. पाकिस्तान में भारतीयों से जुड़ी धरोहरों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यद्यपि समय-समय पर आवाज बुलंद होने के बाद इस तरफ कुछ ध्यान दिया गया, मगर अभी भी तमाम धरोहरों का वजूद खतरे में है। कमोबेश, शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह व उनके पूर्वजों तथा वंशजों की धरोहरें इस फेहरिश्त में शामिल हैं।
वर्तमान में महाराजा के पिता महां सिंह से जुड़ी धरोहर भी इसी कड़ी का हिस्सा बन चुकी है। उल्लेखनीय है कि विगत में महाराजा रणजीत सिंह तथा उनके बेटे शेर सिंह की समाधि तथा बारादरी उपेक्षा के कारण खत्म होने की कगार पर थीं मगर मीडिया के मुद्दा उठा तो इस तरफ ध्यान दिया जाने लगा है।
गुजरांवाला शहर स्थित महां सिंह शुकरचकिया की उक्त दोनों धरोहरों किसी भी वक्त ढेर हो सकती हैं। शेरांवाला बाग की बगल में स्थित समाधि का बड़ा हिस्सा बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद लोगों ने गिरा दिया था। इसके बाद इसके संरक्षण की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया।
समाधि के अगल-बगल में बने कमरों में एमसी गल्र्स स्कूल चलाया जा रहा है, जबकि गुंबद तथा निचले हिस्से को स्टोर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके कारण यह स्थल मलबे का ढेर बन चुका है। इसी तरह से महां सिंह की बारादरी की ऊपरी मंजिल में लायब्रेरी तथा निचली मंजिल में अजायब घर चलाया जा रहा था मगर बाद में यह भी खस्ता हालत हो गया है। इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ ने इसका खुलासा करते हुए बताया कि समाधि का निर्माण हरी सिंह नलवा ने 12,000 रुपए की लागत से करवाया था। पाकिस्तान सरकार तथा पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण हिंदू-सिखों की धरोहरें एक-एक करके जमींदोज होती जा रही हैं।
वर्तमान में महाराजा के पिता महां सिंह से जुड़ी धरोहर भी इसी कड़ी का हिस्सा बन चुकी है। उल्लेखनीय है कि विगत में महाराजा रणजीत सिंह तथा उनके बेटे शेर सिंह की समाधि तथा बारादरी उपेक्षा के कारण खत्म होने की कगार पर थीं मगर मीडिया के मुद्दा उठा तो इस तरफ ध्यान दिया जाने लगा है।
गुजरांवाला शहर स्थित महां सिंह शुकरचकिया की उक्त दोनों धरोहरों किसी भी वक्त ढेर हो सकती हैं। शेरांवाला बाग की बगल में स्थित समाधि का बड़ा हिस्सा बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद लोगों ने गिरा दिया था। इसके बाद इसके संरक्षण की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया।
समाधि के अगल-बगल में बने कमरों में एमसी गल्र्स स्कूल चलाया जा रहा है, जबकि गुंबद तथा निचले हिस्से को स्टोर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके कारण यह स्थल मलबे का ढेर बन चुका है। इसी तरह से महां सिंह की बारादरी की ऊपरी मंजिल में लायब्रेरी तथा निचली मंजिल में अजायब घर चलाया जा रहा था मगर बाद में यह भी खस्ता हालत हो गया है। इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ ने इसका खुलासा करते हुए बताया कि समाधि का निर्माण हरी सिंह नलवा ने 12,000 रुपए की लागत से करवाया था। पाकिस्तान सरकार तथा पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण हिंदू-सिखों की धरोहरें एक-एक करके जमींदोज होती जा रही हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें