काबुल. उस लड़की की आंखों में कुछ था। तभी तो वह प्रसिद्ध फोटो पत्रकार 17 साल बाद उसे ढूंढता हुआ अफगानिस्तान की धूल फांक रहा था। हालांकि 17 साल पहले उसे नहीं पता था कि वह जो फोटो क्लिक कर रहा है, वह इतनी लोकप्रिय हो जाएगी कि उसे फिर से उसके पास लौटना पड़ेगा।
वर्ष 1984 में फोटोग्राफर स्टीव मैक्यूरी ने पाकिस्तान में शरणार्थी कैंप में अफगानी लड़की को देखा और उसकी तस्वीर को अपने कैमरे में कैद कर लिया। वह दौर था, जब अफगानिस्तान की धरती सोवियत यूनीयन और मुजाहिद्दीनों के लिए लड़ाई का अखाड़ा बनी हुई थी।
जून 1985 में 'नेशनल 'जियोग्राफी पत्रिका' ने अफगानी लड़की को अपने कवर पेज पर जगह दी. फिर 17 साल तक दुनिया उसे भूल गई और न ही कोई उस रहस्यमयी लड़की का नाम जान सका। उसे याद था कि फोटो लेने के दौरान कितनी शर्म आ रही थी। वह थोड़ा गुस्सा भी हुई थी। उसने न पहले फोटो खिंचवाई थी और न ही अगले 17 साल तक फिर कभी फोटो खिंचवाने वाली थी। लड़की का गांव पाक-अफगान सीमा से 6 घंटे की दूरी पर था। लड़की के घर पहुंचते ही उसका नाम पूछा, उसने बताया- 'शरबत गुल'। वह एक पश्तून थी, जो आदिवासी लड़ाका जाति होती है। 17 साल पहले की शरबत और अब में बहुत फर्क था। उसे अपनी सही उम्र नहीं पता थी, लेकिन उसकी आंखों में अब भी चमक बरकरार थी। एक जवान लड़की 17 साल बाद बूढ़ी महिला जैसी दिखने लगी थी। वह अफगानी लड़की थी, जो ऐसे समाज से आती है, जिसका किसी अनजान आदमी को चेहरा दिखाना गलत समझा जाता है। स्टीव को उसकी आंखें और मासूमियत पसंद आई। स्टीव के काफी मिन्नतें करने के बाद उस लड़की ने अपनी तस्वीर खींचने की इजाजत दी। जून 1985 के मैगजीन कवर पर इस लड़की को तस्वीर छापी गई।
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