'मेरी रखैल बन जा, तुझे दो लाख रुपए सालाना की जागीर दूंगा'
जयपुर. रोमियो-जूलियट, शीरी-फरहाद, लैला-मजनूं, सोहनी-माहिवाल और ना जाने ऐसे कितने गुमनाम जोड़े जो इश्क के दरियां में फना हो गए एक दूजे की खातिर। लेकिन महबूब के प्रति इनका समर्पण दुनिया वालों के दिलों में बस गया और आज उनकी कहानी लोगों की जुबां पर तैरती हैं। हालांकि इन किस्सों के बारे में प्रमाण जुटाना खासा मुश्किल हैं। इसके बावजू बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक पर आज पढि़ए राजस्थान की चर्चित प्रेम कहानियों में से एक केहर-कंवल की प्रेम कहानी...
आगे तस्वीरों के साथ पढि़ए केहर-कंवल की रोचक प्रेम कहानी...
गुजरात का बादशाह महमूद शाह अपने अहमदाबाद के किले में मारवाड़ से आई जवाहर पातुर की बेटी कंवल को लालच दे रहा था, " मेरी बात मान ले, मेरी रखैल बन जा। मैं तुझे दो लाख रूपये सालाना की जागीर दूंगा और तेरे सामने पड़े ये हीरे-जवाहरात भी तेरे। जिद मत कर मेरा कहना मान और मेरी रखैल बनना स्वीकार कर ले। इतना कहने के बाद बादशाह ने एक हीरों का हार कंवल के गले में डालने की कोशिश की, लेकिन कंवल ने बादशाह की बात ठुकराते हुए हीरों का हार तोड़कर फेंक दिया। कंवल की माँ जवाहर पातुर ने बेटी की हरकत पर बादशाह से माफी मांगते हुए बेटी को समझाने के लिए थोड़ा समय माँगा। माँ ने कंवल को बहुत समझाया कि बादशाह की बात मान ले और उसकी रखैल बन जा तू गुजरात पर राज करेगी। लेकिन कंवल ने माँ से साफ़ कह दिया कि वह "केहर" को प्यार करती है और उसकी हो चुकी है इसलिए गुजरात तो क्या, अगर कोई दुनियां का बादशाह भी आ जाये तो उसके किस काम का..कँवर केहरसिंह चौहान महमूद शाह के अधीन एक छोटीसी जागीर "बारिया" का जागीरदार था और कंवल उसे प्यार करती थी। कंवल की माँ ने उसे खूब समझाया कि तू एक वेश्या की बेटी है एक पातुर है, तुने किसी एक की चूड़ी नहीं पहन रखी है। लेकिन कंवल ने साफ कह दिया कि "केहर जैसे शेर के गले में बांह डालने वाली उस गीदड़ महमूद के गले कैसे लग सकती है"। पास के ही कमरे में उपस्थित महमूद के कानों में जब ये शब्द पड़े तो वह गुस्से से भर गया। उसने कंवल को महल में कैद करने के आदेश देने के साथ ही कंवल से कहा "अब तू देखना तेरे शेर को पिंजरे में मैं कैसे कैद करके रखूँगा।बादशाह ने अपने सिपहसालारों को बुलाकर एलान कर दिया कि केहर को कैसे भी कैद करने वाले को जागीर बारिया जब्त कर दे दी जाएगी। लेकिन केहर जैसे योद्धा से कौन टक्कर ले, दरबार में उपस्थित उसके सामन्तों में से एक जलाल आगे आया। उसके पास छोटी सी जागीर थी। सो लालच में उसने यह बीड़ा उठा लिया। प्लान के मुताबिक साबरमती नदी के तट पर शीतला माता के मेले के दिन महमूद शाह ने जलक्रीड़ा आयोजित की, जलाल एक तैराक योद्धा आरबखां को जलक्रीड़ा के समय केहर को मारने हेतु ले आया, जलक्रीड़ा शुरू हुई और आरबखां केहर पर पानी में ही टूट पड़ा। लेकिन केहर भी तैराकी व जल युद्ध में निपुण था। दोनों के बीच इस युद्ध में केहर ने आरबखां को मार डाला। केहर द्वारा आरबखां को मारने के बाद मुहमदशाह ने बात सँभालने हेतु केहर को शाबासी के साथ मोतियों की माला पहना शिवगढ़ की जागीर भी दी।बादशाह द्वारा आरबखां को मौत के घाट उतारने के बावजूद केहर को सम्मानित करने की बात केहर के सहयोगी सांगजी व खेतजी के गले नहीं उतरी। वे समझ गए कि बादशाह कोई षड्यंत्र रच रहा है उन्होंने केहर को आगाह भी कर दिया, लेकिन केहर को बादशाह ने यह कह कर रोक लिया कि दस दिन बाद फाग खेलेंगे और फाग खेलने के बहाने उसने केहर को महल के जनाना चौक में बुला लिया। इसके बाद षड्यंत्र पूर्वक उसे कैद कर एक पिंजरे में बंद कर कंवल के महल के पास रखवा दिया। ताकि वह अपने प्रेमी की दयनीय हालत देख दुखी होती रहे।कंवल रोज पिंजरे में कैद केहर को खाना खिलाने खुद आती और मौका देख केहर से निकलने के बारे में चर्चा करती। एक दिन कंवल ने एक कटारी व एक छोटी आरी केहर को लाकर दी। उसी समय केहर की दासी टुन्ना ने वहां सुरक्षा के लिए तैनात फालूदा खां को जहर मिली भांग पिला बेहोश कर दिया। इस बीच मौका पाकर केहर पिंजरे के दरवाजे को काट आजाद हो गया और किसी तरह महल से बाहर निकल अपने साथियों सांगजी व खेतजी के साथ अहमदाबाद से बाहर निकल आया।केहर की जागीर बारिया तो बादशाह ने जब्त कर जलाल को दे दी थी सो केहर मेवाड़ के एक सीमावर्ती गांव बठूण में आ गया और गांव के मुखिया गंगो भील से मिलकर आपबीती सुनाई। गंगो भील ने अपने अधीन साठ गांवों के भीलों का पूरा समर्थन केहर को देने का वायदा किया। अब केहर बठूण के भीलों की सहायता से गुजरात के शाही थानों को लुटने लगा, सारा इलाका केहर के नाम से कांपने लगा। केहर को मारने के लिए बादशाह ने कई योद्धा भेजे पर हर मुठभेड़ में बादशाह के योद्धा ही मारे जाते, महमूदशाह का कोई सामंत केहर के आगे आने की हिम्मत नहीं करता सो वह बार बार जलाल को ख़त लिखता कि केहर को ख़त्म करे। लेकिन एक दिन बादशाह को समाचार मिला कि केहर की तलवार के एक वार से जलाल के टुकड़े टुकड़े हो गए।कंवल केहर के ज्यों ज्यों किस्से सुनती, उतनी ही खुश होती और उसे खुश देख बादशाह को उतना ही गुस्सा आता पर वह क्या करे, बेचारा बेबस था। केहर को पकडऩे या मारने की हिम्मत उसके किसी सामंत व योद्धा में नहीं थी। कंवल महमूद शाह के किले में तो रहती पर उसका मन हमेशा केहर के साथ होता। वह महमूद शाह से बात तो करती पर ऊपरी मन से। केहर की वीरता का कोई किस्सा सुनती तो उसका चेहरा चमक उठता और वह दिन रात किले से भागकर केहर से जा मिलने के मनसूबे बनाती।छगना नाई की बहन कंवल की नौकरानी थी। एक दिन कंवल ने एक पत्र लिख छगना नाई के हाथ केहर को भिजवाया। केहर ने कंवल का सन्देश पढ़ा- "मारवाड़ के व्यापारी मुंधड़ा की बारात अजमेर से अहमदाबाद आ रही है। रास्ते में आप उसे लूटना मत और उसी बारात के साथ वेष बदलकर अहमदाबाद आ जाना। पहुँचने पर मैं दूसरा सन्देश आपको भेजूंगी। ईश्वर ने चाहा तो आपका और मेरा मनोरथ सफल होगा। अजमेर-अहमदाबाद मार्ग पर मुंधड़ा की बारात में केहर और उसके चार साथी बारात के साथ हो लिए केहर जोगी के वेश में था। उसके चारों राजपूत साथी हथियारों से लैस थे। मुंधड़ा भी खुश था कि हथियारों से लैस बांके राजपूतों को देख रास्ते में बारात को लुटने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ेगी।
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