रविवार, 17 जून 2012

'द्रौपदी' की तरह कई मर्दों संग रहती हैं यहां की महिलाएं, देखिए तस्वीरें

नई दिल्ली. भारत के विविध रंग है। यहां विभिन्न धर्म-जाति के लोग अनेक प्रथाओं का पालन करते हैं। इसी तरह की एक प्रथा है बहुविवाह और बहुपतित्व। हिन्दू पौराणिक आख्यानों में इन दोनों व्यवस्थाओं का उल्लेख मिलता है। दशरथ की तीन पत्नियां थीं। ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण की 16 हजार से अधिक रानियां थीं।

उस समय सामंत वर्ग में होने वाले ऐसे अधिकांश विवाह कामाशक्ति, पुत्र प्राप्ति की इच्छा या राजनीतिक कारणों से किए जाते थे। आम आदमी उस समय भी सामान्यत: एक पत्नीव्रत का ही पालन करता था। महाभारत में द्रौपदी के रूप में बहुपतित्व की प्रथा का उल्लेख मिलता है। कुंती के पांचों बेटों के साथ द्रौपदी की शादी हुई थी। बहुपतित्व का अर्थ है- एक नारी के अनेक पति। उनमें परस्पर मतभेद भी हो सकता है; उनकी इच्छाएं और रूचियां भिन्न भी हो सकती हैं। उन भिन्न आदेशों, इच्छाओं और रूचियों को एक अकेली स्त्री कैसे सन्तुष्ट करेगी? इन प्रश्नों से परे आज भी भारत के कुछ क्षेत्रों में यहा प्रथा देखी जाती है। महिला से पैदा होने वाली संतानें उन सभी की मानी जाती हैं। पैदा हुई संतान बड़े पुरूष को 'तेग बावाल' और सबसे छोटे पुरूष को 'गोटा बावाल' के नाम से पुकारती है।


भारते के हिमाचल और केरल प्रदेश में बहुपतित्व प्रथा के अंतगर्त एक महिला कई पुरूषों से शादी करती है। सभी पुरूषों में के बीच उस महिला को भोगने के लिए दिन बंटे होते हैं।यह प्रथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलती है। दक्षिण भारत के आदिवासी क्षेत्रों (विशेषकर टोडा जनजाति में), त्रावणकोर और मालाबार के नायरों में, उत्तरी भारत के जौनसर भवर में, हिमाचल के किन्नौर में और पंजाब के मालवा क्षेत्र में यह प्रथा बहुतयात देखने को मिलती है।

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