप्ति के बाद भी जैसलमेर की धरती का संगीत कई राग-रागिनियों से भरा पड़ा है। आज भी कई सांस्कृतिक संस्थाएँ व संस्कृतिकर्मी है जो इस परम्परा को अक्षुण्ण व जीवंत बनाये हुए है। इनमें नादस्वरम् संस्थान की भूमिका अग्रणी है जिसने जैसाण की संगीत परम्परा को उदारतापूर्वक व्यापक व सुदृढ़ आधार प्रदान किया है व कई कलाकारों को प्रतिष्ठित किया है। ये कलाकार अब राजस्थान व देश के बड़े-बड़े सांस्कृतिक महोत्सवों में अपनी भागीदारी निभा कर जैसलमेर का गौरव बढ़ा रहे हैं। इन्हीं कलाकारों की श्रृंखला में एक प्रमुख नाम है - ईश्वरी भाटिया। जैसलमेर में गोविन्दलाल जी के घर माता जमनाबाई की कोख से 8 नवम्बर 1957 को जन्मी ईश्वरी भाटिया की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा जैसलमेर में ही हुई। शैशव से ही भजनानन्दी पारिवारिक माहौल की वजह से भजन लिखने व गाने का शौक इतना प्रखर रहा कि मात्र बारह वर्ष की आयु में उन्होंने भजन गायकी का हुनर पा लिया। पचपन वर्ष का सफर तय कर चुकी ईश्वरी आज मरुभूमि के अग्रणी भजन गायकों में शुमार हैं। ईश्वरी की भजन गायकी का माधुर्य इतना प्रगाढ़ है कि वे जब भी श्रीकृष्ण भक्ति रस प्रधान अपने भजनों के गायन में मस्त हो जाती हैं तब समय भी ठहरा हुआ प्रतीत होता है और आनंद रस हिलोरें लेता हुआ चतुर्दिक पसर जाता है। लोकगीतों के संकलन, प्रकाशन एवं रिकार्डिंग में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए सन् 2002 में कवि तेज लोक कला विकास समिति द्वारा संचालित मरु सांस्कृतिक केन्द्र एवं जैसलमेर लोक सांस्कृतिक संग्रहालय द्वारा सम्मानित भी किया गया। इसी प्रकार 2004 में ग्रीष्मकालीन संगीत प्रतिभा खोज शिविर में उन्हें गायन के लिए प्रमाण-पत्र दिया गया। सन् 2002 में गणेश महोत्सव एवं भक्ति संगीत के नियमित कार्यक्रमों में उल्लेखनीय भागीदारी के लिए जैसलमेर सार्वजनिक श्रीगणेश उत्सव समिति द्वारा प्रशंसा-पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। इसी प्रकार पिछले वर्षो में लोक संगीत, भजन गायकी एवं सांस्कृतिक विधाओं में उल्लेखनीय सेवाओं व उत्कृष्ट भागीदारी के लिए उन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका है। नादस्वरम् की शास्त्रीय संगीत कार्यशाला में ईश्वरी भाटिया तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल ( बाद में राष्ट्रपति भी रहीं ) के समक्ष अपनी साथी कलाकारों शोभा भाटिया व शोभा हर्ष के साथ श्रीकृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत गीत पेश कर चुकी हैं। जैसलमेर में राजस्थान दिवस, मरु महोत्सव, भजन संध्याओं, महोत्सवों, गणगौर पर्व आदि विभिन्न अवसरों पर ईश्वरी भाटिया अपनी भजन गायकी का जादू बिखेर चुकी हैं। चित्रकूट में सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित महोत्सव में भी ईश्वरी भाटिया एवं नाद स्वरम संस्था के साथी कलाकारों द्वारा प्रस्तुत ईश्वर को समर्पित भजन खूब सराहा गया। कई बड़ी-बड़ी हस्तियों के समक्ष ईश्वरी भाटिया अपनी भजन गायकी का माधुर्य बिखेर कर वाहवाही लूट चुकी हैं। भगवान श्रीकृष्ण को ही वे अपना आराध्य मानती हैं व कहती हैं कि जहाँ कहीं भजन गायकी या गीत पेश करती हैं, वे भगवान श्रीकृष्ण को ही ध्यान में रख कर अपनी प्रस्तुतियाँ देती हैं। यही कारण है कि भजन गायकी में उन्हें कुछ पाने का मौका मिला और जनता का खूब प्यार बटोर पायी हैं।
बुधवार, 14 नवंबर 2012
भजनों से झरता है रस माधुर्य -भजन गायिका ईश्वरी भाटिया में
कला-संस्कृति और साहित्य की त्रिवेणी बहाने वाली मरुधरा आदि काल से सांगीतिक माधुर्य का गढ़ रही है। यायावरीय प्रवृत्ति से भरे मरुकणों से अहर्निश प्रस्फुटित होता संगीत लोकजीवन में भी अपने चरम उत्कर्ष पर दिखाई देता रहा है। यहाँ के घरानों, मांगणियारों, संत भक्त कवियों की गायन परम्परा की ही तर्ज पर जन मानस में भी वैविध्यपूर्ण सांगीतिक परंपरा रही है। प्राचीन समय से यहाँ संस्कृति व साहित्य जगत की कई प्रतिभाओं की श्रृंखला अनवरत विद्यमान हैं।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें