जैसलमेर के कलाकार नाथुराम देखते ही देखते आकार पा लेते हैं बिम्ब
डॉ. दीपक आचार्य
जैसलमेर
मरु भूमि जैसलमेर अपने भीतर कला-संस्कृति, शिल्प-स्थापत्य और साहित्य से लेकर जगत-सौंदर्य को प्रतिबिम्बित करने वाले तमाम कारकों से भरी पड़ी है। जगदीश्वर ने इस रेगिस्तान में इतनी मेहरबानी की है कि देश और दुनिया के लोग जाने किस आकर्षण के मारे यहाँ खिंचे चले आते हैं। जैसाण की माटी में व्याप्त सौंधी गंध का खजाना इतना अखूट है कि युगों तक हवाएँ इसका अनथक कीर्तिगान करती रहेंगी।मरुधरा ने अपने आँचल में कला सौन्दर्य और शिल्प स्थापत्य में सिद्धहस्त ऐसे-ऐसे शिल्पी दिए हैं जिनके हुनर ने पाषाणों को मुँह बोलता कर दिया है और कैनवासों पर उतरा दिए हैं अनगिनत बिम्ब, जो भूत और वर्तमान दोनों का साक्षात कराते हुए यदुवंशियों के पुण्य प्रताप से युक्त इस शुष्क धरा पर कई-कई रसों की अजस्र सरणियाँ बहा रहे हैं।
कहीं उन्नीस नहीं हैं यह ग्राम्य कलाकार
इसी परम्परा में ग्राम्य कलाकार नाथूराम का नाम अग्रणी है। आधुनिक उन्नयन से जुड़े सम-सामयिक सरोकारों से अनभिज्ञ तथा प्रोत्साहन के अभाव में ठेठ ग्रामीण क्षेत्र का यह कलाकार भले ही लोकप्रिय नहीं हो सका हो, पर अपने कलात्मक हुनर के मामले में यह कहीं उन्नीस नहीं ठहरता।
जैसलमेर पंचायत समिति अन्तर्गत जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर सिपला गाँव में गरीब परिवार में बालाराम के घर में माँ मीरं की कोख से जन्मे 40 वर्षीय नाथुराम मात्र पाँचवी तक ही शिक्षा प्राप्त कर पाया। उनके परिवार की जीविका गाने-बजाने पर निर्भर रही है। उनके पिता बालाराम 85 वर्ष की आयु में अब भजन-पूजन में रमे हुए हैं।
मौलिक हुनर ने निखारा हस्तशिल्प को
नाथुराम को चित्रकला का शौक बचपन से ही रहा है। सिपला की ही स्कूल में पढ़ाई के दौरान वरिष्ठ शिक्षक नत्थुसिंह की प्रेरणा एवं प्रोत्साहन ने उसके हुनर को पँख दिए। इसी का नतीजा है कि नाथुराम आज हर बिम्ब की हूबहू कृति बनाने में सिद्धहस्त है, फिर चाहे वह पाषाण पर हो या कैनवास पर। स्कूली जीवन में बनाए ढेरों चित्रों ने उसके हुनर को इतना निखार दिया कि आज नाथुराम अच्छी से अच्छी मूर्तियाँ व कलाकृतियाँ बना लेते हैं। इसके कद्रदानों की भी कोई कमी नहीं है।
शिल्प हुनर की बदौलत आयी खुशहाली
अपनी आजीविका के लिए उसके पास 40 बकरियाँ व खेत आदि हैं लेकिन शिल्प हुनर की वजह से उसके परिवार में खुशहाली है। आरंभ में उसने खुद मूर्त्तियाँ गढ़ना शुरू किया। इस काम को धार मिली डेडा के मूर्ति शिल्पी भंवरलाल से, जिनके पास रह कर वह खूब सीखा।अपनी 25 साल की आयु तक पहुँचते-पहुँचते नाथुराम ने अच्छी मूर्तियाँ गढ़ना शुरु कर दिया। नाथुराम हर प्रकार की मूर्ति व कलाकृति बनाने में माहिर है। कई मंदिरों में उसकी बनायी मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इसके अलावा उसकी बनायी मूर्तियाँ व कलाकृतियाँ उपहार के रूप में देशी-विदेशी सैलानियों की पसंद हुआ करती हैं।
आधुनिक कलाओं की दीक्षा ली
जैसलमेर में बाबा महाराज के जैसल लघु उद्योग केन्द्र में कई बरस रह कर काम कर चुके नाथुराम को नए-नए हुनर व कल्पनाएँ मिली। बाबा महाराज बृजरतन ओझा कला-सौन्दर्य व बहुविध शिल्प के पारखी हैं एवं उनके सान्निध्य में नाथुराम के हुनर ने कई नए धरातल पाएँ। नाथुराम का पुत्र प्रेमाराम अब अपने पिता के सान्निध्य में मूर्ति शिल्प की शिक्षा-दीक्षा ले रहा है।
मूर्त्तियाँ सँवार रही हैं गृहस्थी को
मूर्तियों के लिए नाथुराम जेठवाई के पीले पत्थरों का प्रयोग करता है। वह बताता है कि दोनों प्रकार के पत्थरों का प्रयोग होता है- मुलायम व कठोर। इनमें कठोर पत्थर की पॉलिश भी हो सकती है। नाथुराम के अनुसार बड़ी मूर्तियों को बनाने में दस से पन्द्रह दिन लग जाते हैं जबकि छोटे आकार की मूर्तियाँ3-4 दिन में बन जाती हैं। उसकी बनायी मूर्तियाँ सैकड़ों से हजारों रुपयों में बिकती हैं। महीने में बड़ी मूर्तियाँ एक -दो ही बन जाती हैं जबकि छोटी मूर्तियाँ काफी बन जाती हैं।
स्पॉट पेंटिंग में भी है महारथ
इसी प्रकार वह किसी का भी स्कैच आधे घण्टे में बना लेता है। पेन या पेन्सिल हाथ में हों तो अँगुलियों का कमाल कुछ मिनटों में ही सामने दिख जाता हैं। स्पॉट पेन्टिंग का भी जादूगर है नाथुराम। एक बेहतरीन चित्रकार और निष्णात शिल्पी नाथुराम की मंशा है कि उसे कहीं से सरकारी मदद मिल जाए तो वह अपने हुनर तथा काम-धंधे को और अधिक विकसित कर सकता है।
नाथुराम जैसे ग्राम्य हस्तशिल्पियों को जरूरत है सिर्फ थोड़े से सम्बल की। यह सच ही है कि हुनरमंद को ताजगी भरी हवाएँ मिल जाएँ तो वह आसमाँ से बातें करने का सामर्थ्य पा जाता है।
RAM RAM SA BHAIJI, MUJHE AAP KE UPAR GARV HE BHAIJI KI ABHI BHI RAJSTHAN ME AISE LOG HE JO SUNDARTA ABHI BHI JAARI RAKHI HE BALKI ME KEHTA HU KI AISE LOG HI RAJSTHAN KI SHAAN HE ! M PROUD OF U NATHURAMJI !
जवाब देंहटाएंRAM RAM SA BHAIJI, MUJHE AAP KE UPAR GARV HE BHAIJI KI ABHI BHI RAJSTHAN ME AISE LOG HE JO SUNDARTA ABHI BHI JAARI RAKHI HE BALKI ME KEHTA HU KI AISE LOG HI RAJSTHAN KI SHAAN HE ! M PROUD OF U NATHURAMJI !
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