लाहौर। हिंदुस्तान में भले ही अजमल कसाब को उसके गुनाह की सजा मिल गई हो लेकिन पाकिस्तान में कोई उसका नाम लेने वाला नहीं है। उसे जिस फरीदकोट गांव का बताया गया, वहां उसके परिवार का कोई शख्स नहीं है। कुछ साल पहले इस गांव के जिस घर को मीडिया ने उसका घर बताया था, आज वहां किरायेदार रह रहा है। किरायेदार का कहना है कि वह साढ़े तीन साल से इस घर में रह रहा है।
पहली बार जब कसाब का नाम पाकिस्तान से जुड़ा था तो पड़ोसी मुल्क ने इससे साफ इंकार कर दिया था। फरीदकोट गांव के लोग आज भी इस बात से इंकार कर रहे हैं कि कसाब का अब गांव से कोई ताल्लुक रहा है। गांव के एक बुजुर्ग का कहना है कि आमिर कसाब (कसाब के पिता) और उसकी पत्नी कुछ वक्त फरीदकोट में रहे थे।
गांव के बड़े बुजुर्ग से लेकर युवाओं तक को इस बात की साफ हिदायत दी गई है कि कसाब के बारे में किसी से बात नहीं करे। स्थानीय इमाम ने मस्जिद से ऐलान किया कि कसाब के मामले से पूरे गांव के लोगों को दूर रहना चाहिए। नतीजा, यह है कि फरीदकोट में कोई भी कसाब के बारे में बात नहीं करना चाहता है।
बुधवार को पुणे में जैसे ही कसाब को फांसी दी गई, फरीदकोट में पत्रकारों की जमात पहुंचनी शुरू हो गई। लेकिन उन्हें जाने से प्रशासन ने रोक दिया। कुछ चुनिंदा पत्रकार ही वहां पहुंच सके। पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' के प्रतिनिधि भी बुधवार को फरीदकोट गए। उनका कहना है कि फरीदकोट से कसाब का रिश्ता एक रहस्य बना हुआ है। दिसंबर, 2008 में जिस घर को कसाब का घर बताया गया था, वह घर आज भी वैसा ही है। लेकिन घर में रहने वाले शख्स का कहना है कि वह साढ़े तीन साल से किराये पर उस घर में रह रहा है।
पहली बार जब कसाब का नाम पाकिस्तान से जुड़ा था तो पड़ोसी मुल्क ने इससे साफ इंकार कर दिया था। फरीदकोट गांव के लोग आज भी इस बात से इंकार कर रहे हैं कि कसाब का अब गांव से कोई ताल्लुक रहा है। गांव के एक बुजुर्ग का कहना है कि आमिर कसाब (कसाब के पिता) और उसकी पत्नी कुछ वक्त फरीदकोट में रहे थे।
गांव के बड़े बुजुर्ग से लेकर युवाओं तक को इस बात की साफ हिदायत दी गई है कि कसाब के बारे में किसी से बात नहीं करे। स्थानीय इमाम ने मस्जिद से ऐलान किया कि कसाब के मामले से पूरे गांव के लोगों को दूर रहना चाहिए। नतीजा, यह है कि फरीदकोट में कोई भी कसाब के बारे में बात नहीं करना चाहता है।
बुधवार को पुणे में जैसे ही कसाब को फांसी दी गई, फरीदकोट में पत्रकारों की जमात पहुंचनी शुरू हो गई। लेकिन उन्हें जाने से प्रशासन ने रोक दिया। कुछ चुनिंदा पत्रकार ही वहां पहुंच सके। पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' के प्रतिनिधि भी बुधवार को फरीदकोट गए। उनका कहना है कि फरीदकोट से कसाब का रिश्ता एक रहस्य बना हुआ है। दिसंबर, 2008 में जिस घर को कसाब का घर बताया गया था, वह घर आज भी वैसा ही है। लेकिन घर में रहने वाले शख्स का कहना है कि वह साढ़े तीन साल से किराये पर उस घर में रह रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें