शनिवार, 2 जून 2012

कमाने की क्षमता है तो नहीं मिलेगा पति से गुजारा भत्‍ता


 
नई दिल्‍ली. अपना खर्च उठाने में सक्षम, पढ़ी-लिखी महिला अपनी मर्जी से नौकरी छोड़ती है, तो वह पति से गुजारा-भत्ता लेने की हकदार नहीं है। यह फैसला दिल्‍ली हाई कोर्ट का है। गुजारा-भत्ता कानून के हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर यह फैसला अहम माना जा रहा है।


जस्टिस प्रतिभा रानी ने यह व्यवस्था देते हुए एक महिला की याचिका खारिज कर दी। याचिका में निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी। निचली अदालत ने महिला को इस आधार पर गुजारा-भत्ता देने से इन्कार किया था कि वह पढ़ी-लिखी हैं और अपनी मर्जी से नौकरी छोड़ कर बैठी हैं।

महिला 50 हजार रुपये महीने कमा रही थीं। वह अब भी इतना कमाने में सक्षम हैं। वह दूसरी नौकरी तलाश सकती हैं। ऐसे में वह गुजारा भत्‍ते का दावा नहीं कर सकतीं। यह कहते हुए निचली अदालत ने बच्चे की देखरेख के लिए पति को दस हजार रुपये महीना देने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट ने भी यही व्‍यवस्‍था बहाल रखी।

दिल्ली की रहने वाली इस महिला ने कोर्ट में दलील दी कि वह बतौर असिस्टेंट मैनेजर निजी बीमा कंपनी में काम करती थी। अचानक फर्म बेंगलूर में शिफ्ट हो गई। लिहाजा उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। फिर, निचली अदालत का आदेश था कि बच्चे को पिता से समय-समय पर मिलने दिया जाए। बेंगलूर न जाने का यह भी एक कारण था।


जवाबी दलील में पति के वकील ने कहा कि मुलाकात के अधिकार के आदेश में संशोधन के लिए अपील दी जा सकती थी, लेकिन महिला ने ऐसा नहीं किया। फिर, अब बच्चा स्कूल जाने की उम्र में पहुंच गया है। लिहाजा महिला के लिए काम करने में कोई असुविधा नहीं है।


कोर्ट ने पति के वकील की दलील मानी और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले का संदर्भ भी लिया। कोर्ट के अनुसार यदि दोनों पढ़े-लिखे हैं और उन्हें कहीं न कहीं नौकरी मिल सकती है, तो खाली बैठकर उनमें से किसी एक के ऊपर निर्भर रहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

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