गुरुवार, 19 जुलाई 2012

सरहदों के बीच आवाजाही में गुजरी उम्र, अब भारतीय बनने की मांग रहा मन्नतें



जयपुर. उम्र गुजर गई सरहदों के बीच आवाजाही करते करते, मगर अब 90 साल के शमशेर खान की साँसें फूल गई हैं. वो भारत में राजस्थान के झुंझुनू जिले के एक गाव में पैदा हुए, लेकिन भारत की आजादी के दौरान, जिन्दगी के सफ़र का एक कदम उन्हें पाकिस्तान ले गया और फिर वो पाकिस्तान के नागरिक हो गए.

शमशेर खान की पत्नी सलामत बानो और बच्चे भारत में ही रह गए. शमशेर चार दिन पहले ही भारत पहुंचे और अब उनका वापस जाने का मन नहीं है. शमशेर खान ने फूलती सांसो और बुढ़ापे का वास्ता देकर सरकार से उन्हें भारत में ही अपने परिजनों के साथ रहने देने की मिन्नत की है. वो अपने परिजनों के साथ झुंझुनू के जिला कलेक्टर जोगा राम के सामने हाजिर हुए और भारतीय नागरिकता के लिए गुहार लगाई. झुंझुनू जिला कलेक्टर जोगाराम ने कहा, “शमशेर ने अर्जी दी है और भारत से मदद की प्राथना की है. हमने उनकी अर्जी गृह विभाग को भेज दी है.”बंटवारे का दंश

शमशेर के रिश्तेदारों ने बताया कि वो विभाजन के समय में काम के लिए सिंध गए हुए थे. तभी देश का बंटवारा हो गया और शमशेर उसी पार रह गए. उनके एक रिश्तेदार कहते हैं, “उन दिनों आज की तरह का सख्त कानून नहीं था. लोग आते-जाते रहे. शमशेर की यही झुंझुनू जिले की एक लड़की से शादी हो गई. मगर थोड़े दिन में उस महिला की मौत हो गई तो शमशेर ने उसकी छोटी बहन सलामत बानो से शादी कर ली. सलामत यही रहीं और शमशेर आते जाते रहे. इस दौरान उनके दो बेटे और एक बेटी हुई. ये सभी भारत में ही हैं.” शमशेर के बेटे शफी मोहम्मद ने बीबीसी से कहा, “मेरे पिता बुजर्ग है. उन्हें ठीक से सुनाई नहीं देता, वो चलने फिरने में भी समर्थ नहीं है. वहां उनकी देखभाल कौन करेगा. हमारी भारत सरकार से गुजारिश है कि वो रहम करे और उन्हें भारत में ही रहने दे.” भारत की नागरिकता का आवेदन करने के लिए किसी इच्छुक व्यक्ति का देश में लगातार सात साल तक रहना अनिवार्य है. पहले ये समयावधि पांच साल थी. मगर इसे वर्ष 2004 में संशोधित करके बढ़ा दिया गया. पाकिस्तान से आए हिन्दू अल्पसंख्यक नागरिकों के हितों पर काम कर रहे एक सामाजिक संस्थान के सदस्य हिन्दू सिंह सोधा कहते है, “शमशेर जैसे लोगों के आवेदन पर सहानुभूति से विचार करना चाहिए. क्योंकि अगर उनका कोई भी परिजन पाकिस्तान में नहीं है तो कौन उनकी परवरिश करेगा.” शमशेर एक महीने के पर्यटक वीसा पर भारत आए हैं. मानवाधिकार

मानवाधिकार कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव का मानना है कि एक इंसान को अपनी पसंद के मुल्क में रहने का हक है और ये मानवाधिकारों में आता है. उन्होंने कहा, “शमशेर जैसे और भी मामले हैं. बदकिस्मती से दक्षिण एशिया में देशों के बीच कटुता की संस्कृति पनप गई है. हमें ऐसे मामलो में मानवीय रुख अपनाना चाहिए और शमशेर को भारत में रहने की अनुमति दे देनी चाहिए.” पिछले चालीस बरसों में शमशेर कोई पांच बार ही अपने परिवार से मिलने आ सके. एक बार सलामत बानो ने बच्चो के साथ उधर जाने का प्रयास किया तो उन्हें वीजा नही मिला, क्योंकि मुल्कों की सियासत इंसानी रिश्तो का दर्द, फासले और जज्बातो की इबारत नहीं पढ़ती. शमशेर के कांपते हाथो में वीजा, पासपोर्ट और अर्जी हैं. उन्हें महज एक माह का पर्यटन वीजा मिला है. पूरा परिवार चिंतित है इस एक माह के बाद क्या होगा? नियम और दोनों देशो के बीच क्षण भंगुर रिश्तों की दास्ताँ ये ही कहती है कि एक माह बाद उन्हें भारत से जाने को कहा जाएगा. कोई भी विभाजन सियासत की टेबल से होता हुआ आसानी से कागज के नक़्शे पर उतरता है. मगर शमशेर की दास्ताँ बताती है ये बंटवारा रिश्तों के बीच बेदर्दी और बेरहमी से फासलों की दीवार खड़ी करता है. इस परिवार को ये ही फ़िक्र है कि क्या वो इस दीवार को लाँघ पाएंगे?

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