वरिष्ठ आईएएस डॉ. ललित के. पंवार को 40 साल से नहीं मिली मजदूरी!
बाड़मेर सरकार की विभिन्न योजनाओं में मेहनत कर मजदूरी पाने वालों को भुगतान लेने में कितनी और कैसी समस्याएं आती है, इसका प्रमाण वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और भारतीय पर्यटन विकास निगम के चेयरमैन डॉ. ललित के. पंवार के जीवन के एक किस्से से सामने आता है। संघर्ष के दिनों में राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर के बालोतरा निवासी पंवार ने गरीबी के दिनों में अकाल राहत कार्यो में बतौर मिस्त्री सड़क निर्माण का काम किया था, बीते चार दशक से वे सरकारी खजाने में बकाया चल रही 35 रुपये की अपनी मजदूरी के लिए कई बार सरकारी दफ्तर के चक्कर काट चुके हैं। आईएएस अफसर बनने के बाद भी पंवार सार्वजनिक निर्माण विभाग, बालोतरा के अधिकारियों से आज तक भुगतान नहीं ले सके। पंवार के मन में सरकारी अधिकारियों के इस रवैये को लेकर आज तक टीस है। भारतीय पयर्टन विकास निगम में चेयरमैन बनने के बाद पहली बार अपने गांव आए पंवार ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1972-73 में अकाल राहत के तहत नवोड़ा बेरा से नवातला तक सड़क निर्माण कार्यस्थल पर बतौर मिस्त्री कुछ दिन के लिए मजदूरी की थी। इसका मेहनताना तत्कालीन दरों के हिसाब से 35 रुपये बना था। उस जमाने में यह रकम काफी बड़ी मानी जाती थी। इस बात को चालीस साल बीत चुके हैं। प्रशासनिक सेवा में आने से पूर्व की अवधि के दौरान उन्होंने कई बार राजस्थान सार्वजनिक निर्माण विभाग कार्यालय बालोतरा के चक्कर काटे, लेकिन अधिकारियों ने आज तक उनकी बकाया पारिश्रमिक राशि का भुगतान नहीं किया है। वर्ष 1979 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ.पंवार के परिवार की आर्थिक स्थिति साधारण थी और इनके पिता जयशंभु पंवार कपड़ों की सिलाई का काम करते थे। बाद में इनके पिता और माता का सरकारी सेवा में अध्यापक के पद चयन हो गया था। आईएएस अधिकारी बनने से पहले पंवार ने मजदूरी करने के साथ ही छोटे बच्चों को पढ़ाने का काम भी किया और वे आज भी आम लोगों के बीच रहना पसंद करते है।
But what Mr Panwar did for changing the scenario? If nothing then what is meaning of this false freedom?
जवाब देंहटाएं