शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

हिन्दी री हैवाई छोडो भासा मायड़ बोलो रै।

हिन्दी री हैवाई छोडो

विनोद सारस्वत Vinod Saraswat 

भासा मायड़ बोलो रै।
हिन्दी री हैवाई छोडो, भासा मायड़ बोलो रै।
परभासा रै भूतां नै दूधै रौ तेज दिखाद्यो रै।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

छाछ लेवण नैं आई आ तो घर री धिराणी बणगी रै।
रोटी-रूजगार खोस्या इण तो दफ्तर्यां में छागी रै।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

साठ बरसां सूं छाती पर मूंग दळ रैयी
संस्क्रति रौ करियो कबाड़ो रै।
इण रौ बाळण बाळौ रै, इण रै लांपौ लगाद्यो रै।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

पांच परदेसां रै पांण आ तो रास्ट्रभासा बणगी रै।
जबरी पोल मचाई इण तो समझ नाथी रौ बाड़ो रै।
फरजी डिगर्यां ले-ले आया धाड़वीं, नौकर्यां कब्जाई रै।
इण रौ नखरो भांगौ रै, राजस्थानी बोलो रै, भासा मायड़ बोलो रै।

जद बाईस भासावां संविधान सीकारी, रास्ट्रभासा कुणसी रै ?
राजस्थानी री बळी लेय'र आ तो हुयगी राती-माती रै।
इण नैं थोड़ी छांगो रै, इण री कड़तू तोड़ो रै, राजस्थानी बोलो रै।

जागो ! छात्र-छत्रपती, खोल उणींदी आंखड़ल्यां।
देद्यो नाहर सी दकाळ रै, धरती धूतै,
आभौ गरजै, धूजै भारत री सरकार रै।
छांटा-छिड़कां सूं नीं बूझैला आ मान्यता री आग रै।
छात्र-छत्रपती जागो रै, भासा मायड़ बोलो रै।

छात्र-छत़्रपती जागो रै ! ओ लूंठा सेठां जागो रै !
ओ बीकां, जोधां, मेड़तियां, सेखावतियां, सिसोदियां जागो रै।
थै क्यूं लारे रेवौ ? गोदारां मीणा भील-पड़िहारां रै ।
जात-पांत रै टंटै नैं छोडो एकमेक सुर सूं भरो राजस्थानी हुंकारौ रै।
भासा मायड़ बोलो रै।

साठ बरसां सूं उडीक रैया कै भारत रा भाग्यविधाता टूठैला,
पण घोर खेंच सूती सरकार सत लेवण नैं अड़गी रै।
इण री घोर खोलण सारू बजावो राजस्थानी धूंसौ रै।
राजस्थानी बोलो रै, भासा मायड़ बोलो रै।
हिन्दी री हैवाई छोडो, भासा मायड़ बोलो रै।

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