गुरुवार, 28 जून 2012

घर पहुंचे सुरजीत रिहाई के बाद भी नहीं खोली सुरजीत की हथकड़ी

 

वाघा बॉर्डर. 30 साल बाद सुरजीत सिंह पाकिस्‍तान की जेल से रिहा हो गए हैं। वाघा बार्डर पर पाकिस्‍तानी अफसरों ने उन्‍हें भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया है। उनके साथ कई मछुआरों को भी रिहा किया गया है। सुरजीत ने माना कि वह जासूसी के लिए पाकिस्‍तान गए थे। उन्‍होंने सरबजीत की रिहाई में मीडिया हाइप को बाधा बताया। सुरजीत के बयान से पाकिस्‍तान में सरबजीत की रिहाई के खिलाफ माहौल मजबूत होने का डर है।
भारत पहुंच कर सुरजीत सिंह ने कहा कि पाकिस्‍तान सरकार की ओर से बुधवार को उनकी ही रिहाई का आदेश हुआ था, सरबजीत का नहीं। सरबजीत और सुरजीत उर्दू में लिखने पर एक जैसा ही पढ़ा जाता है जिस कारण गलतफहमी हुई। सुरजीत सिंह ने कहा, 'मैं सरबजीत को रिहा करवा लूंगा, कुछ न कुछ करेंगे, मंत्रियों से मिलेंगे। सरबजीत की दिमागी हालत बिलकुल ठीक है, वो हर किस्म की बात करते हैं लेकिन आज सुबह मैं आने से पहले उनसे नहीं मिल पाया।'
जब पत्रकारों ने सुरजीत से पूछा कि वो पाकिस्तान क्या करने गए थे तब उन्होंने कहा, 'मैं जासूसी करने पाकिस्तान गया था।' हालांकि जब इसके बाद पत्रकारों ने सवाल किए तो सुरजीत ने कहा, 'सरकार के खिलाफ कोई बात मत पूछो मैं कुछ भी नहीं बताऊंगा।' यह कहकर सुरजीत अचानक उठकर चले गए।
सुरजीत सिंह ने कहा कि अब वह कभी पाकिस्‍तान नहीं जाएंगे। उन्‍होंने कहा, 'मैं आऊंगा तो फिर शक होगा कि जासूसी के लिए आया हूं। इसलिए मैं पाकिस्‍तान नहीं आऊंगा।' उन्‍होंने अपील की कि सरबजीत को भी जल्‍दी से जल्‍दी रिहा किया जाए। जेल में हुए सुलूक के बारे में उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान की जेल में उनके साथ अच्‍छा सलूक किया गया।
हथकड़ियों में जकड़े वाघा बार्डर पहुंचे सुरजीत
सुरजीत सिंह आधिकारिक रूप से गुरुवार सुबह को ही जेल से रिहा हो गए थे लेकिन जब वो वाघा बार्डर पहुंचे तो उनके हाथ हथकड़ियों में जकड़े थे। हथकड़ी से बंधी लोहे की चेन पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी की बेल्ट से बंधी थी। 69 वर्षीय सुरजीत सिंह ने सफेद कुर्ता पाजामा पहन रखा था और उनके साथ दो बैग भी थे। जब पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी सुरजीत के साथ पुलिस वैन से उतरा तो उसने सुरजीत की हथकड़ियां नहीं खोली। सुरजीत को गुरुवार सुबह को ही लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहा किया गया था।
पूरी तरह आजाद होते ही सबसे पहले सुरजीत सिंह ने अपने पाकिस्तानी वकील को गले लगाया। सुरजीत सिंह ने कहा कि पाकिस्तान जेल में उनका सही से ख्याल रखा गया और वो इसके लिए पाकिस्तान अधिकारियों का शुक्रिया अदा करते हैं।
सुरजीत को 1982 में गलती से सीमा पार कर पाकिस्‍तान में दाखिल होने पर जासूसी के आरोप में पकड़ा गया था। लेकिन आतंकी विस्‍फोट के आरोप में पकड़े गए सरबजीत सिंह की रिहाई की उम्‍मीद अब भी नहीं जग रही है। इसके लिए सरबजीत के परिजन गुरुवार को जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं। सरबजीत के परिजनों ने आज विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से भी मुलाकात करके रिहाई की गुहार लगाई।
बेटे को बाप की शक्ल तक याद नहीं...
11 बजकर 35 मिनट पर सुरजीत सिंह ने जब भारत की धरती पर कदम रखा तब उनके गृह जिले फिरोजपुर से वाघा बार्डर आए सैंकड़ों लोगों ने फूलमालाएं पहनाकर उनका स्वागत किया। सुरजीत सिंह 30 साल पाकिस्तान की जेल में बिताकर लौटे हैं।
इस दौरान बहुत कुछ बदल चुका है। उनके एक बेटे की मौत हो गई है जबकि अन्य बच्चों की शादी हो गई है। सुरजीत सिंह के बेटे कुलविंदर सिंह तब मात्र तीन साल के थे जब सुरजीत सिंह गायब हो गए थे। कुलविंदर को अब अपने पिता का चेहरा भी याद नहीं है। कुलविंदर ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो अपने पिता से मिल पाएंगे लेकिन अब वो उनका चेहरा देख सकेंगे।
सुरजीत के स्वागत के लिए उनके गांव में भी खास तैयारियां की गई हैं। गांव की महिलाएं सामूहिक रसोई लगाकर आने वालों के लिए खाना बना रही हैं। सुरजीत के स्वागत में पटाखें भी फोड़े जाएंगे और भांगड़ा भी किया जाएगा।
सुरजीत को मृत मान बैठे उनके परिजनों को साल 2004 तक उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। 2004 में पाकिस्तान की जेल से रिहा हुए एक कैदी ने सुरजीत का पत्र उनके परिजनों को सौंपा था। उस पत्र से ही परिवार को पता चला था कि सुरजीत पाकिस्तान की जेल में आजीवन कारावास काट रहे हैं। सुरजीत की सजा अक्टूबर 2010 में समाप्त हो गई थी।

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