मालिकाना हक को तरसे बंधुआ मजदूर

मालिकाना हक को तरसे बंधुआ मजदूर
बालोतरा। तीन दशक से अधिक समय पहले हरियाणा की पहाडियों में से मुक्त करवाए व हाऊसिंग बोर्ड में बसाए दर्जनों बंधुआ मजदूर अपने रहवासी मकान के मालिकाना हक को तरस गए है। दिहाड़ी मजदूरी कर जीवन बसर करने वाले ये परिवार मालिकाना हक के लिए कई बार सरकार व प्रशासन से मांग कर चुके हैं,लेकिन किसी भी स्तर पर आज तक इनकी कोई सुनवाई नहीं हो पाई है।

पचास वर्ष पहले दिहाड़ी मजदूरी के लिए क्षेत्र से सैकड़ों जने हरियाणा गए थे। यहां की गद्दा खोल पहाडियों में पत्थर तोड़ने के काम करने वाले इन श्रमिकों में से अधिकांश को ठेकेदार ने कर्ज देकर बंधुआ मजदूर बना लिया था। देश में चले बंधुआ मुक्ति आंदोलन पर केन्द्र सरकार ने इन्हें यहां से मुक्त करवाया। वहीं इनमें से अस्सी परिवारों द्वारा इच्छा जताए जाने पर उन्हें हाऊसिंग बोर्ड व जसोल में बसाया। ग्राम पंचायत जसोल ने चालीस परिवारों को भूखंड उपलब्ध करवाने के साथ मकान निर्माण के लिए धन भी आवंटित किया। दूसरी तरफ तत्कालीन जिला कलक्टर ने चालीस परिवारो को हाऊसिंग बोर्ड में मकान आवंटित किया।

उन्होंने इन परिवारों के मुखियाओं को शीघ्र स्वामित्व का हक देने का भरोसा भी दिया। कुछ माह बाद ही उक्त जिला कलक्टर का अन्यत्र तबादला होने पर बाद में आए किसी एक भी कलक्टर ने इनकी सुध नहीं ली। तब से आज तक ये परिवार अपने मालिकाना हक को तरस रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ आवासन मण्डल किश्तों की बकाया राशि का नोटिस समय समय पर इन परिवारों को भिजवाकर इसे जमा करवाने को लेकर दबाव बना रहा है। ऎसे में बमुश्किल पेट भर कर जीवन यापन कर रहे इन परिवारों को हर वक्त भय सताता रहता है कि कहीं आवासन मण्डल उन्हें घर से बेदखल नहीं कर दें।

मदद के लिए पत्र लिखा है
99 वर्ष की लीज पर इन मकानों को आवçंटत किया गया था। आवासन मण्डल को इसके लिए सहानुभूति पूर्वक विचार करने के लिए पत्र लिखा गया है। अधिकारियों की आगामी बैठक में इस बात को समाधान के लिए रखा जाएगा।
जमदेश अली सहायक श्रम आयुक्त बालोतरा

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