बुधवार, 7 नवंबर 2012

लोक गायकी संगीत की आत्मा बुन्दू खां लंगा

लोक गायकी संगीत की आत्मा बुन्दू खां लंगा

बाड़मेर बाड़मेर की मरुधरा ने लोक गायिकी के नायब सितारे दुनिया को दिए हें .लोक गीत संगीत के क्षेत्र में बाड़मेर जिले के लंगा और मांगनियार कलाकारों ने विश्व पटल पर अपनी ख़ास पहचान बने हें ,बाड़मेर जिले के बालोतरा उप खंड के नवातला निवासी लंगा बुन्दू खां ने राजस्थानी लोक गायिकी में अपनी खास पहचान बनाई हें ,बुंडू खान की गायिकी का मई खुद दीवाना रहा हूँ ,उनकी एक केस्सित को बीस साल तक सहेज कर रखा था .आखिरकार गम हो गई .बुन्दुखान की गायिकी में वो जादू हें जो श्रोताओ को झुमने पर मजबूर कर देता हें ,क्या कहते हें बुंडू खान
है शास्त्रीय गायकी लोक संगीत का दर्पण। यह शादी समारोह के साथ लोक परंपराओं, तीज त्यौहारों का संवाहक रहा है। यह विशुद्ध हमारी परंपराओं से जुड़ा हुआ है। यह जिगर की आवाज है जो आज के पाश्चात्य और कानफोड़ संगीत में नहीं है। यह कहना है राजस्थानी लोक गायकी के पुरोधा उस्ताद बुन्दू खा लंगा का है।
बुन्दू खां ने बताया कि लोक गायकी उन्हें विरासत में मिली है। उनकी कई पीढिय़ां लोक गायकी की परम्परा को जीवित रखे चली आ रही है। इस कला गायकी के नाम भी खूब दिलाया। लेकिन इस गायकी राजस्थानी लोक कलाकारों को सरकार से प्रोत्साहन न मिलने से सदियों पुरानी गायकी के स्वर कुछ फीके पड़ते जा रहे है। साजो समान और माहौल की कमी ने लोक के आगे रोजी रोटी का संकट खड़ा कर दिया है। उन्होंने बताया कि लोक गायकी में देशी साज प्राण डाल देते है। सारंगी, विशुद्ध रूप से राजस्थानी वाद्य मंत्र है। ढोलक, मोरचंग, अलगोजा, खड़ताल, ढोलक और हरमोनियम सभी देशी वाद्य यंत्रों में स्वरों की जो मिठास व अपना पन है वह इलेक्ट्रॉनिक्स वाद्य यंत्रों में नहीं है।ंराजस्थानी लोक गायकी के सरताज बुंदूखान लंगा और उनके साथियों ने जब मांड गायकी में केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देस... गाते हें तो तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हें । बुंदूखान देश-विदेश सहित लंदन के अल्बर्ट हाल में 13 बार प्रस्तुति दे चुके है। बुन्दू खान और उनके साथियों ने ऊंची तान और घुमावदार मुर्कियों के बीच सारंगी और खड़ताल से ऐसा समां बांधा की कि श्रोता लोक गायकी की सरिता में आकंठ डूब गए। करीब घंटे भर चले कार्यक्रम में बुन्दू खान और उनके साथियों ने एक के बाद दीगरे शानदार प्रस्तुतियां दीं। शुरुआत गणेश वंदना से हुई। गणेश वंदना के बोल थे महाराज गजानन आवो रे, मोरी सभा में रंग बरसावों रे...। बाद में बुन्दू खान ने म्हारो हैलो सूनो जी रामा पीर...सुनाया तो माहौल भक्तिमय हो गया था । उन्होंने मशहूर लोकगीत नीबूड़ा-नीबूड़ा लाय दो रे... सुनाया तो लोग रोमांचित हो उठे। गीत में स्वर के इतने उतार-चढ़ाव और खनक थी कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। इस दौरान खड़ताल और सारंगी ने बेजोड़ संगत की, जिससे गीत और रसीला हो गया। लोकगायक बुन्दू खान ने सूफी संगीत से रचे लोकगीत छाप तिलक सब छीनी रे..., लड़ी लुबा-लुबा रे..., दमादम मस्त कलंदर... बिंटी म्हारी सोने ऋ ....रुमाल ....जैसे लोक गीतों पर तो उनकी गायकी सिर्फ और सर सुनने से मतलब रखती हें

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें