शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार जैसलमेर के डॉ. आईदान सिंह को,


राजस्थानी साहित्य अकादमी पुरस्कार घोषित


सम्मान आईदान सिंह



सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार जैसलमेर के डॉ. आईदान सिंह को, जयपुर के डॉ. गोविंद शंकर को शिवचंद भरतिया गद्य पुरस्कार


राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने वर्ष 2012-13 के लिए पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। इस वर्ष सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार जैसलमेर के साहित्यकार डॉ. आईदान सिंह भाटी को उनकी काव्य पुस्तक 'आंख हियै रा हरियल सपना' के लिए दिया गया है। उन्हें 71 हजार रु. प्रदान किए जाएंगे। पद्य विधा का गणेशलाल व्यास उस्ताद पुरस्कार राजस्थानी साहित्यकार अजमेर निवासी विनोद सोमानी 'हंस' को उनकी पुस्तक 'म्हैं अभिमन्यु' के लिए दिया जाएगा।

उन्हें 51 हजार रु. प्रदान किए जाएंगे। शिवचंद भरतिया गद्य पुरस्कार जयपुर के डॉ. गोविंद शंकर शर्मा को उनकी पुस्तक 'राजस्थानी भाषा शास्त्र' के लिए दिया जाएगा। उन्हें भी 51 हजार रु. का पुरस्कार दिया जाएगा। इसी प्रकार 51 हजार रुपए का मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा साहित्यकार पुरस्कार के लिए बीकानेर के कथाकार प्रमोद शर्मा की पुस्तक 'राम जाणै' को चयनित किया गया है । लेखक की प्रथम प्रकाशित कृति के लिए दिए जाने वाला 31 हजार रु. का सांवर दइया पैली पोथी पुरस्कार जोधपुर की कवयित्री किरण राजपुरोहित 'नितिला' को उनकी कृति 'ज्यूं सैणी तितली' के लिए मिलेगा। राजस्थानी बाल साहित्यकार पुरस्कार सलूम्बर (उदयपुर) की डॉ. विमला भंडारी को उनकी बाल साहित्य की पुस्तक 'अनमोल भेंट' के लिए दिया जाएगा।

अकादमी के अध्यक्ष श्याम महर्षि ने बताया कि इन पुरस्कारों के अलावा इस वर्ष तीन नए पुरस्कारों के प्रस्ताव भी राज्य सरकार से अनुमोदित हो गए हैं। उनके लिए भी शीघ्र आवेदन मांगे जाएंगे। इस बार पुरस्कारों की राशि भी बढ़ाई गई है।

इन्होंने किया पुरस्कारों पर निर्णय :

पुरस्कार प्रारंभिक जांच तदर्थ उप समिति में भवानीशंकर व्यास 'विनोद', विद्यासागर शर्मा , माधव नागदा शामिल थे। पुरस्कार वार निर्णायक मंडल में डॉ. सोनाराम विश्नोई, शिवराज छंगाणी, डॉ. मंगत बादल, डॉ.रमेश मयंक, कल्याणसिंह राजावत, डॉ. गोरधन सिंह शेखावत, डॉ. ओमप्रकाश सारस्वत, कुंदन माली, डॉ. भंवरसिंह सामौर, डॉ. मदन सैनी, देवकिशन राजपुरोहित, मोहन आलोक, मालचंद तिवाड़ी, डॉ. गजा दान चारण, शारदा कृष्ण, ज्योतिपुंज, बुलाकी शर्मा एवं शंकरसिंह राजपुरोहित रहे।

मातृ भाषा जीवन की जड़ : भाटी

बाड़मेर जैसलमेर जिले के नोख गांव में सामान्य किसान परिवार में जन्मे भाटी ने गांव में ही प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। बाल्यकाल से ही साहित्य क्षेत्र में रूचि रखने वाले भाटी वर्ष १९७५ में जोधपुर विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष १९८२ में हिंदी कॉलेज व्याख्याता बने। व्याख्याता के तौर पर डॉ. भाटी बाड़मेर, अलवर व पाली कॉलेज में भी कार्यरत रहे। भाटी ने बातचीत में बताया कि 'आंख हियै रा हरियल सपना' काव्य पुस्तक का प्रमुख संदेश मातृ भाषा जीवन की जड़ है। उन्होंने युवाओं से जीवन में ऊंचाइया हासिल करने के लिए वैश्वीकरण से बचकर अपनी जड़ों की ओर लौटने का आह्वान किया।

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