मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बाड़मेर आने भर की सूचना मात्र से प्रशासन कितना सक्रिय हो गया इसका नजारा पूरे शहर ने शुक्रवार को देखा। जो जिम्मेदार जनता की लाख शिकायतों के बाद भी नहीं जागते उनकी एक सूचना से ही ऐसी नींद उड़ी कि रात भर अमला तो तैयारियों में रहा ही, खुद भी जागते रहे। एक रात में शहर को चमकाने का जो करतब हमारे जिम्मेदारों ने कर दिखाया वो तो काबिले तारीफ है, लेकिन ऐसा करतब वे जनता की मांग पर क्यों नहीं करते यह सवाल खड़ा हो गया है। पिछले कई महीनों से शहर की जनता परेशान हैं। पूरा शहर खुदा पड़ा है। कोई ऐसी सड़क नहीं जो सही सलामत हो। बरसात के बाद तो हालात ही बिगड़ गए। जगह जगह पानी भर गया। कॉलोनियों के रास्ते बंद हो गए। कुछ जगह आज भी ऐसे ही हालात हैं, लेकिन जिम्मेदारों की आंख नहीं खुली। यह अच्छा है कि शहर में विकास कार्य चल रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि विकास के पथ पर ही परेशानियां खड़ी कर दी जाए। जिम्मेदारों ने जनता की परेशानियों को कम करने की बजाए और बढ़ा दिया। हाइवे निर्माण जनता के लिए राहत की जगह आफत बन गया। हाइवे की सड़क ऊपर हो गई और कॉलोनियां नीचे। बारिश का पानी घरों तक पहुंच गया। लोगों ने पहले ही चेताया था, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। सड़कों पर उड़ती धूल, कंकरीट से अटी पड़ी सड़कें, नालियों के गंदे पानी से डूबी सड़कें। क्या-क्या परेशानी नहीं है शहर में। मुख्यमंत्री के आने की खबर मिली तो जिम्मेदार अलर्ट हो गए। जिम्मेदारों के लिए यह उनकी ड्यूटी का हिस्सा हो सकता है, लेकिन उनको यह भी समझ लेना चाहिए कि जनता ही जर्नादन है। उसकी अनदेखी हुई तो फिर सरकारों का रहना भी मुश्किल हो जाता है।
शनिवार, 25 अगस्त 2012
मुख्यमंत्री की बाड़मेर यात्रा से पहले चमकी शहर की सूरत
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बाड़मेर आने भर की सूचना मात्र से प्रशासन कितना सक्रिय हो गया इसका नजारा पूरे शहर ने शुक्रवार को देखा। जो जिम्मेदार जनता की लाख शिकायतों के बाद भी नहीं जागते उनकी एक सूचना से ही ऐसी नींद उड़ी कि रात भर अमला तो तैयारियों में रहा ही, खुद भी जागते रहे। एक रात में शहर को चमकाने का जो करतब हमारे जिम्मेदारों ने कर दिखाया वो तो काबिले तारीफ है, लेकिन ऐसा करतब वे जनता की मांग पर क्यों नहीं करते यह सवाल खड़ा हो गया है। पिछले कई महीनों से शहर की जनता परेशान हैं। पूरा शहर खुदा पड़ा है। कोई ऐसी सड़क नहीं जो सही सलामत हो। बरसात के बाद तो हालात ही बिगड़ गए। जगह जगह पानी भर गया। कॉलोनियों के रास्ते बंद हो गए। कुछ जगह आज भी ऐसे ही हालात हैं, लेकिन जिम्मेदारों की आंख नहीं खुली। यह अच्छा है कि शहर में विकास कार्य चल रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि विकास के पथ पर ही परेशानियां खड़ी कर दी जाए। जिम्मेदारों ने जनता की परेशानियों को कम करने की बजाए और बढ़ा दिया। हाइवे निर्माण जनता के लिए राहत की जगह आफत बन गया। हाइवे की सड़क ऊपर हो गई और कॉलोनियां नीचे। बारिश का पानी घरों तक पहुंच गया। लोगों ने पहले ही चेताया था, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। सड़कों पर उड़ती धूल, कंकरीट से अटी पड़ी सड़कें, नालियों के गंदे पानी से डूबी सड़कें। क्या-क्या परेशानी नहीं है शहर में। मुख्यमंत्री के आने की खबर मिली तो जिम्मेदार अलर्ट हो गए। जिम्मेदारों के लिए यह उनकी ड्यूटी का हिस्सा हो सकता है, लेकिन उनको यह भी समझ लेना चाहिए कि जनता ही जर्नादन है। उसकी अनदेखी हुई तो फिर सरकारों का रहना भी मुश्किल हो जाता है।
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