हनुमानजी से आज तक नाराज है द्रोणागिरी
गोपेश्वर चमोली जिले का द्रोणागिरी गांव हनुमान जी से आज तक नाराज है। उन्हें मलाल है तो यह कि भगवान राम के अनुजलक्ष्मण की जिंदगी बचाने के लिए संजीवनी की तलाश में आए पवनपुत्र जड़ी की बजाए द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा लेकर ही लंका चले गए।
दो युग बीत गए, लेकिन वे हनुमान के इस कृत्य को भुला नहीं पाए। नाराजगी इस हद तक है कि गांव में रामलीला का मंचन तक नहीं किया जाता। पूरे क्षेत्र में हनुमानजी की पूजा वर्जित है। गांव में मान्यता है कि रामलीला के मंचन से कुछ न कुछ अशुभ अवश्य होता है। यह विश्वास इस कदर गहरा है कि उन्हें लगता है कि यदि हनुमानजी का नाम भी लिया तो पर्वत देवता अवश्य दंड देंगे। गांव के 70 वर्षीय कमल सिंह रावत बताते हैं कि 1980 में द्रोणागिरी में रामलीला का आयोजन किया गया। उस समय कुछ ऐसी विचित्र घटनाएं हुईं कि मंचन बंद करना पड़ा। इसके बाद किसी ने ऐसा दुस्साहस नहीं किया। इतना ही नहीं ग्रामीण बाबा रामदेव के करीबी सहयोगी आचार्य बालकृष्ण का उदाहरण देना भी नहीं भूलते।
75 वर्षीय बुजुर्ग अजब सिंह बताते हैं कि 2008 में आचार्य बालकृष्ण जड़ी-बूटियों पर शोध के सिलसिले में द्रोणागिरी आए। उन्हें गांव की परंपरा और मान्यताओं से अवगत करा दिया था। वह कहते हैं, ग्रामीणों के लाख मना करने के बावजूद उन्होंने गांव में हनुमान चालीसा का पाठ किया। ग्रामीण तभी आशंकित थे। अब परिणाम सामने है। ग्राम प्रधान द्रोणागिरी मंगल सिंह रावत इसे अंधविश्वास मानने को तैयार नहीं है। वह कहते हैं, पीढि़यों से चली आ रही मान्यता को चुनौती देना ठीक नहीं है।
75 वर्षीय बुजुर्ग अजब सिंह बताते हैं कि 2008 में आचार्य बालकृष्ण जड़ी-बूटियों पर शोध के सिलसिले में द्रोणागिरी आए। उन्हें गांव की परंपरा और मान्यताओं से अवगत करा दिया था। वह कहते हैं, ग्रामीणों के लाख मना करने के बावजूद उन्होंने गांव में हनुमान चालीसा का पाठ किया। ग्रामीण तभी आशंकित थे। अब परिणाम सामने है। ग्राम प्रधान द्रोणागिरी मंगल सिंह रावत इसे अंधविश्वास मानने को तैयार नहीं है। वह कहते हैं, पीढि़यों से चली आ रही मान्यता को चुनौती देना ठीक नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें