जयपुर की सैर ....गुलाबी नगर है बहुत ख़ास
यह बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए एक अतुलीय गंतव्य है जहां घोड़ोंऊंटों, हाथियों और यहां तक कि जीपों में बैठ कर भी अरावली की सैर की जा सकती है जो पृष्ठभूमि में भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है। अपनी आंखों को तरावट देने के लिए यहां आप रेत के टीले देख सकते हैं, शेरों के बीच एक सैर कर सकते हैं या जलाशयों के पास बैठ कर पक्षियों को निहार सकते हैं। आप यहां की ऐशो आराम वाली विरासत में भी अपना मन बहला सकते हैं। राजस्थान में सभी के लिए कोई न कोई आकर्षण है - यहां केवल आपको अपनी रुचि के अनुसार गतिविधि चुननी है। राजस्थान को देखने के लिए इसे कई हिस्सों में बांटना ही समझदारी का काम है। ऐसे में इस बार हम आपको राजस्थान की राजधानी जयपुर और झीलों की नगरी उदयपुर ले चल रहे हैं जहां के किलों और झीलों की सुंदरता के साथ-साथ जहां की संस्कृति आपको बरबस बार-बार वहां आने और बसने को लालायित करती है।
जयपुर
जंतर-मंतर:
शहर के बीच में स्थित जंतर-मंतर इस बात का प्रमाण है कि उस काल में भारत ग्रह-नक्षत्रों व ज्योतिष के क्षेत्र में अग्रणी था। महाराजा जयसिंह स्वयं ज्योतिष व ग्रह-नक्षत्रों के अध्ययन में न केवल रुचि रखते थे अपितु इस क्षेत्र के ख्याति प्राप्त लोगों में उनका भी नाम आदर से लिया जाता था। जयसिंह ने जयपुर सहित दिल्ली, उज्जैन, बनारस आदि में वेधशालाएं बनाई। जयपुर के जंतर-मंतर पर विदेशी पर्यटक सूर्य की किरणों से समय की गणना कर अपनी कलाई में बंधी आधुनिक घड़ी में वही समय देखकर दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।
यह बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए एक अतुलीय गंतव्य है जहां घोड़ोंऊंटों, हाथियों और यहां तक कि जीपों में बैठ कर भी अरावली की सैर की जा सकती है जो पृष्ठभूमि में भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है। अपनी आंखों को तरावट देने के लिए यहां आप रेत के टीले देख सकते हैं, शेरों के बीच एक सैर कर सकते हैं या जलाशयों के पास बैठ कर पक्षियों को निहार सकते हैं। आप यहां की ऐशो आराम वाली विरासत में भी अपना मन बहला सकते हैं। राजस्थान में सभी के लिए कोई न कोई आकर्षण है - यहां केवल आपको अपनी रुचि के अनुसार गतिविधि चुननी है। राजस्थान को देखने के लिए इसे कई हिस्सों में बांटना ही समझदारी का काम है। ऐसे में इस बार हम आपको राजस्थान की राजधानी जयपुर और झीलों की नगरी उदयपुर ले चल रहे हैं जहां के किलों और झीलों की सुंदरता के साथ-साथ जहां की संस्कृति आपको बरबस बार-बार वहां आने और बसने को लालायित करती है।
राजस्थान में इस खंड के पर्यटन का आरंभ जयपुर से किया जा सकता है जो राजस्थान की राजधानी है और जो सड़क, वायु और रेल तीनों ही मार्गो से जुड़ा हुआ है।जयपुर का न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व है, अपितु स्थापत्य कला, पेंटिंग, पोलो व वास्तुशिल्प की दृष्टि से भी इसका विशिष्ट स्थान व पहचान है। सन 1727 में सवाई जयसिंह द्वितीय ने इस शानदार शहर को बसाया था। जयपुर शहर की योजना बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने बनाई थी। उस काल में यह दूसरा शहर था जो व्यवस्थित तरीके से बसाया गया था। लंबी-चौड़ी सड़कों से युक्त यह शहर 9 वर्गाकार क्षेत्रों में बंटा हुआ है। यहां की अधिकांश इमारतें गुलाबी रंग से रंगी हुई है। इसी कारण इसे गुलाबी शहर भी कहा जाता है।
सिटी पैलेस:
जयपुर का सिटी पैलेस न केवल अपने गौरवशाली इतिहास के कारण अपितु अपनी भव्यता व वास्तुशिल्प के बेजोड़ उदाहरण के रूप में भी पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करता है। संगमरमर के स्तंभों व पत्थरों से बना पैलेस बरबस ही सैलानियों का मन मोह लेता है। संगमरमर के पत्थर पर बारीक जाली के झरोखे, दिलकश गुंबद व लंबे गलियारे उस काल के वास्तुशिल्प की श्रेष्ठता के परिचायक हैं। सिटी पैलेस में स्थित संग्रहालय में पेंटिंग्स, राजा-रानियों की पोशाकें, दुर्लभ पांडुलिपियां, विभिन्न प्रकार की तलवारें व भाले तथा जिरह बख्तर सजे हुए हैं।
शहर के बीच में स्थित जंतर-मंतर इस बात का प्रमाण है कि उस काल में भारत ग्रह-नक्षत्रों व ज्योतिष के क्षेत्र में अग्रणी था। महाराजा जयसिंह स्वयं ज्योतिष व ग्रह-नक्षत्रों के अध्ययन में न केवल रुचि रखते थे अपितु इस क्षेत्र के ख्याति प्राप्त लोगों में उनका भी नाम आदर से लिया जाता था। जयसिंह ने जयपुर सहित दिल्ली, उज्जैन, बनारस आदि में वेधशालाएं बनाई। जयपुर के जंतर-मंतर पर विदेशी पर्यटक सूर्य की किरणों से समय की गणना कर अपनी कलाई में बंधी आधुनिक घड़ी में वही समय देखकर दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।
हवामहल:
हवामहल का निर्माण सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था। पांच मंजिली इस भव्य इमारत में सैकड़ों झरोखे बने हुए हैं। इन झरोखे में से रनिवास की रानियां शाही सवारी व अन्य समारोहों को आराम से देख सकती थीं। इसके पास ही में रामनिवास बाग है जिसका सवाई रामसिंह ने 1868 में अकाल राहत कार्य के रूप में निर्माण करवाया। बाग के साथ चिडि़याघर, संग्रहालय व कई खेल के मैदान हैं। इसमें बने नयनाभिराम अलबर्ट हॉल के नक्शे को प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी सर जैकब ने बनाया था। सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए यहां रवीन्द्र मंच का निर्माण किया गया है। एक आर्ट गैलरी व एक मुक्तआकाशीय थियेटर भी हाल ही के वर्षो में यहां बनाया गया है।
मोती डूंगरी एवं लक्ष्मीनारायण मंदिर:
मोती डूंगरी पर प्राचीन किला बना हुआ है तथा यह आज भी निजी स्वामित्व में है। हाल ही में इस पहाड़ी पर लक्ष्मी नारायण का मंदिर बनवाया गया है जो श्वेत धवल संगमरमर के पत्थर से बना है। पहाड़ी की तलहटी में प्राचीन गणेश मंदिर बना हुआ है।
आमेर पैलेस :
शहर का एक अन्य आकर्षक स्थल है आमेर पैलेस जिसका प्रारंभिक निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया था। इसके बाद इसका विस्तार मिर्जा राजा जयसिंह व सवाई जयसिंह ने दो शताब्दी पूर्व करवाया था। लाल बलुआ पत्थर व सफेद संगमरमर से बने इस किले में जाने के लिए पर्यटक को हाथी की सवारी करनी होती है। पैलेस में दीवाने आम, गणेश पोल, सुखनिवास, बाग, एवं जसमंदिर है। आमेर पैलेस की दृढ़ता व विराटता भी पर्यटकों के लिए कौतूहल का विषय है। पैलेस का शीशमहल व रंगमहल आज भी आकर्षण का केन्द्र है।
आमेर में इन सबके अलावा एक अन्य आकर्षण का केंद्र है आमेर का प्राचीन शहर। यह किले की नीचे वाली पहाडि़यों में बसा है। यहां का जगत शिरोमणि मंदिर अपनी स्थापत्य एवं मूíतकला के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की मूíत संत-कवयित्री मीराबाई के साथ स्थापित की गई है।
आमेर में इन सबके अलावा एक अन्य आकर्षण का केंद्र है आमेर का प्राचीन शहर। यह किले की नीचे वाली पहाडि़यों में बसा है। यहां का जगत शिरोमणि मंदिर अपनी स्थापत्य एवं मूíतकला के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की मूíत संत-कवयित्री मीराबाई के साथ स्थापित की गई है।
गलता जी:
गलता जी का निर्माण दीवान कृपाराम ने करवाया था। यहां पर भगवान सूर्य का मंदिर है तथा जहां तक नजर जाती है सैलानियों को हरियाली ही हरियाली नजर आती है। यहां पर कई पवित्र कुंड भी बने हुए हैं।
स्टेच्यू सर्कल :
इस सर्कल के बीच में सवाई जयसिंह की संगमरमर की आदमकद मूर्ति स्थापित की हुई है जो उनकी स्मृति को जीवित रखे हुए है। हाल ही के वर्षो में इस सर्कल के आसपास बी.एम. बिरला प्लेनेटेरियम व साइंस केन्द्र बने हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें