मनुष्य पहले से कहीं ज्यादा
अरुण शर्मा
बचपन में
देखा था
कन्दरा भित्ति चित्र एक
एक आदि मानव
कंधे पे लिए
प्रस्तर गदा
बहशी सा
ले जा रहा था
निर्ममता से घसीटता
असहाय महिला को
बालों से खींचता
और क्लास टीचर ने
आश्वत
पीछेसे कंधे से झाँकते कहा था –
देखा कैसा पशु था मनुष्य!
बेचैन प्रश्न ये उठता है
क्या कुछ परिवर्तन हुआ है
जबकि इतने बेरहम बलात्कार
जिनकी चित्कार
पूरा मिडिया
बारम्बार
दिन-ब-दिन लगातार
हमारे कानों पर
बरसाता रहता है
और हर रोज
पहले से भी कहीं और खौफनाक
दिल दहला देने वाली दिखा तस्वीर
जो कर देती है तार तार
हर मानवीय मूल्य
और देती है बेरहमी से चीर
दिल दिमाग और जिगर
भरती ऐसी दहशत
कि
गहरी नीद में चौंक
कहीं किसी शयनकक्ष में
घबराई माँ
बगल में सोई बेटी को
बौखलाई छूती है
और अपनी बेटी को
बगल में चैन से सोती पा
आश्वत हो पुनः सोती है
इस संदेह के साथ
उस क्षण
कहीं न कहीं
इस सीता के देश में
कितने दुर्योधन
हर नारी का
सरेआम
चीरहरण में लगे हुए हैं
भले वो गौहाटी का जनपथ हो
यूपी, हरयाणा की कोई खाप हो
देश के किसी थाने की बात हो
शांतिनिकेतन की आक्रान्ति हो
हर जगह
कहीं किसी महिला को
उसी कन्दरा के भित्ति चित्र का
हुबहू द्योतक बनाया जारहा है
और बताया जा रहा है
मनुष्य पहले से कहीं ज्यादा
सभ्य हो गया है
क्योंकि उसने बोसोन ढूँढ लिया है
और अपनी आकाशगंगा के बाहर
कदम रख दिया है
और जीव क्लोन तो
कभी का कर लिया है
मैं तसल्ली भी नहीं कर सकता
कि मैं महिला नहीं हूँ –
या कर लूँ?
मेरी नपुन्गस्ता
मुझपर हँस रही है!
डॉ. शर्मा
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