रविवार, 26 अगस्त 2012

सूर्य नमस्कार से मिलती हैं सुंदरता

वैसे तो सभी योगासनों का अपना अलग महत्व है। सभी योगासन शरीर को स्वस्थ रखते हैं। परंतु सूर्य नमस्कार को सभी आसनों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस योगासन में पूरे शरीर का बहुत अच्छे से योगाभ्यास हो जाता है। इस आसन को प्रतिदिन करने से शरीर निरोगी और बलवान हो जाता है। साथ इसके प्रभाव से चेहरे पर चमक आ जाती है। यह आसन सभी उम्र के लोगों के लिए लाभदायक है। 
सूर्य नमस्कार की विधि

सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि सूर्य नमस्कार में 12 स्थितियां होती है और हर स्थिति में सूर्य के एक मंत्र का उच्चारण करना होता है।

सूर्य नमस्कार कैसे करें-

सूर्य नमस्कार 12 स्थितियों में किया जाता है, जो इसप्रकार है-

1. दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हो जाए। नेत्र बंद करें। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ मित्राय नम:) बोलें।

2. सांस भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ रवये नम:) बोलें।

3. तीसरी स्थिति में सांस को धीरे-धीरे छोड़ते हुए सामने की ओर झुकें। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ रहे। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ सूर्याय नम:) बोलें। कुछ क्षण इसी स्थिति में रहे।

4. सांस को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। पैर तना हुआ सीधा पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ रहे। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ भानवे नम:) बोलें।

5. सांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एडिय़ां परस्पर मिली हुई रहें। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एडिय़ों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ खगाय नम:) बोलें।

6. सांस भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। सांस छोड़ दें। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ पुष्णे नम:) बोलें। सांस की गति सामान्य रखें।

7. इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचें। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ हिरण्यगर्भाय नम:) बोलें।

8. सांस को धीरे-धीरे छोड़ते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एडिय़ां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एडिय़ों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ मारिचाये नम:) बोलें।

9. इसी स्थिति में सांस को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ आदित्याय नम:) बोलें।

10. सांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ सावित्रे नम:) बोलें। कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें।

11. सांस भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ आर्काय नम:) बोलें।

12. पहली स्थिति में आ जाएं। ध्यान केंद्रित करके सूर्य मंत्र (ऊँ भास्कराय नम:) बोलें।

सूर्य नमस्कार के लाभ

सूर्य नमस्कार हमारे शरीर की संपूर्ण की विकृतियों को दूर करके निरोग बनाता है। यह पूरी प्रक्रिया बहुत लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है। सूर्य नमस्कार से त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं। इससे कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि होती है। इसके द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाडिय़ां सक्रिय हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं।

सावधानी

सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थितियां सर्वाइकल एवं स्लिप डिस्क वाले रोगियों के लिए वर्जित हैं। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

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