चिंकारा शिकार मामले में 5 सैनिक दोषी, 3 अफसरों को क्लीन चिट
बाड़मेर पश्चिमी सीमा पर थलसेना के युद्धाभ्यास ‘सुदर्शन शक्ति’ के दौरान बाड़मेर जिले के निबंला गांव में गत वर्ष 25 नवंबर को चिंकारा शिकार मामले की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी कुछ गवाहों व साक्ष्यों के बिना ही पूरी हो गई।
सेना ने 1 जेसीओ व 4 जवानों को सिर्फ मांस खरीदने का ही दोषी माना, जबकि झांसी से आई सेना की 88 वर्कशॉप यूनिट के तीन जिम्मेदार अफसरों को क्लीन चिट दे दी गई। सेना ने भले ही जांच पूरी कर ली है, लेकिन वन विभाग की ओर से अधीनस्थ अदालत में पेश किए गए इस्तगासे के मामले में 31 अगस्त को आरोपी सैन्यकर्मियों को बुलाया गया है।
इनकी नहीं हुई गवाही
प्रकरण में गवाह बाड़मेर जिले में नागदड़ा (शिव) निवासी सुखसिंह पुत्र हड़मतसिंह, डीएफओ बीआर भादू और जांच अधिकारी महेश चौधरी को तीन बार समन भेजकर गवाही के लिए बुलाया गया था। सुखसिंह से सैन्यकर्मियों के मांस व चिंकारा के सिर खरीदने की बात सामने आई थी, इसके चलते उसकी गवाही अहम थी। सेना को उसे सौंपने के लिए अदालत ने बाड़मेर पुलिस को निर्देश दिए थे, जबकि सुखसिंह अभी तक सेना व वन विभाग के हाथ नहीं लगा है। बगैर गवाही के ही जांच पूरी कर दी गई।
सात महीने लग गए जांच में
चिंकारा शिकार प्रकरण से सेना की काफी बदनामी हुई थी। युद्धाभ्यास में गत वर्ष 5 दिसंबर को राष्ट्रपति की यात्रा दौरान सेना की दक्षिण कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह ने मीडिया से कहा था कि प्रकरण की एक माह में जांच पूरी कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन झांसी में चली कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी सात महीने बाद गत सप्ताह ही पूरी हुई है।
इन पर गाज
सेना ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में इस यूनिट के सूबेदार गोपीलाल, हवलदार बीआर नाथ, नायक एन. सरकार, लांस नायक आर. परदेसी व सिपाही डीआर नायडू को मांस खरीदने का दोषी माना।
इन्हें क्लीन चिट
कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में 621 ईएमई यूनिट के कर्नल अतुल्य बामजई, ले.कर्नल बीएस चंदेल और यूनिट के ऑफिसर कमांडिंग मेजर एके धारवाल को क्लीन चिट मिली है।
अब आगे क्या
प्रकरण में आगे सेना के पास दो ही विकल्प है। या तो अपनी छवि बचाने के लिए दोषी कार्मिकों व अफसरों के खिलाफ कोर्ट मार्शल शुरू करे और वन विभाग की ओर से दायर इस्तगासा इसमें ट्रांसफर कराए, या फिर आरोपियों को सिविल कोर्ट में पेश करे। विशेषज्ञों का तो यह भी मानना है कि सुखसिंह की गवाही के बिना कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो सकती।
सेना व वन विभाग आमने-सामने
मजबूरी में पूरी की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी
शिकार प्रकरण में गवाही के लिए डीएफओ सहित तीन जनों को बुलाने के भरसक प्रयास किए गए, लेकिन वे नहीं आए। मजबूरन उनकी गवाही के बिना ही कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी पूरी करनी पड़ी।
कर्नल एसडी गोस्वामी, सेना प्रवक्ता
हमारे पास पर्याप्त सबूत
'वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में जाने व साक्ष्य देने की बाध्यता नहीं है। हमारे पास इस प्रकरण के पर्याप्त सबूत हैं। एफएसएल की रिपोर्ट भी मिल चुकी है। कोर्ट मार्शल होने पर साक्ष्य दे सकते हैं।’
बीआर भादू, डीएफओ, बाड़मेर
सेना ने 1 जेसीओ व 4 जवानों को सिर्फ मांस खरीदने का ही दोषी माना, जबकि झांसी से आई सेना की 88 वर्कशॉप यूनिट के तीन जिम्मेदार अफसरों को क्लीन चिट दे दी गई। सेना ने भले ही जांच पूरी कर ली है, लेकिन वन विभाग की ओर से अधीनस्थ अदालत में पेश किए गए इस्तगासे के मामले में 31 अगस्त को आरोपी सैन्यकर्मियों को बुलाया गया है।
इनकी नहीं हुई गवाही
प्रकरण में गवाह बाड़मेर जिले में नागदड़ा (शिव) निवासी सुखसिंह पुत्र हड़मतसिंह, डीएफओ बीआर भादू और जांच अधिकारी महेश चौधरी को तीन बार समन भेजकर गवाही के लिए बुलाया गया था। सुखसिंह से सैन्यकर्मियों के मांस व चिंकारा के सिर खरीदने की बात सामने आई थी, इसके चलते उसकी गवाही अहम थी। सेना को उसे सौंपने के लिए अदालत ने बाड़मेर पुलिस को निर्देश दिए थे, जबकि सुखसिंह अभी तक सेना व वन विभाग के हाथ नहीं लगा है। बगैर गवाही के ही जांच पूरी कर दी गई।
सात महीने लग गए जांच में
चिंकारा शिकार प्रकरण से सेना की काफी बदनामी हुई थी। युद्धाभ्यास में गत वर्ष 5 दिसंबर को राष्ट्रपति की यात्रा दौरान सेना की दक्षिण कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह ने मीडिया से कहा था कि प्रकरण की एक माह में जांच पूरी कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन झांसी में चली कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी सात महीने बाद गत सप्ताह ही पूरी हुई है।
इन पर गाज
सेना ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में इस यूनिट के सूबेदार गोपीलाल, हवलदार बीआर नाथ, नायक एन. सरकार, लांस नायक आर. परदेसी व सिपाही डीआर नायडू को मांस खरीदने का दोषी माना।
इन्हें क्लीन चिट
कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में 621 ईएमई यूनिट के कर्नल अतुल्य बामजई, ले.कर्नल बीएस चंदेल और यूनिट के ऑफिसर कमांडिंग मेजर एके धारवाल को क्लीन चिट मिली है।
अब आगे क्या
प्रकरण में आगे सेना के पास दो ही विकल्प है। या तो अपनी छवि बचाने के लिए दोषी कार्मिकों व अफसरों के खिलाफ कोर्ट मार्शल शुरू करे और वन विभाग की ओर से दायर इस्तगासा इसमें ट्रांसफर कराए, या फिर आरोपियों को सिविल कोर्ट में पेश करे। विशेषज्ञों का तो यह भी मानना है कि सुखसिंह की गवाही के बिना कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो सकती।
सेना व वन विभाग आमने-सामने
मजबूरी में पूरी की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी
शिकार प्रकरण में गवाही के लिए डीएफओ सहित तीन जनों को बुलाने के भरसक प्रयास किए गए, लेकिन वे नहीं आए। मजबूरन उनकी गवाही के बिना ही कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी पूरी करनी पड़ी।
कर्नल एसडी गोस्वामी, सेना प्रवक्ता
हमारे पास पर्याप्त सबूत
'वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में जाने व साक्ष्य देने की बाध्यता नहीं है। हमारे पास इस प्रकरण के पर्याप्त सबूत हैं। एफएसएल की रिपोर्ट भी मिल चुकी है। कोर्ट मार्शल होने पर साक्ष्य दे सकते हैं।’
बीआर भादू, डीएफओ, बाड़मेर
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