यह कोई आम थाना नहीं है. थाने के नाम से जहां बड़ों-बड़ों को पसीना आ जाता है, वहीं बाड़मेर जिले के रामसर इलाके के थाने में लगभग 200 छोटे-छोटे बच्चे बड़े मजे से घूमते देखे जा सकते हैं. थाने में बच्चों के आने का सिलसिला 2006 से जारी है. इसके पीछे की कहानी और भी दिलचस्प है.
बात ऐसी है कि 2006 में बाड़मेर में भयंकर बाढ़ आई थी और यहां के स्कूलों में बारिश का पानी भर गया था. तब रामसर के पूर्व थाना प्रभारी सुरेंद्र कुमार ने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने का बीड़ा उठाया. उन्होंने थाना भवन में ही स्कूल लगाना शुरू कर दिया और मास्टरजी बन गए पुलिस के जवान. इस अनोखे स्कूल को नाम दिया गया, अपना स्कूल. जवान अपने कंधों पर आई इस अतिरिक्त जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक निभा सकें इसके लिए तत्कालीन एसपी उमेश चंद्र दत्ता ने थाने में अतिरिक्त पुलिसकर्मी लगाए. 20 बच्चों के साथ शुरू किए गए इस अनोखे स्कूल में आज 185 बच्चे पढ़ रहे हैं.
रामसर थाने के पुलिसकर्मी कानून-व्यवस्था संभालने के साथ-साथ शिक्षक की दोहरी भूमिका भी निभा रहे हैं. पुलिसकर्मियों के अलावा स्कूल में चार टीचर भी हैं, जिन्हें अहमदाबाद के एनजीओ दर्पण ऐकेडमी ने यहां तैनात किया है. टीचरों का वेतन पुलिस और एनजीओ चंदा करके इकट्ठा करते हैं.
रामसर थाना अधिकारी नरपतदान चरण कहते हैं, ‘‘एनजीओ की संचालक सारा बहन और सामाजिक कार्यकर्ता शफी मोहम्मद की मदद के चलते स्कूल के संचालन में कोई दिक्कत नहीं आती. लगभग पूरा खर्चा वे ही उठाते हैं. जबकि बच्चों की छोटी-मोटी जरूरतें थाने की ओर से पूरी कर दी जाती हैं.’’ बच्चों के कंप्यूटर टीचर कांस्टेबल सुभान अली और उदाराम कहते हैं, ‘‘हम बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दे रहे हैं ताकि वे अच्छे नागरिक बनें.’’
थाने में स्कूल लगने से बच्चों के मन से पुलिस के प्रति भय भी कम हो रहा है. पुलिस अधीक्षक राहुल बारहट मानते हैं कि इस तरह बच्चे आइपीएस बनने को प्रेरित होंगे. वे आगे कहते हैं, ‘‘हमारा जीवन आम जनता को समर्पित है. यह हमारा सामाजिक दायित्व बनता है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे.’’
इस अनोखे स्कूल में आने वाले ज्यादातर बच्चे कमजोर आर्थिक वर्ग से हैं. उनके माता-पिता शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर सकते इसलिए स्कूल में फीस नहीं ली जाती. अपना स्कूल में पांचवीं में पढ़ रही कुमारी लीला और सुरेश कुमार कहते हैं, ‘‘यह स्कूल नहीं होता तो हम कभी पढ़ ही नहीं पाते. घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है.’’ चौथी क्लास के भरत कुमार और कुमारी बबीता कहती हैं, ‘‘पुलिसवाले तो बहुत अच्छे होते हैं. हमें उनसे जरा भी डर नहीं लगता. हमें नहीं लगता कि किसी और स्कूल में इतनी अच्छी पढ़ाई होती होगी.’’
शायद देश में यह इकलौता ऐसा अनूठा थाना होगा जहां एक ओर अपराधी हैं तो दूसरी ओर नन्हे बच्चे. यह थाना निश्चित ही देशभर में मिसाल कायम कर रहा है. अच्छी बात यह है कि स्कूल शुरू होने के बाद से अब तक थाने के सात प्रभारी बदल चुके हैं लेकिन शिक्षा का उजियारा फैलाती इस अलख को किसी ने भी बुझने नहीं दिया है
बात ऐसी है कि 2006 में बाड़मेर में भयंकर बाढ़ आई थी और यहां के स्कूलों में बारिश का पानी भर गया था. तब रामसर के पूर्व थाना प्रभारी सुरेंद्र कुमार ने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने का बीड़ा उठाया. उन्होंने थाना भवन में ही स्कूल लगाना शुरू कर दिया और मास्टरजी बन गए पुलिस के जवान. इस अनोखे स्कूल को नाम दिया गया, अपना स्कूल. जवान अपने कंधों पर आई इस अतिरिक्त जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक निभा सकें इसके लिए तत्कालीन एसपी उमेश चंद्र दत्ता ने थाने में अतिरिक्त पुलिसकर्मी लगाए. 20 बच्चों के साथ शुरू किए गए इस अनोखे स्कूल में आज 185 बच्चे पढ़ रहे हैं.
रामसर थाने के पुलिसकर्मी कानून-व्यवस्था संभालने के साथ-साथ शिक्षक की दोहरी भूमिका भी निभा रहे हैं. पुलिसकर्मियों के अलावा स्कूल में चार टीचर भी हैं, जिन्हें अहमदाबाद के एनजीओ दर्पण ऐकेडमी ने यहां तैनात किया है. टीचरों का वेतन पुलिस और एनजीओ चंदा करके इकट्ठा करते हैं.
रामसर थाना अधिकारी नरपतदान चरण कहते हैं, ‘‘एनजीओ की संचालक सारा बहन और सामाजिक कार्यकर्ता शफी मोहम्मद की मदद के चलते स्कूल के संचालन में कोई दिक्कत नहीं आती. लगभग पूरा खर्चा वे ही उठाते हैं. जबकि बच्चों की छोटी-मोटी जरूरतें थाने की ओर से पूरी कर दी जाती हैं.’’ बच्चों के कंप्यूटर टीचर कांस्टेबल सुभान अली और उदाराम कहते हैं, ‘‘हम बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दे रहे हैं ताकि वे अच्छे नागरिक बनें.’’
थाने में स्कूल लगने से बच्चों के मन से पुलिस के प्रति भय भी कम हो रहा है. पुलिस अधीक्षक राहुल बारहट मानते हैं कि इस तरह बच्चे आइपीएस बनने को प्रेरित होंगे. वे आगे कहते हैं, ‘‘हमारा जीवन आम जनता को समर्पित है. यह हमारा सामाजिक दायित्व बनता है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे.’’
इस अनोखे स्कूल में आने वाले ज्यादातर बच्चे कमजोर आर्थिक वर्ग से हैं. उनके माता-पिता शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर सकते इसलिए स्कूल में फीस नहीं ली जाती. अपना स्कूल में पांचवीं में पढ़ रही कुमारी लीला और सुरेश कुमार कहते हैं, ‘‘यह स्कूल नहीं होता तो हम कभी पढ़ ही नहीं पाते. घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है.’’ चौथी क्लास के भरत कुमार और कुमारी बबीता कहती हैं, ‘‘पुलिसवाले तो बहुत अच्छे होते हैं. हमें उनसे जरा भी डर नहीं लगता. हमें नहीं लगता कि किसी और स्कूल में इतनी अच्छी पढ़ाई होती होगी.’’
शायद देश में यह इकलौता ऐसा अनूठा थाना होगा जहां एक ओर अपराधी हैं तो दूसरी ओर नन्हे बच्चे. यह थाना निश्चित ही देशभर में मिसाल कायम कर रहा है. अच्छी बात यह है कि स्कूल शुरू होने के बाद से अब तक थाने के सात प्रभारी बदल चुके हैं लेकिन शिक्षा का उजियारा फैलाती इस अलख को किसी ने भी बुझने नहीं दिया है
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