त्योहारों से पहले महंगी होगी चीनी
नई दिल्ली। डीजल व रसोई गैस के बाद अब त्योहारी सीजन से ठीक पहले चीनी के दाम बढ़ाने की तैयारी है। अगले मंगलवार को कैबिनेट की होने वाली बैठक में राशन दुकानों से बांटी जाने वाली चीनी की मूल्य वृद्धि पर फैसला हो सकता है। कीमत बढ़ोतरी का यह फैसला एक दशक बाद किया जाएगा।
खाद्य मंत्रालय के कैबिनेट नोट में चीनी के दाम कितने बढ़ाए जाने हैं,इसका स्पष्ट उल्लेखन नहीं किया गया है लेकिन बिना सब्सिडी वाली चीनी का मूल्य 25.37 रूपए प्रति किलो जरूर बताया गया है। मंत्रालय ने यह फैसला कैबिनेट पर छोड़ दिया है। फिलहाल राशन की दुकानों से गरीबों को 13.50 रूपए प्रति किलो की रियायती दर पर चीनी दी जाती है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों से गरीबों को कुल 27 लाख टन चीनी का वितरण किया जाता है।
मिलों को अपने कुल उत्पादन का 10 फीसदी चीनी रियायती दर पर सरकार को देना होता है। इसे लेवी चीनी भी कहा जाता है। सरकार मिलों से 19.10 रूपए प्रति किलो के भाव पर चीनी की खरीद करती है लेकिन गरीब उपभोक्ताओं को 13.50 रूपए से 15 रूपए प्रति किलो की दर से बेचा जाता है। मूल्यों के इस अंतर का भुगतान केंद्रीय सब्सिडी के माध्यम से किया जाता है।
खाद्य मंत्रालय के कैबिनेट नोट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि इस अंतर के भुगतान का बोझ राज्यों पर डाला जाना चाहिए। खासतौर पर मिलों से चीनी की ढुलाईए उत्पाद शुल्क का भुगतान और अन्य खर्च का दायित्व राज्यों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। कैबिनेट नोट में यह भी कहा गया है कि चीनी मूल्य में प्रति एक रूपये की वृद्धि से 270 करोड़ रूपए की खाद्य सब्सिडी कम हो जाएगी।
नई दिल्ली। डीजल व रसोई गैस के बाद अब त्योहारी सीजन से ठीक पहले चीनी के दाम बढ़ाने की तैयारी है। अगले मंगलवार को कैबिनेट की होने वाली बैठक में राशन दुकानों से बांटी जाने वाली चीनी की मूल्य वृद्धि पर फैसला हो सकता है। कीमत बढ़ोतरी का यह फैसला एक दशक बाद किया जाएगा।
खाद्य मंत्रालय के कैबिनेट नोट में चीनी के दाम कितने बढ़ाए जाने हैं,इसका स्पष्ट उल्लेखन नहीं किया गया है लेकिन बिना सब्सिडी वाली चीनी का मूल्य 25.37 रूपए प्रति किलो जरूर बताया गया है। मंत्रालय ने यह फैसला कैबिनेट पर छोड़ दिया है। फिलहाल राशन की दुकानों से गरीबों को 13.50 रूपए प्रति किलो की रियायती दर पर चीनी दी जाती है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों से गरीबों को कुल 27 लाख टन चीनी का वितरण किया जाता है।
मिलों को अपने कुल उत्पादन का 10 फीसदी चीनी रियायती दर पर सरकार को देना होता है। इसे लेवी चीनी भी कहा जाता है। सरकार मिलों से 19.10 रूपए प्रति किलो के भाव पर चीनी की खरीद करती है लेकिन गरीब उपभोक्ताओं को 13.50 रूपए से 15 रूपए प्रति किलो की दर से बेचा जाता है। मूल्यों के इस अंतर का भुगतान केंद्रीय सब्सिडी के माध्यम से किया जाता है।
खाद्य मंत्रालय के कैबिनेट नोट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि इस अंतर के भुगतान का बोझ राज्यों पर डाला जाना चाहिए। खासतौर पर मिलों से चीनी की ढुलाईए उत्पाद शुल्क का भुगतान और अन्य खर्च का दायित्व राज्यों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। कैबिनेट नोट में यह भी कहा गया है कि चीनी मूल्य में प्रति एक रूपये की वृद्धि से 270 करोड़ रूपए की खाद्य सब्सिडी कम हो जाएगी।
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