बाड़मेर भारत में 23 फीसदी लोग धन के अभाव में उपचार नहीं ले पाते हैं, जबकि अस्पताल जाने वालों में 65 फीसदी ही आवश्यक दवाइयां खरीद पाते हैं। महंगी दवाइयां खरीदने के लिए 38 फीसदी लोगों को कर्ज लेना पड़ता है। अगर डॉक्टर चाहें तो यह स्थिति सुधर सकती है। यह बात राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉपरेरेशन (आरएमएससी) के एमडी डॉ. समित शर्मा ने शनिवार शाम कलेक्ट्रेट कोंफ्रेस हॉल में आयोजित कार्यशाला में डॉक्टरों को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रचलित मल्टी विटामिन दवाइयां व कफ सिरप के परिणाम संतोषजनक नहीं हैं। इसके लिए जरूरी है कि डॉक्टर मरीजों को अनावश्यक दवाइयां नहीं लिखें। जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध नहीं होने पर महंगी ब्रांडेड दवाइयों की जगह सस्ती ब्रांडेड दवाइयां लिखें।डॉ. शर्मा ने अपनी बात रखने के लिए कई तरह के उदाहरण पेश किए। उन्होंने मीडिया की रिपोर्टो का हवाला देते हुए केस स्टडीज पेश की जिसमें बताया गया कि कैंसर के उपचार के लिए किस तरह डॉक्टर मरीजों को महंगी दवाइयां लेने पर मजबूर करते हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान में मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के माध्यम से आवश्यक दवाइयां पूरी तरह से निशुल्क उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इसका लाभ हर मरीज को मिले, यह जिम्मेदारी डॉक्टरों की है। कार्यशाला में उन्होंने डॉक्टरों के सवालों के जवाब भी दिए।
कार्यशाला को जिला कलेक्टर डॉ वीणा प्रधान पुलिस अधीक्षक राहुल बारहट भी . उपस्थित थे सीएमएचओ डॉ. हेमराज सोनी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यशाला में प्रशासनिक व निजी अस्पतालों के डॉक्टर मौजूद रहे।
जेनेरिक से एलर्जी क्यों
डॉ. शर्मा ने कहा कि डॉक्टरों को जेनेरिक दवाओं से एलर्जी क्यों होनी चाहिए, जबकि वही ब्रांडेड कंपनियां अपनी जेनेरिक दवाइयां बना रही हैं। उन्होंने बताया कि देश से हर वर्ष 45 हजार करोड़ रुपए की जेनेरिक दवाइयां बाहर जा रही हैं। यही दवाइयां सरकार खरीद कर निशुल्क वितरण कर रही है। कई कंपनियां अपनी ब्रांडेड दवाइयां सरकार को बहुत कम कीमत पर दे रही हैं।
एमआर कैसे पढ़ाएगा डॉक्टर को
उन्होंने कहा कि कई ऐसी दवाइयां लिखी जा रही हैं जो निशुल्क नहीं मिल रहीं, जबकि मरीज का उपचार उपलब्ध दवाइयां से संभव है। उन्होंने शुक्रवार को ही ब्यावर अस्पताल में हुए वाकिये का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां के डॉक्टर ने केवल यह कह कर ऐसा फॉर्मूला लिख दिया कि यह अच्छा है, जबकि डॉक्टर को इसके लिए पूरी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। उन्होंने डॉक्टर्स से पूछा कि जो ज्ञान आपने उपचार का प्राप्त किया है, उससे बढ़ कर कोई एमआर आपको कैसे पढ़ा सकता है?
भगवान बनने की जिम्मेदारी भी निभानी होगी
डॉ. शर्मा ने कहा, ‘समाज में डॉक्टर को भगवान को दर्जा दिया गया है। इसलिए जरूरी है कि डॉक्टर भगवान बनने की जिम्मेदारी भी निभाए। हम प्रोफेशनल हैं, व्यापारी नहीं हैं। कोई हमें दस करोड़ रुपए दे तो भी डॉक्टर कभी व्यापारी नहीं बन सकता। इसलिए हमें भक्त रूपी मरीज को उपचार का आशीर्वाद व प्रेम देना चाहिए।’
दवाइयों के लिए बना रहे हैं बीमारी
डॉक्टर्स के दवाइयों की कीमत पर लगाम लगाने की बात पर डॉ. शर्मा ने कहा कि सरकार ने 72 आवश्यक दवाइयों का मूल्य निर्धारण किया है, लेकिन उनमें से केवल 32 ही लिखी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि महंगी दवाइयों के लिए डॉक्टर नहीं, फार्मेसी कंपनियां जिम्मेदार हैं जो दवाइयां बेचने के लिए नई बीमारियां बना रही हैं। उन्होंने कहा कि विदेश कंपनिया गर्भावस्था के दौरान आने वाली उबकी को बीमारी बता दवाईयां बना रही हैँ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें