सब कुछ खत्म हुआ और सवाल बचे गए कई !!!!!!!
---- जालौर जिले में पिछले 39 दिनों से कलेक्टर ही नहीं
राष्ट्रीय राजमार्गपर दिल दहलाने वाले हादसे ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया।चारों तरफ चित्कारें और आग में जलने लोगों ने हर किसी के रोंगटे खड़े कर दिए। हाईवे पर करीब दो घंटे तक आग का तांडव चलता रहा। एक तरफ जिंदगियां लीलती रही तो दूसरी तरफ लोग बेबसी में उनको जलता देखते रहे। लंगेरा के रहने वाले सगतसिंह राजपुरोहित अपनी पत्नी और दो मासूम बच्चो के साथ इस मौत की सवारी में सवार हुआ उसे नहीं पता था कि ये उसका सबसे दर्दनाक और अन्तिम सफ़र साबित होगा ! सांचोर में टेंट हाउस चलाने वाले सगत सिंह का भरपूर और सुखी परिवार था , घर में वो उसकी पत्नी पदमा कँवर उसके दो पुत्र जीतू , भावेश और एक पुत्री सुगना थे ! लेकिन जीतू इस बार उनके साथ नहीं बल्कि गाँव में था ! चारो बस में बठे तब सगत सिंह ने जीतू को फ़ोन किया कि वो दो घंटे में घर पहुंच जायेंगे ! लेकिन बस चलने के आधा घंटा बाद ही सगत सिंह और उसका पुत्र जिंदा जल गए और पत्नी और पुत्री डीसा के एक अस्पताल में जिन्दगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं ! लंगेरा के सोनानियो कि ढाणी में रहने वाले इस परिवार को जब दुर्घटना की सूचना मिली तो सभी स्तब्ध रह गए और पुत्र जीतू की आँखों के रो रो कर आंसू भी सूख चुके हैं ! जीतू के जेहन में बस यही बार बार गूँज रहा हैं कि बेटा बस हम दो घंटे में घर आ रहे हैं ! लेकिन जीतू जानता हैं कि अब उसका बागबान और भाई इस दुनिया से रुखसत हो चुके हैं जिनका लौटना अब मुमकिन नहीं हैं !
एक दिन पहले यानी शुक्रवार को बाड़मेर आने वाली महादेव ट्रेवल्स की बस में सवार यात्रियों को यह नहीं पता था की वे मौत के ताबूत में सवार हैं और कुछ ही देर बाद उनको इस तरह से जिंदा जल जाना पड़ेगा ! सिवाड़ा के समीप इस हादसे ने हर किसी का दिल दहला दिया। जिसने भी सुना, रो पड़ा। मात्र आधे घंटे पहले यह बस सांचौर से रवाना हुई थी। हादसे में मृतक और घायलों में से अधिकांश लोग बाड़मेर जिले के धोरीमन्ना, बांड और रामजी का गोल गांव के रहने वाले हैं। ये लोग अपने काम के सिलसिले में बस से सांचौर जाते हैं और इसी से वापस लौट जाते हैं,लेकिन रोजाना की तरह उनका यह सफ़र पूरा नहीं हो पाया।हाईवे पर सिवाड़ा चौकी से मात्र कुछ ही दूरी पर यह हादसा हो गया। घायलों की मानें तो यह जोरदार धमाका था और इसी के साथ बस में आग लग गई। इसके बाद तेज लपटों में देखते ही देखते 19 लोग जिंदा जल गए। जब सब कुछ शांत हुआ तो मौके पर हर ओर शव ही नजर आए। परिजनों को सूचना मिलने पर मौके पर पहुंचे तो मन में किसी अनिष्ट की आशंका तो थी, लेकिन यह दुआ भी थी कि काश लाशों के इस ढेर में अपना कोई ना हो।करीब दो घंटो तक चले रेस्क्यू ओपरेशन के बाद बड़ी मुश्किल से आग पर काबू पाया गया। सांचौर से दमकल पहुंची उससे पहले लोगों ने काफी प्रयास किए, लेकिन लपटें इतनी तेज थी कि पास ही नहीं जाया जा सका। जैसे ही लपटें शांत हुई मौके पर मौजूद लोग लाशें देखकर चीत्कार कर उठे। बस के आगे, पीछे, अंदर सीटों पर और नीचे जले हुए शव पड़े थे। कुछ शव सड़क पर कुछ दूरी पर मिले मानों बचने के लिए भागे हों ।
जालौर जिले में पिछले 39 दिनों से कलेक्टर ही नहीं
जालौर जिले में पिछले 39 दिनों से कलेक्टर ही नहीं है। ऐसे में बस हादसे में इतनी संख्या में लोगों के मरने के बाद कानून व्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
जालौर में डॉ. राजेश शर्मा कलेक्टर के पद पर काम कर रहे थे, 8 मई, 2012 को जारी आदेश में डॉ. शर्मा को वहां से निदेशक मॉनिटरिंग कार्यक्रम क्रियान्वयन के पद पर लगा दिया गया। उनके स्थान पर किसी को कलेक्टर नहीं लगाया। वहां कलेक्टर का प्रभार एडीएम चुन्नी लाल सैनी देख रहे हैं। कलेक्टरों के तबादलों से संबंधित फाइल लंबे समय से मुख्यमंत्री कार्यालय में है, लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।हड्डियाँ जोड़ जुटाए साक्ष्य
हादसे के बाद घटनास्थल पर ह्वदय विदारक नजारे से हर कोईसहम उठा। प्रशासन और पुलिस की ओर से बस से शव का निकालने की कोशिश रात नौबजे तक जारी रही। लेकिन बस अधिकांश हड्डियाँ ही मिली। ऎसे मे आनन-फानन में सांचौर और चितलवाना से चिकित्सकों की टीम बुलानी पड़ी। प्रशासन की मौजूदगी में चिकित्सकों ने हड्डियाँ जोड़कर मरने वालों की पुष्टि की। रात करीब दस बजे तक मरने वालों की अधिकृत रूप से पुष्टि हो पाई।
रोडवेज चालक ने दिखाई हिम्मत
निजी बस के पीछे ही डूंगरपुर से बाड़मेर के लिए रोडवेज बस आ रही थी। हादसे के चंद लम्हों बाद ही रोडवेज बस मौके पर पहुंची। इस दौरान चालक दाउद खां ने हिम्मत दिखाई। उसने तत्काल बस में सवार लोगों को उतारा और कुछ युवाओं के सहयोग से घायलों को बस से बाहर निकालने में मदद की।उस दौरान उसने घायलों को बस में बिठाकर सांचौर लाया।
अवैध संचालन से जोखिम में जान
चितलवाना. राष्ट्रीय राजमार्ग पंद्रह पर 18 लोगों के जिंदा जलने की घटना के लिए कई हद तक प्रशासन की उदासीनता जिम्मेदार है। इस रूट पर करीब 70 से ज्यादा निजी बसें चलती हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इन बसों का परमिट कॉन्टेक्ट कैरीज का है, लेकिन यह सारी बसें कायदों को धत्ता बताकर स्टेज कैरीज की तर्ज पर संचालित की जा रही है। परिवहन विभाग व पुलिस की उदासीनता के चलते आज तक इस मामले में कोई असरकारक कार्रवाई नहीं हो पाई। यही नहीं यहां ओवरलोड वाहनों का संचालन भी धड़ल्ले से होता है।करीब चार साल पहले रामजी का गोल के समीप टैम्पो-ट्रक भिडंत में 13 स्कूलों बच्चों की मौत हो गईथी, लेकिन व्यवस्था में अब तक पोल है।
राष्ट्रीय राजमार्गपर दिल दहलाने वाले हादसे ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया।चारों तरफ चित्कारें और आग में जलने लोगों ने हर किसी के रोंगटे खड़े कर दिए। हाईवे पर करीब दो घंटे तक आग का तांडव चलता रहा। एक तरफ जिंदगियां लीलती रही तो दूसरी तरफ लोग बेबसी में उनको जलता देखते रहे। लंगेरा के रहने वाले सगतसिंह राजपुरोहित अपनी पत्नी और दो मासूम बच्चो के साथ इस मौत की सवारी में सवार हुआ उसे नहीं पता था कि ये उसका सबसे दर्दनाक और अन्तिम सफ़र साबित होगा ! सांचोर में टेंट हाउस चलाने वाले सगत सिंह का भरपूर और सुखी परिवार था , घर में वो उसकी पत्नी पदमा कँवर उसके दो पुत्र जीतू , भावेश और एक पुत्री सुगना थे ! लेकिन जीतू इस बार उनके साथ नहीं बल्कि गाँव में था ! चारो बस में बठे तब सगत सिंह ने जीतू को फ़ोन किया कि वो दो घंटे में घर पहुंच जायेंगे ! लेकिन बस चलने के आधा घंटा बाद ही सगत सिंह और उसका पुत्र जिंदा जल गए और पत्नी और पुत्री डीसा के एक अस्पताल में जिन्दगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं ! लंगेरा के सोनानियो कि ढाणी में रहने वाले इस परिवार को जब दुर्घटना की सूचना मिली तो सभी स्तब्ध रह गए और पुत्र जीतू की आँखों के रो रो कर आंसू भी सूख चुके हैं ! जीतू के जेहन में बस यही बार बार गूँज रहा हैं कि बेटा बस हम दो घंटे में घर आ रहे हैं ! लेकिन जीतू जानता हैं कि अब उसका बागबान और भाई इस दुनिया से रुखसत हो चुके हैं जिनका लौटना अब मुमकिन नहीं हैं !
एक दिन पहले यानी शुक्रवार को बाड़मेर आने वाली महादेव ट्रेवल्स की बस में सवार यात्रियों को यह नहीं पता था की वे मौत के ताबूत में सवार हैं और कुछ ही देर बाद उनको इस तरह से जिंदा जल जाना पड़ेगा ! सिवाड़ा के समीप इस हादसे ने हर किसी का दिल दहला दिया। जिसने भी सुना, रो पड़ा। मात्र आधे घंटे पहले यह बस सांचौर से रवाना हुई थी। हादसे में मृतक और घायलों में से अधिकांश लोग बाड़मेर जिले के धोरीमन्ना, बांड और रामजी का गोल गांव के रहने वाले हैं। ये लोग अपने काम के सिलसिले में बस से सांचौर जाते हैं और इसी से वापस लौट जाते हैं,लेकिन रोजाना की तरह उनका यह सफ़र पूरा नहीं हो पाया।हाईवे पर सिवाड़ा चौकी से मात्र कुछ ही दूरी पर यह हादसा हो गया। घायलों की मानें तो यह जोरदार धमाका था और इसी के साथ बस में आग लग गई। इसके बाद तेज लपटों में देखते ही देखते 19 लोग जिंदा जल गए। जब सब कुछ शांत हुआ तो मौके पर हर ओर शव ही नजर आए। परिजनों को सूचना मिलने पर मौके पर पहुंचे तो मन में किसी अनिष्ट की आशंका तो थी, लेकिन यह दुआ भी थी कि काश लाशों के इस ढेर में अपना कोई ना हो।करीब दो घंटो तक चले रेस्क्यू ओपरेशन के बाद बड़ी मुश्किल से आग पर काबू पाया गया। सांचौर से दमकल पहुंची उससे पहले लोगों ने काफी प्रयास किए, लेकिन लपटें इतनी तेज थी कि पास ही नहीं जाया जा सका। जैसे ही लपटें शांत हुई मौके पर मौजूद लोग लाशें देखकर चीत्कार कर उठे। बस के आगे, पीछे, अंदर सीटों पर और नीचे जले हुए शव पड़े थे। कुछ शव सड़क पर कुछ दूरी पर मिले मानों बचने के लिए भागे हों ।
जालौर जिले में पिछले 39 दिनों से कलेक्टर ही नहीं
जालौर जिले में पिछले 39 दिनों से कलेक्टर ही नहीं है। ऐसे में बस हादसे में इतनी संख्या में लोगों के मरने के बाद कानून व्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
जालौर में डॉ. राजेश शर्मा कलेक्टर के पद पर काम कर रहे थे, 8 मई, 2012 को जारी आदेश में डॉ. शर्मा को वहां से निदेशक मॉनिटरिंग कार्यक्रम क्रियान्वयन के पद पर लगा दिया गया। उनके स्थान पर किसी को कलेक्टर नहीं लगाया। वहां कलेक्टर का प्रभार एडीएम चुन्नी लाल सैनी देख रहे हैं। कलेक्टरों के तबादलों से संबंधित फाइल लंबे समय से मुख्यमंत्री कार्यालय में है, लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।हड्डियाँ जोड़ जुटाए साक्ष्य
हादसे के बाद घटनास्थल पर ह्वदय विदारक नजारे से हर कोईसहम उठा। प्रशासन और पुलिस की ओर से बस से शव का निकालने की कोशिश रात नौबजे तक जारी रही। लेकिन बस अधिकांश हड्डियाँ ही मिली। ऎसे मे आनन-फानन में सांचौर और चितलवाना से चिकित्सकों की टीम बुलानी पड़ी। प्रशासन की मौजूदगी में चिकित्सकों ने हड्डियाँ जोड़कर मरने वालों की पुष्टि की। रात करीब दस बजे तक मरने वालों की अधिकृत रूप से पुष्टि हो पाई।
रोडवेज चालक ने दिखाई हिम्मत
निजी बस के पीछे ही डूंगरपुर से बाड़मेर के लिए रोडवेज बस आ रही थी। हादसे के चंद लम्हों बाद ही रोडवेज बस मौके पर पहुंची। इस दौरान चालक दाउद खां ने हिम्मत दिखाई। उसने तत्काल बस में सवार लोगों को उतारा और कुछ युवाओं के सहयोग से घायलों को बस से बाहर निकालने में मदद की।उस दौरान उसने घायलों को बस में बिठाकर सांचौर लाया।
अवैध संचालन से जोखिम में जान
चितलवाना. राष्ट्रीय राजमार्ग पंद्रह पर 18 लोगों के जिंदा जलने की घटना के लिए कई हद तक प्रशासन की उदासीनता जिम्मेदार है। इस रूट पर करीब 70 से ज्यादा निजी बसें चलती हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इन बसों का परमिट कॉन्टेक्ट कैरीज का है, लेकिन यह सारी बसें कायदों को धत्ता बताकर स्टेज कैरीज की तर्ज पर संचालित की जा रही है। परिवहन विभाग व पुलिस की उदासीनता के चलते आज तक इस मामले में कोई असरकारक कार्रवाई नहीं हो पाई। यही नहीं यहां ओवरलोड वाहनों का संचालन भी धड़ल्ले से होता है।करीब चार साल पहले रामजी का गोल के समीप टैम्पो-ट्रक भिडंत में 13 स्कूलों बच्चों की मौत हो गईथी, लेकिन व्यवस्था में अब तक पोल है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें