"सरकारी संरक्षण" बना "कैद"!
बाड़मेर। एक मूक बघिर दस वर्षीय मासूम को ऎसे मकान में बंद कर दिया गया है, जहां उसके साथ कोई नहीं है। एक चौकीदार बैठा दिया गया है, जो उसके दो समय खाने और कपड़ों का प्रबंध जरूर कर देता है। इस मकान में उससे बात करने के लिए दीवारें है और रूलाई फूटती है तो कोई बहलाने वाला नहीं होता। बाल संरक्षण के नाम पर मिल रही यह कैद मासूमों के लिए मुश्किल बनी हुई है। इसमें सुधार को लेकर सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय विभाग कोई कदम नहीं उठा रहा है।
1098 के माध्यम से मिलने वाले बच्चों के संरक्षण के लिए प्रावधान है कि शिशु सुधार गृह में इनको रखा जाए। इनके अभिभावक मिलने पर उनको वापिस सुपुर्द कर दिया जाए। बाड़मेर में लगातार ऎसे बच्चे आ रहे हैं। इन बच्चों को बाल कल्याण समिति को सुपुर्द करने के बाद राजकीय संप्रेषण व किशोर गृह में संरक्षण के लिए भेजा जा रहा है। यह केन्द्र शहर में एक किराए के मकान में संचालित हो रहा है। इस मकान में इन बच्चों को रख दिया जाता है और इनके खाने पीने का इंतजाम किया जा रहा है। चौबीस घंटे एक चौकीदार की डयूटी रहती है। बच्चों को मकान से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। लिहाजा चौबीस घंटे इसी मकान में यह बच्चे बंद रहते हंै।
कैद नहीं तो क्या
इन दिनों यहां एक बच्चा छह दिन से रह रहा है। शहर कोतवाली पुलिस को मिला यह बच्चा दस साल का है।
इस बच्चे के पास अपनी खुद की कोई पहचान नहीं है। कुछ भी नहीं बता रहे इस बच्चे के अभिभावकों का पता लगाना भी मुश्किल हो रहा है। अब इस बच्चे को इस मकान में भेज दिया गया है, जहां उससे न तो कोई बात करने वाला है और न ही इशारों से उसकी बात को समझने वाला।
कोई छूट नहीं
बच्चे सरकारी संरक्षण में खो नहीं जाए इसलिए चौकीदार बैठाकर मकान में बंद रखा जा रहा है। जबकि मानवीयता के दृष्टिकोण से इन बच्चों की पढ़ाई, मानसिक अवसाद से बाहर लाने की जिम्मेवारी भी है। इसके लिए अन्य बच्चों के साथ खेलने, पढ़ने, चौबीस घंटे के बंद माहौल को त्यागना जरूरी है, जबकि ऎसी कोई छूट नहीं दी जा रही है।
गार्ड को कहा है बातें करे
सही बात है। छात्रावास में इस बच्चें को रखने का सोचा था। अब गार्ड को कहा है कि इससे बातें करें और मन बहलाए।
शरद शर्मा सहायक निदेशक, सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय विभाग
शिशुगृह होना चाहिए
अभी वैकल्पिक व्यवस्था कर रखी है,जहां बच्चा वास्तव में संरक्षण की सुविधा नहीं पा रहा है। इसके लिए अलग शिशुगृह का प्रावधान है जो बाड़मेर में नहीं है। इसलिए समस्या आ रही है।
एडवोकेट यज्ञदत्त जोशी
सदस्य बाल कल्याण समिति
बाड़मेर। एक मूक बघिर दस वर्षीय मासूम को ऎसे मकान में बंद कर दिया गया है, जहां उसके साथ कोई नहीं है। एक चौकीदार बैठा दिया गया है, जो उसके दो समय खाने और कपड़ों का प्रबंध जरूर कर देता है। इस मकान में उससे बात करने के लिए दीवारें है और रूलाई फूटती है तो कोई बहलाने वाला नहीं होता। बाल संरक्षण के नाम पर मिल रही यह कैद मासूमों के लिए मुश्किल बनी हुई है। इसमें सुधार को लेकर सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय विभाग कोई कदम नहीं उठा रहा है।
1098 के माध्यम से मिलने वाले बच्चों के संरक्षण के लिए प्रावधान है कि शिशु सुधार गृह में इनको रखा जाए। इनके अभिभावक मिलने पर उनको वापिस सुपुर्द कर दिया जाए। बाड़मेर में लगातार ऎसे बच्चे आ रहे हैं। इन बच्चों को बाल कल्याण समिति को सुपुर्द करने के बाद राजकीय संप्रेषण व किशोर गृह में संरक्षण के लिए भेजा जा रहा है। यह केन्द्र शहर में एक किराए के मकान में संचालित हो रहा है। इस मकान में इन बच्चों को रख दिया जाता है और इनके खाने पीने का इंतजाम किया जा रहा है। चौबीस घंटे एक चौकीदार की डयूटी रहती है। बच्चों को मकान से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। लिहाजा चौबीस घंटे इसी मकान में यह बच्चे बंद रहते हंै।
कैद नहीं तो क्या
इन दिनों यहां एक बच्चा छह दिन से रह रहा है। शहर कोतवाली पुलिस को मिला यह बच्चा दस साल का है।
इस बच्चे के पास अपनी खुद की कोई पहचान नहीं है। कुछ भी नहीं बता रहे इस बच्चे के अभिभावकों का पता लगाना भी मुश्किल हो रहा है। अब इस बच्चे को इस मकान में भेज दिया गया है, जहां उससे न तो कोई बात करने वाला है और न ही इशारों से उसकी बात को समझने वाला।
कोई छूट नहीं
बच्चे सरकारी संरक्षण में खो नहीं जाए इसलिए चौकीदार बैठाकर मकान में बंद रखा जा रहा है। जबकि मानवीयता के दृष्टिकोण से इन बच्चों की पढ़ाई, मानसिक अवसाद से बाहर लाने की जिम्मेवारी भी है। इसके लिए अन्य बच्चों के साथ खेलने, पढ़ने, चौबीस घंटे के बंद माहौल को त्यागना जरूरी है, जबकि ऎसी कोई छूट नहीं दी जा रही है।
गार्ड को कहा है बातें करे
सही बात है। छात्रावास में इस बच्चें को रखने का सोचा था। अब गार्ड को कहा है कि इससे बातें करें और मन बहलाए।
शरद शर्मा सहायक निदेशक, सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय विभाग
शिशुगृह होना चाहिए
अभी वैकल्पिक व्यवस्था कर रखी है,जहां बच्चा वास्तव में संरक्षण की सुविधा नहीं पा रहा है। इसके लिए अलग शिशुगृह का प्रावधान है जो बाड़मेर में नहीं है। इसलिए समस्या आ रही है।
एडवोकेट यज्ञदत्त जोशी
सदस्य बाल कल्याण समिति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें