"जंगलराज"!
वन विभाग में बाड़मेर। चिंकारा, मोर और राज्य व राष्ट्रीय महत्व के अनेक वन्य जीवों की बहुतायत में संख्या के कारण मायने रखने वाले बाड़मेर जिले के वन क्षेत्र में मानो "जंगलराज" हो गया है। राज्य सरकार ने यहां पद और संसधनों की स्वीकृति की लंबी चौड़ी फेहरिस्त दे रखी है लेकिन वास्तव में न सुविधाएं है न संसाधन। मैनपॉवर और मशीन पॉवर के लिए तरस रहे महकमे के लिए 587 वर्ग किलोमीटर हेक्टेयर में फैले वनक्षेत्र में गश्त और सुरक्षा करना मुश्किल हो रहा है।
कौन संभाले व्यवस्था
बाड़मेर, बालोतरा, सिणधरी, और शिव में फोरेस्ट रेंजर के पद खाली होने से इन रेंज को फिलहाल संभालने वाला कोई नहीं है। बायतु, सिवाना, धोरीमन्ना व चौहटन के रेंजर को अतिरिक्त कार्यभार दिया हुआ है। इसी तरह सहायक वन संरक्षक के पद भी किसी ने ज्वाइन नहीं किया गया है। केवल रेंजर ही नहीं वन संरक्षक जिनके पास गश्त और निगरानी का संपूर्ण जिम्मा है, जिले में 41 में से 19 पद रिक्त है। इसका खामियाजा वन क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर उठाना पड़ रहा है। वन विभाग द्वारा लाखों रूपए और सालों की मेहनत से जिन पौधों को पेड़ बनाया गया है उनकी सुरक्षा के प्रबंध करने में परेशानी आ रही है। वहीं वन क्षेत्र में शिकार के लिए भी लगातार निगरानी आवश्यक है, वो भी नहीं हो पा रही है।
पैदल चले तो
विभाग के पास संसधनों की भी यही स्थिति है। जिले में केवल एक गाड़ी व दो पुराने ट्रैक्टर है जो 1980 के मॉडल के है। इसके अलावा कोई संसाधन नहीं है। जबकि जरूरत दो गाड़ी, एक मिनी ट्रक, हर रेंज में एक ट्रैक्टर और हर रेंज में एक मोटर साइकिल की जरूरत है। मोटर साइकिल लंबे समय से आवंटित नहीं हो रही है न ट्रैक्टर दिए जा रहे हैं। इससे पौधे पहुंचाने और अधिकारियों के लिए निगरानी करने में मुश्किल हो रही है। किराए के वाहन के लिए इतना बजट नहीं दिया जा रहा है कि सारे अधिकारियों व सुरक्षा कर्मियों के पूरा पड़े।
मूक पशु के लिए एक भी नहीं
जहां राज्य सरकार द्वारा 108,102 व अन्य कई एम्बुलेंस की सेवाएं प्रारंभ कर इंसानों की पूरी खैर खबर ली जा रही है वहीं मूक पशुओं के शिकार होने, बीमार होने व अन्य घटना के लिए वन विभाग को इत्तिला करने के बावजूद कई बार वाहन नहीं पहुंच पाते हैं। दरअसल इसके लिए एक रेस्क्यू वाहन की जरूरत है। राज्य सरकार द्वारा यह वाहन उपलब्ध नहीं करवाया गया है। आठ दस लाख के इस वाहन के लिए वन विभाग की ओर से जिला कलक्टर के मार्फत केयर्न एनर्जी व अन्य कंपनियों से भी आग्रह किया गया है, लेकिन अभी तक वाहन नहीं मिले हैं।
योजनाएं भी सिमटी
वन विभाग हर साल बारिश से पहले लाखों पौधे तैयार करने के साथ उनको रोपने की योजना भी बनाता है। इस साल मरू प्रसार रोक योजना के साथ कई योजनाएं बंद हो चुकी है। ग्राम पंचायतों के माध्यम से कार्य होना है, लिहाजा वन विभाग की अपनी कोई प्लानिंग ही नहीं है। ऎसे में रेगिस्तान को नखलिस्तान मे तब्दील करने की विभाग की मंशा पर भी पानी फिरा हुआ है।
फिर भी यह हाल
पिछले दो साल में बाड़मेर में वन विभाग की ओर से तीन बड़े प्रकरण सामने लाए गए है। बहुचर्चित चिंकारा प्रकरण में सेना के जवानों को चिंकारा के कटे सिर के साथ पकड़कर मामला दर्ज किया गया। ग्यारह मोरों के शिकार का एक मामला सामने आया और इसके अलावा चिंकारा के शिकार के भी मामले का खुलासा किया। इतने मामलों के बाद यहां संसाधन बढ़ने चाहिए लेकिन इनको घटा दिया गया है।
पद खाली और संसाधनों का टोटा है
पद खाली है और संसाधनों का टोटा है। इससे कार्य प्रभावित होता है। रेस्क्यू वाहन की भी जरूरत है।
- बी आर भादू, उप वन संरक्षक, बाड़मेर
वन विभाग में बाड़मेर। चिंकारा, मोर और राज्य व राष्ट्रीय महत्व के अनेक वन्य जीवों की बहुतायत में संख्या के कारण मायने रखने वाले बाड़मेर जिले के वन क्षेत्र में मानो "जंगलराज" हो गया है। राज्य सरकार ने यहां पद और संसधनों की स्वीकृति की लंबी चौड़ी फेहरिस्त दे रखी है लेकिन वास्तव में न सुविधाएं है न संसाधन। मैनपॉवर और मशीन पॉवर के लिए तरस रहे महकमे के लिए 587 वर्ग किलोमीटर हेक्टेयर में फैले वनक्षेत्र में गश्त और सुरक्षा करना मुश्किल हो रहा है।
कौन संभाले व्यवस्था
बाड़मेर, बालोतरा, सिणधरी, और शिव में फोरेस्ट रेंजर के पद खाली होने से इन रेंज को फिलहाल संभालने वाला कोई नहीं है। बायतु, सिवाना, धोरीमन्ना व चौहटन के रेंजर को अतिरिक्त कार्यभार दिया हुआ है। इसी तरह सहायक वन संरक्षक के पद भी किसी ने ज्वाइन नहीं किया गया है। केवल रेंजर ही नहीं वन संरक्षक जिनके पास गश्त और निगरानी का संपूर्ण जिम्मा है, जिले में 41 में से 19 पद रिक्त है। इसका खामियाजा वन क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर उठाना पड़ रहा है। वन विभाग द्वारा लाखों रूपए और सालों की मेहनत से जिन पौधों को पेड़ बनाया गया है उनकी सुरक्षा के प्रबंध करने में परेशानी आ रही है। वहीं वन क्षेत्र में शिकार के लिए भी लगातार निगरानी आवश्यक है, वो भी नहीं हो पा रही है।
पैदल चले तो
विभाग के पास संसधनों की भी यही स्थिति है। जिले में केवल एक गाड़ी व दो पुराने ट्रैक्टर है जो 1980 के मॉडल के है। इसके अलावा कोई संसाधन नहीं है। जबकि जरूरत दो गाड़ी, एक मिनी ट्रक, हर रेंज में एक ट्रैक्टर और हर रेंज में एक मोटर साइकिल की जरूरत है। मोटर साइकिल लंबे समय से आवंटित नहीं हो रही है न ट्रैक्टर दिए जा रहे हैं। इससे पौधे पहुंचाने और अधिकारियों के लिए निगरानी करने में मुश्किल हो रही है। किराए के वाहन के लिए इतना बजट नहीं दिया जा रहा है कि सारे अधिकारियों व सुरक्षा कर्मियों के पूरा पड़े।
मूक पशु के लिए एक भी नहीं
जहां राज्य सरकार द्वारा 108,102 व अन्य कई एम्बुलेंस की सेवाएं प्रारंभ कर इंसानों की पूरी खैर खबर ली जा रही है वहीं मूक पशुओं के शिकार होने, बीमार होने व अन्य घटना के लिए वन विभाग को इत्तिला करने के बावजूद कई बार वाहन नहीं पहुंच पाते हैं। दरअसल इसके लिए एक रेस्क्यू वाहन की जरूरत है। राज्य सरकार द्वारा यह वाहन उपलब्ध नहीं करवाया गया है। आठ दस लाख के इस वाहन के लिए वन विभाग की ओर से जिला कलक्टर के मार्फत केयर्न एनर्जी व अन्य कंपनियों से भी आग्रह किया गया है, लेकिन अभी तक वाहन नहीं मिले हैं।
योजनाएं भी सिमटी
वन विभाग हर साल बारिश से पहले लाखों पौधे तैयार करने के साथ उनको रोपने की योजना भी बनाता है। इस साल मरू प्रसार रोक योजना के साथ कई योजनाएं बंद हो चुकी है। ग्राम पंचायतों के माध्यम से कार्य होना है, लिहाजा वन विभाग की अपनी कोई प्लानिंग ही नहीं है। ऎसे में रेगिस्तान को नखलिस्तान मे तब्दील करने की विभाग की मंशा पर भी पानी फिरा हुआ है।
फिर भी यह हाल
पिछले दो साल में बाड़मेर में वन विभाग की ओर से तीन बड़े प्रकरण सामने लाए गए है। बहुचर्चित चिंकारा प्रकरण में सेना के जवानों को चिंकारा के कटे सिर के साथ पकड़कर मामला दर्ज किया गया। ग्यारह मोरों के शिकार का एक मामला सामने आया और इसके अलावा चिंकारा के शिकार के भी मामले का खुलासा किया। इतने मामलों के बाद यहां संसाधन बढ़ने चाहिए लेकिन इनको घटा दिया गया है।
पद खाली और संसाधनों का टोटा है
पद खाली है और संसाधनों का टोटा है। इससे कार्य प्रभावित होता है। रेस्क्यू वाहन की भी जरूरत है।
- बी आर भादू, उप वन संरक्षक, बाड़मेर
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