शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

जैसलमेर रासला गांव के पास स्थित देगराय माता मंदिर



जैसलमेर  रासला गांव के पास स्थित देगराय माता मंदिर 

राजस्थान का विविध रंगी लोक जीवन अपने वैविध्य के सौंदर्य से किसी का भी मन मोह सकता है और जब जीवन के हर क्षेत्र में रंगों का वैविध्य हो तो भला आस्था का क्षेत्र अछूता कैसे रह सकता है. शायद इसीलिए राजस्थान में अनेक लोक देवताओं और लोक देवियों की अमूल्य उपस्थिति जन-जीवन से अभिन्न जुड़ाव रखती है 


एक जागृत शक्ति-पुंज है - देगराय . देगराय आवड़ माता का ही एक रूप है कहते हैं जब सिंध के शासक उमर सूमरा ने आवड़ माता से विवाह का प्रस्ताव रखा तो देवी ने उसका वध करके जैसलमेर की ओर प्रस्थान किया उस शक्ति पुंज ने एक स्थान पर भैंसे के सिर को देग बनाकर उसमे अपनी चुनरी रंगी तब से उनका एक नाम देगराय भी हुआ. भाटी राजवंश पर आवड़ माता की विशेष कृपा रही और भाटी राजवंश के ही जैसलमेर से बाड़मेर जाने के रास्ते में ही देवीकोट से कुछ दूरी पर है देगराय का प्रकृति के सानिध्य में बसा एक खूबसूरत सा मंदिर। किसी भी स्थान के लोक देवी-देवता इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अपने दौर के वो नायक हैं जिन्होंने जनमानस के लिए संघर्ष किया और शुभ की स्थापना का साहस दिखाया आप पूरे भारत में कहीं भी चले जाइए लोक देवता हर जगह होंगे और साथ ही होंगी बुराई के विरुद्ध उनके संघर्ष की अनेक कहानियां . कालांतर में जनमानस उन्हें देवी-देवता बनाकर पूजता भी इसीलिए है क्योंकि वो भी सदैव शुभ और सत्य की सत्ता का आग्रही है. दूसरी बात जो बेहद महत्वपूर्ण है वो है लोक देवी-देवताओं का प्रकृति से अमिट जुड़ाव अधिकांश लोक देवी-देवताओं का किसी वृक्ष से जोड़ा जाना भी शायद जन-जन में प्रकृति से जुड़ाव की भावना का संचार करने का कोई भारतीय विचार ही रहा होगा. देगराय के मंदिर में मुझे सबसे अधिक आकर्षित किया वहां की शांति ने. साथ ही मंदिर के पीछे एक झील हें .सामने ही औरन में देगाराय माता को मूल मंदिर हें ,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें