शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

यहां सौ वर्ष पुराना है रामलीला का इतिहास



गुडग़ांव। साइबर सिटी गुडग़ांव की लगभग सभी कॉलोनियों और गांवों में रामलीला का लोग आनंद उठाते नजर आ जाएंगे। नेशनल हाई-वे के साथ लगे झाड़सा गांव में लगभग 100 वर्ष पहले बाबा जुगलदास ने श्री कृष्ण मंदिर में रामलीला की शुरुआत की थी। 1980 में यहां से उठकर रामलीला राम तालाब के पास पहुंच गई।

कुछ वर्ष बाद रामलीला का दो भाग हो गया, एक ग्रुप ने कृष्ण मंदिर में दोबारा रामलीला शुरू कर दिया, जबकि दूसरा ग्रुप राम तालाब के पास ही रहा। कुछ ही वर्षों के बाद दोनों ग्रुप फिर से एक हो गया। इस दौरान कुछ युवाओं ने स्कूल के पास रामलीला का मंचन शुरू कर दिया, जिसे मस्जिद वाली रामलीला करार दिया गया। यहां अब भी रामलीला चल रही है।

30 वर्षों से सक्रिय हैं कलाकार

स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि पूरे जिले में पहले केवल झाड़सा गांव में ही रामलीला होती थी, जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे। गांव के श्रीकृष्ण मंदिर स्थित रामलीला में गांव के लोग ही सभी भूमिका निभाते हैं। रामलीला में कथा-वाचक चौपाइयां सुनाते हैं, जिसे कलाकार अपने संवाद के माध्यम से अर्थ स्पष्ट करते हैं। यह यहां के रामलीला की खासियत है। यहां केवल कौशिक 30 वर्षों से रावण का किरदार निभाते आ रहे हैं।
60 साल के होने के बाद भी उनकी आवाज और अभिनय में पहले जैसा जोश बरकरार है। वे चौपाइयों के सहारे संवाद करते हैं। रामलीला में राज सिंह सैनी भी 30 वर्षों से कथा-वाचक का काम कर रहे हैं।
झाड़सा में राम वनवास का मंचन-
शुक्रवार को आदर्श श्री कृष्ण मंदिर रामलीला द्वारा राम वनवास की कथा प्रस्तुत की गई। कलाकारों ने दिखाया कि कैसे माता कैकेयी पति दशरथ से तीन वरदान मांगती हैं, जिसमें से एक वर राम के लिए वनवास का होता है। अयोध्यावासी दुखी मन से राम को विदा करते हैं। इस दौरान छोटा भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता भी उनके साथ होती हैं। भगवान राम के वनवास जाने के दृश्य को कलाकारों ने इस कदर पेश किया कि उपस्थित लोगों की आंखों से आंसू झलक पड़े।
मंदिर की रामलीला कमेटी के सदस्य शीतल कुमार सोहनी ने बताया कि रामलीला का प्रत्येक किरदार अपने रोल को बेहद खूबी से निभाता है। मंचन किए जाने से पहले कई बार रामलीला का रिहर्सल किया जाता है। शनिवार की रात यहां भरत मिलाप दिखाया जाएगा।

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