माया को 28 साल,बजरंगी को उम्र कैद
अहमदाबाद। गुजरात की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को वर्ष 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान नरोदा पाटिया में एक सम्प्रदाय विशेष के 97 लोगों को जिंदा जलाने के मामले में राज्य की पूर्व मंत्री व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विधायक माया कोडनानी को 28 साल कैद की सजा सुनाई है। इस मामले में बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को भी दोषी ठहराया गया है। उन्हें मरते दम तक कारावास में रहने की सजा सुनाई गई है तथा 30 अन्य को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
गुजरात के नरोदा पाटिया में 28 फरवरी, 2002 को हुए नरसंहार को 10 साल से भी अधिक वक्त बीत जाने के बाद विशेष अदालत ने इस मामले में कोडनानी तथा बजरंगी सहित 32 लोगों को बुधवार को दोषी करार दिया था।
सुनाई गई सजा का ब्योरा पेश करते हुए विशेष सरकारी वकील अखिल देसाई ने कहा कि बजरंगी को छोड़करकोडनानी तथा अन्य दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। इन सभी पर भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न धाराएं लगाई गई हैं।
सजा सुनाए जाने के बाद देसाई ने मीडियाकर्मियों से कहा कि कोडनानी को भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत 10 साल और धारा 302 (हत्या के लिए दंड) के तहत18 साल कैद की सजा सुनाई गई है।
उन्होंने कहा कि देश में किसी को यदि उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है तो उसे 14 वर्ष जेल में बिताने के बाद रिहा होने का हकदार माना जाता है। कोडनानी की रिहाई हालांकि 28 साल बाद होगी, जबकि बजरंगी को मौत होने तक जेल में रहना होगा।
दोषी करार दिए गए अन्य 30 में से सात को 10 के अलावा 21 वर्ष की उम्रकैद, जबकि शेष दोषियों को 10 के अलावा 14 वर्ष कैद की सजा दी गई है। देसाई ने कहा कि वह मृत्युदंड नहीं देने के अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं। अदालत ने आखिरकार पीडितों की पीड़ा को संज्ञान में लिया।
उल्लेखनीय है कि नरोदा पाटिया में 28 फरवरी 2002 को एक भीड़ पर हमला कर सम्प्रदाय विशेष के 97 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। विशेष अदालत ने बुधवार को इस जनसंहार के लिए कोडनानी और बजरंगी सहित 32 लोगों को दोषी करार दिया था। अहमदाबाद में विशेष अदालत ने इस मामले में 29 लोगों को बरी भी कर दिया था।
वर्ष 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात दंगों से संबंधित इस मामले तथा ऎसे ही कई अन्य मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। इन दंगों में 1,000 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश एक जाति विशेष के लोग थे।
इस मामले में 64 लोगों को आरोपी बनाया गया था जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है। बाकी बचे 61 लोगों पर हत्या, आगजनी और दंगा भड़काने के आरोप थे। इनमें से अधिकांश को जमानत मिल गई थी। इस मामले में अदालत में कुल 327 गवाह और 2,500 दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए थे।
अहमदाबाद। गुजरात की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को वर्ष 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान नरोदा पाटिया में एक सम्प्रदाय विशेष के 97 लोगों को जिंदा जलाने के मामले में राज्य की पूर्व मंत्री व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विधायक माया कोडनानी को 28 साल कैद की सजा सुनाई है। इस मामले में बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को भी दोषी ठहराया गया है। उन्हें मरते दम तक कारावास में रहने की सजा सुनाई गई है तथा 30 अन्य को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
गुजरात के नरोदा पाटिया में 28 फरवरी, 2002 को हुए नरसंहार को 10 साल से भी अधिक वक्त बीत जाने के बाद विशेष अदालत ने इस मामले में कोडनानी तथा बजरंगी सहित 32 लोगों को बुधवार को दोषी करार दिया था।
सुनाई गई सजा का ब्योरा पेश करते हुए विशेष सरकारी वकील अखिल देसाई ने कहा कि बजरंगी को छोड़करकोडनानी तथा अन्य दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। इन सभी पर भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न धाराएं लगाई गई हैं।
सजा सुनाए जाने के बाद देसाई ने मीडियाकर्मियों से कहा कि कोडनानी को भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत 10 साल और धारा 302 (हत्या के लिए दंड) के तहत18 साल कैद की सजा सुनाई गई है।
उन्होंने कहा कि देश में किसी को यदि उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है तो उसे 14 वर्ष जेल में बिताने के बाद रिहा होने का हकदार माना जाता है। कोडनानी की रिहाई हालांकि 28 साल बाद होगी, जबकि बजरंगी को मौत होने तक जेल में रहना होगा।
दोषी करार दिए गए अन्य 30 में से सात को 10 के अलावा 21 वर्ष की उम्रकैद, जबकि शेष दोषियों को 10 के अलावा 14 वर्ष कैद की सजा दी गई है। देसाई ने कहा कि वह मृत्युदंड नहीं देने के अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं। अदालत ने आखिरकार पीडितों की पीड़ा को संज्ञान में लिया।
उल्लेखनीय है कि नरोदा पाटिया में 28 फरवरी 2002 को एक भीड़ पर हमला कर सम्प्रदाय विशेष के 97 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। विशेष अदालत ने बुधवार को इस जनसंहार के लिए कोडनानी और बजरंगी सहित 32 लोगों को दोषी करार दिया था। अहमदाबाद में विशेष अदालत ने इस मामले में 29 लोगों को बरी भी कर दिया था।
वर्ष 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात दंगों से संबंधित इस मामले तथा ऎसे ही कई अन्य मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। इन दंगों में 1,000 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश एक जाति विशेष के लोग थे।
इस मामले में 64 लोगों को आरोपी बनाया गया था जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है। बाकी बचे 61 लोगों पर हत्या, आगजनी और दंगा भड़काने के आरोप थे। इनमें से अधिकांश को जमानत मिल गई थी। इस मामले में अदालत में कुल 327 गवाह और 2,500 दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें