दीपावली पर अब नहीं दौड़ते ऊंट
बाड़मेर परंपराओं व त्योहारों का रिश्ता सदियों पुराना है। थार के ग्रामीण इलाकों में दीपावली को लेकर कई परंपराएं जुड़ी हुई है। लेकिन विकास की गंगा के साथ परंपराएं भी विलुप्त हो रही है। ग्रामीणों के अनुसार कई साल पहले दीपावली के दूसरे दिन रामा-श्यामा पर्व पर गांवों में ऊंट दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी। लेकिन बदलते समय के साथ यह परंपरा लुप्त हो गई है।
पहले जहां ढाणियों के आगे ऊंट बंधे दिखाई देते थे वहां अब वाहन खड़े नजर आ रहे है। किसानों ने ऊंट रखना छोड़ दिया है। ऐसे में ऊंट दौड़ की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
क्या है परंपरा: दीपावली के दूसरे दिन रामा श्यामा को गांव के चोहटे में पहले रेहाण होती थी। इसके बाद गांव के बांके नौजवान सजे धजे ऊंट लेकर ऊंट दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेते थे। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण इकट्ठे होकर ऊंट दौड़ का आनंद लेते थे। लेकिन मौजूदा समय में गांवों में ऊंटों की जगह वाहनों ने ले ली, तो ये परंपरा भी खत्म हो गई। यहां के लोगों का कहना है कि ऊंट की जगह मोटरसाइकिलों ने ले ली और नौजवान भी अपनी परंपराओं को लेकर लापरवाह हो गये हैं जिसके कारण ऊंट दौड़ की परंपरा खत्म सी हो गई है.
क्यों कम हुए ऊंट : ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के चलते हर गांव व ढाणी बिजली व सड़क से जुड़ गई, जिससे आवागमन में ऊंट की जगह वाहनों ने ले ली। इसके अलावा पहले ऊंट को कुओं से पानी खींचने के काम में लेते थे लेकिन अब कुओं ने ट्यूबवेल का रूप ले लिया है। इसके साथ ही पेट्रोल डीजल के लिए सबके पास पैसे का इंतजाम तो हो जाता है लेकिन ऊंटो के चारे के लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल होता है. चारा मंहगा हुआ है िजसके कारण अब ऊंटो को पालने से लोग कतराते हैं.
पहले जहां ढाणियों के आगे ऊंट बंधे दिखाई देते थे वहां अब वाहन खड़े नजर आ रहे है। किसानों ने ऊंट रखना छोड़ दिया है। ऐसे में ऊंट दौड़ की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
क्या है परंपरा: दीपावली के दूसरे दिन रामा श्यामा को गांव के चोहटे में पहले रेहाण होती थी। इसके बाद गांव के बांके नौजवान सजे धजे ऊंट लेकर ऊंट दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेते थे। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण इकट्ठे होकर ऊंट दौड़ का आनंद लेते थे। लेकिन मौजूदा समय में गांवों में ऊंटों की जगह वाहनों ने ले ली, तो ये परंपरा भी खत्म हो गई। यहां के लोगों का कहना है कि ऊंट की जगह मोटरसाइकिलों ने ले ली और नौजवान भी अपनी परंपराओं को लेकर लापरवाह हो गये हैं जिसके कारण ऊंट दौड़ की परंपरा खत्म सी हो गई है.
क्यों कम हुए ऊंट : ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के चलते हर गांव व ढाणी बिजली व सड़क से जुड़ गई, जिससे आवागमन में ऊंट की जगह वाहनों ने ले ली। इसके अलावा पहले ऊंट को कुओं से पानी खींचने के काम में लेते थे लेकिन अब कुओं ने ट्यूबवेल का रूप ले लिया है। इसके साथ ही पेट्रोल डीजल के लिए सबके पास पैसे का इंतजाम तो हो जाता है लेकिन ऊंटो के चारे के लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल होता है. चारा मंहगा हुआ है िजसके कारण अब ऊंटो को पालने से लोग कतराते हैं.
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