राजस्थान दर्शन राजमहल :उदयपुर
इतिहासकार फर्र्गूसन ने इसे राजस्थान के विंडसर महलों की संज्ञा दी
पिछोला झील के तट पर उदयपुर नगर में सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित यह महल इतना भव्य और विशाल है कि प्रसिद्ध इतिहासकार फर्र्गूसन ने इसे राजस्थान के विंडसर महलों की संज्ञा दी। महल के सबसे पुराने भागों राय आंगन नौ चोकी, धूणी आदि को महाराणा उदयसिंह ने बनवाया था। महल से नगर का विहंगम और पिछोला झील का अत्यंत सुंदर दृश्य दृष्टिगोचर होता है।
महल के प्रताप कक्ष, बाड़ी महल, दिलखुश महल, यश मंदिर, मोती महल, भीम विलास, छोटी चित्रशाला, स्वरूप विलास, सूर्य प्रकाश, माणक महल, सरज गोखड़ा, शिव निवास इत्यादि बहुत सुंदर व दर्शनीय हैं। राजमहल में मयूर चौक का सौंदर्य अनूठा है। चारों ओर कांच को बड़ी बारीकी एवं कौशल से जमाकर मोर और कुछ मूर्तियां बनाई गई हैं। यहां बने पांच मयूरों का सौंदर्य देखते ही बनता है।
प्रताप कक्ष में महाराणा प्रताप के जीवन से संबधित अनेक चित्र, अस्त्र-शस्त्र, जिरह-बख्तर इत्यादि का संग्रह है। यहीं महाराणा प्रताप का ऐतिहासिक भाला रखा है जिससे हल्दी घाटी के युद्ध में आमेर के कुंवर मानसिंह पर प्रताप ने वार किया था। महल के अंदर क्रिस्टल आर्ट गैलरी की छवि निहारने के लिए देशी-विदेशी पर्यटक अवश्य आते हैं। इतिहास प्रेमियों एवं शोधकर्ताओं के लिए महल में अत्याधुनिक पुस्तकालय है। महल में आज भी पौराणिक काल से चले आ रहे पर्व मनाए जाते हैं जिनमें पर्यटक भी शामिल होते हैं।
राजमहल केदक्षिण में एक मध्यकालीन भवन है जिसे जनाना महल के नाम से जाना जाता है। इसे मेवाड़ के महाराणा कर्णसिंह की महारानियों के लिए सन् 1620 में निर्मित किया गया था। महल का निर्माण एक दुर्ग की तरह करवाया गया था जिसमें एक भी खिड़की नहीं रखी गई थी। जनानी ड्योढ़ी से गुजर कर बाएं हाथ की ओर रंगमहल में पहुंचा जाता है जहां राज्य का सोना-चांदी और खजाना रखा जाता था। दाई ओर पीतांबर राय जी, गिरधर गोपाल जी तथा बाणनाथ जी की मूर्तियां हैं। राजमहल के ही एक हिस्से में राज्य सरकार का संग्रहालय है। इस संग्रहालय में ऐतिहासिक एवं पुरातत्व संबंधी सामग्री का विपुल संग्रह है। भारत के विभिन्न प्रदेशों में पहनी जाने वाली पगडि़यों व साफों के नमूने, सिक्के, उदयपुर के महाराणाओं के चित्र, अस्त्र-शस्त्र व पोशाकों के संग्रह के साथ-साथ शहजादा खुर्रम की वह ऐतिहासिक पगड़ी भी है जो मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा की दोस्ती में अदला-बदली की गई थी।
राजमहल के पहले मुख्य द्वार बड़ी पोल से लगभग 175 गज की दूरी पर जगदीश महल स्थित है। यह 80 फीट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर निर्मित है। मंदिर में काले पत्थर से निर्मित भगवान जगदीश विष्णु की भव्य मूर्ति है।
महल के प्रताप कक्ष, बाड़ी महल, दिलखुश महल, यश मंदिर, मोती महल, भीम विलास, छोटी चित्रशाला, स्वरूप विलास, सूर्य प्रकाश, माणक महल, सरज गोखड़ा, शिव निवास इत्यादि बहुत सुंदर व दर्शनीय हैं। राजमहल में मयूर चौक का सौंदर्य अनूठा है। चारों ओर कांच को बड़ी बारीकी एवं कौशल से जमाकर मोर और कुछ मूर्तियां बनाई गई हैं। यहां बने पांच मयूरों का सौंदर्य देखते ही बनता है।
प्रताप कक्ष में महाराणा प्रताप के जीवन से संबधित अनेक चित्र, अस्त्र-शस्त्र, जिरह-बख्तर इत्यादि का संग्रह है। यहीं महाराणा प्रताप का ऐतिहासिक भाला रखा है जिससे हल्दी घाटी के युद्ध में आमेर के कुंवर मानसिंह पर प्रताप ने वार किया था। महल के अंदर क्रिस्टल आर्ट गैलरी की छवि निहारने के लिए देशी-विदेशी पर्यटक अवश्य आते हैं। इतिहास प्रेमियों एवं शोधकर्ताओं के लिए महल में अत्याधुनिक पुस्तकालय है। महल में आज भी पौराणिक काल से चले आ रहे पर्व मनाए जाते हैं जिनमें पर्यटक भी शामिल होते हैं।
राजमहल केदक्षिण में एक मध्यकालीन भवन है जिसे जनाना महल के नाम से जाना जाता है। इसे मेवाड़ के महाराणा कर्णसिंह की महारानियों के लिए सन् 1620 में निर्मित किया गया था। महल का निर्माण एक दुर्ग की तरह करवाया गया था जिसमें एक भी खिड़की नहीं रखी गई थी। जनानी ड्योढ़ी से गुजर कर बाएं हाथ की ओर रंगमहल में पहुंचा जाता है जहां राज्य का सोना-चांदी और खजाना रखा जाता था। दाई ओर पीतांबर राय जी, गिरधर गोपाल जी तथा बाणनाथ जी की मूर्तियां हैं। राजमहल के ही एक हिस्से में राज्य सरकार का संग्रहालय है। इस संग्रहालय में ऐतिहासिक एवं पुरातत्व संबंधी सामग्री का विपुल संग्रह है। भारत के विभिन्न प्रदेशों में पहनी जाने वाली पगडि़यों व साफों के नमूने, सिक्के, उदयपुर के महाराणाओं के चित्र, अस्त्र-शस्त्र व पोशाकों के संग्रह के साथ-साथ शहजादा खुर्रम की वह ऐतिहासिक पगड़ी भी है जो मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा की दोस्ती में अदला-बदली की गई थी।
राजमहल के पहले मुख्य द्वार बड़ी पोल से लगभग 175 गज की दूरी पर जगदीश महल स्थित है। यह 80 फीट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर निर्मित है। मंदिर में काले पत्थर से निर्मित भगवान जगदीश विष्णु की भव्य मूर्ति है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें