अगले कुछ घंटे ज्योतिष की दुनिया के लिए बहुत ही खास हैं। इस दौरान आकाश में सितारों की खासी हलचल होगी। ज्योतिष में सबसे कठोर माने जाने वाला ग्रह शनि अपनी राशि बदलकर कन्या राशि में आ जाएगा। 19 को शनि राशि बदलेगा, 20 को शनि जयंती और 20-21 मई की दरमियानी रात सूर्य ग्रहण होगा।
ये 3 योग ज्योतिष के अनुसार सभी राशि के लोगों के प्रभावित कर रहे हैं। इन तीनों योगों में शनि ग्रह की महत्वपूर्ण भूमिका है, सभी राशियों पर शनि का प्रभाव सर्वाधिक रहेगा। अत: जानिए शनि से जुड़ी विस्तृत जानकारी...
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार 19 मई 2012 की दोपहर 2.30 बजे से वक्री शनि कन्या राशि में वापस प्रवेश करेगा। शनि 15 नवंबर को ही कन्या राशि से तुला में आए थे, लेकिन अपनी वक्री चाल के कारण वे कुछ समय के लिए फिर कन्या राशि में जाएंगे। 26 जून 2012 की सुबह 5.40 बजे से इनकी चाल मार्गी हो जाएगी। 1 अगस्त 2012 को वापस उच्च का होकर तुला राशि में लौट आएगा। हालांकि शनि के परिवर्तन की तिथि को लेकर कई पंचांगों में भेद है। फिर भी इस तिथि पर एकमत हुआ जा सकता है।
शनि खगोल विज्ञाम की नजर में..
खगोल विज्ञान के अनुसार शनि को सबसे सुंदर ग्रह माना जाता है। शनि के आसपास इसके उपग्रहों( लगभग 10 उपग्रह ) का समूह है, जो शनि के चारों ओर एक छल्ला सा दिखाई देता है,जिसके कारण शनि की सुंदरता बढ़ जाती है। वैसे तो सभी ग्रहों में गुरु यानि बृहस्पति ग्रह को सबसे बड़ा माना जाता है लेकिन इसके बाद शनि ही सबसे बड़ा ग्रह बताया गया है। शनि का व्यास लगभग सवा लाख किलोमीटर है। इसे अपनी ही धूरी पर एक चक्कर लगाने में लगभग 9 घंटे लगते हैं। ऐसा माना जाता है कि शनि 10 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से सूर्य की परिक्रमा करता है। शनि ग्रह सूर्य से लगभग डेढ़ अरब किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से शनि 10 किमी प्रति सेकंड की गति से सूर्य की परिक्रमा लगभग 30 वर्षों में कर लेता है।
शनि का राशि अनुसार सामान्य फल-
- वृषभ, कर्क, तुला, मकर के लिए शनि बहुत शुभ माना जाता है।
- मेष, सिंह, धनु, कुंभ के लिए शनि न तो अधिक शुभ है और ना ही अशुभ।
- मिथुन, कन्या, वृश्चिक एवं मीन के लिए शनि अशुभ माना जाता है।
12 राशियों के लिए शनि को मनाने के उपाय
मेष राशि:सरसों के तेल का दान किसी गरीब व्यक्ति को करें।
वृषभ राशि:इन लोगों को किसी गोशाला को ज्वार का दान करना चाहिए।
मिथुन राशि:उड़द के आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं।
कर्क राशि:शिवलिंग पर बिल्व पत्र अर्पित करें। किसी अपाहिज व्यक्ति को भोजन कराना शुभ रहेगा।
सिंह राशि:मां दुर्गा को गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। शनिदेव के चरणों में तेल चढ़ाएं।
कन्या राशि:किसी वट वृक्ष के पेड़ में जल अर्पित करें। रोटी बनाने का तवा दान करना शुभ रहेगा।
तुला राशि:गरीब कन्याओं को दूध और दही का दान करें। शनि देव का दर्शन करें।
वृश्चिक राशि:पीपल के पेड़ में जल चढ़ाएं। साबूत मसूर की दाल किसी सफाई कर्मचारी को दान करें।
धनु राशि:किसी अंधे व्यक्ति को भोजन कराएं। चने की दाल कुष्ठ रोगियों को दान करें।
मकर राशि:पक्षियों को दाना डालें और उनके लिए घर के बाहर एक बर्तन में पानी भरकर रखें।
कुंभ राशि:काली उड़द किसी बहती नदी में प्रवाहित करें। हनुमान चालिसा का पाठ करें।
मीन राशि: मिट्टी के बर्तन में शहद भरकर मंदिर में दान करें।
इन उपायों के साथ ही सभी राशि के लोग हनुमानजी का विशेष पूजन करें और शनि के निमित्त तेल का दान करें।
किन राशियों पर रहेगी साढ़ेसाती और ढैया
शनि 19 मई से राशि बदलकर तुला से कन्या में आएगा। वैसे तो शनि करीब ढाई साल तक एक ही राशि में रुकता है लेकिन अभी शनि वक्री है और इसी वजह से यह पीछे की ओर राशि बदलकर कन्या में जाएगा।
अब 19 मई से 1 अगस्त तक शनि कन्या राशि में रहेगा। इस कारण सिंह, कन्या, तुला राशि पर साढ़ेसाती हो जाएगी। मिथुन एवं कुंभ राशि पर पुन: ढैय्या का प्रभाव रहेगा। वृश्चिक, कर्क एवं मीन राशि शनि के सीधे प्रभाव से मुक्त हो जाएगी।
इन पांच राशियों पर शनि का सीधा असर रहेगा-
सिंह राशि के लिए यह स्थिति लाभकारी रहेगी।
कन्या राशि के लोगों को इस दौरान मिश्रित फल प्राप्त होंगे।
तुला राशि के लोगों को परिश्रम से लाभ प्राप्त होगा।
मिथुन राशि को सम्मान मिलेगा और यात्राएं करवाएगा।
कुंभ राशि वालों को धन प्राप्ति तथा जमीन से लाभ प्राप्त होगा।
देश-दुनिया पर क्या होगा असर?
पं. मनीष शर्मा के अनुसार शनि का वक्री होने का प्रभाव सभी राशियों पर पड़ेगा। इसके अलावा यह केवल प्राकृतिक आपदा का कारक बन सकता है। शनि का तुला राशि में वक्री होने से तूफान, चक्रवात, भूकंपन, बाढ़ आदि की संभावनाएं बन रही हैं। लोगों को मंहगाई का सामना कर पड़ सकता है। इसके अलावा व्यक्तिगत जीवन में यह किसी को परेशान नहीं करेगा। जिन राशियों में शनि का ढैय्या या साढ़ेसाती चल रही है उन्हें भी कुछ समय के लिए राहत होगी। अभी कन्या, तुला और वृश्चिक राशि पर साढ़ेसाती है। मीन तथा कर्क राशि पर ढैय्या चल रही है।
20 मई शनि जयंती और 21 मई सूर्य ग्रहण...
रविवार 20 मई को शनि जयंती है और सोमवार 21 मई को सूर्य ग्रहण होगा। सूर्य का ग्रहण का प्रभाव 12 घंटे पूर्व से ही प्रारंभ हो जाता है। अत: शनि जयंती के दिन से ही सूर्य ग्रहण का प्रभाव भी शुरू हो जाएगा। इस दिन शनि देव के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए विशेष पूजन-अर्चन किया जाना चाहिए। 21 मई को कंकड़ाकृति सूर्य ग्रहण होगा।
सूर्य ग्रहण (21 मई, रविवार) का प्रभाव
ज्योतिष के अनुसार कंकड़ाकृति सूर्य ग्रहण 21 मई, सोमवार (ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या) को होगा। इस दिन शनि जयंती का योग भी बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार यह ग्रहण कृत्तिका नक्षत्र, वृष राशि में होगा, जो भारत के केवल पूर्वी भाग में खण्डग्रास रूप में दिखाई देगा। ग्रहण का मोक्ष दूसरे दिन यानी 21 मई, सोमवार को सुबह 4.51 बजे होगा। यह ग्रहण वृष राशि में होने से प्राकृतिक आपदा से जन-धन की हानि के योग बन रहे हैं। सरकार और नागरिकों के बीच तनाव और संघर्ष की स्थिति बन सकती है। राष्ट्र को बड़े राजनेताओं की हानि हो सकती है। आकस्मिक दुर्घटना जैसे रेल हादसे, विमान हादसे के कारण जान-माल का नुकसान भी संभावित है। पड़ोसी देशों से संबंधों में भी कुछ मतभेद हो सकते हैं। ध्यान रहें, सूर्य ग्रहण का प्रभाव उन्हीं क्षेत्रों पर होगा जहां सूर्य ग्रहण दिखाई देगा। जिन स्थानों पर ग्रहण नहीं दिखाई देगा वहां इसका कोई प्रभाव नहीं होगा।
कौन हैं शनि देव?
सभी नौ ग्रहों में शनि देव का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। शनि देव को न्यायाधीश का पद प्राप्त है, अत: इनके द्वारा ही समस्त जीवों को उनके कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान किया जाता है। जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं ठीक वैसे फल शनि प्रदान करते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी माना जाता है। शनि देव को अर्पित की जाने वाली वस्तुओं में लोहा, तेल, काले-नीले वस्त्र, घोड़े की नाल, काली उड़द, काले रंग का कंबल शामिल हैं।
कब हुआ शनि का जन्म
शास्त्रों के अनुसार हिन्दी मास ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनिदेव का जन्म रात के समय हुआ था।
शनि के अन्य नाम
शनि अत्यंत धीमे चलने वाला ग्रह है और इसे सूर्य की परिक्रमा करने के लिए ३० वर्ष लगते हैं। इसलिए शनि को मंद भी कहते हैं। शनै:-शनै: अर्थात धीरे-धीरे चलने के कारण इसको शनैश्चराय भी कहते है। यह यमराज के बड़े भाई हैं इसलिए इन्हें यमाग्रज भी कहते हैं। रविपुत्र, नीलांबर, छायापुत्र, सूर्यपुत्र आदि अनेक नाम है।
शनि का पारिवारिक परिचय
शास्त्रों के अनुसार शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना गया है। इनकी माता का नाम छाया है। सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र होने के कारण इनका रंग काला है। मनु, यमराज शनि के भाई तथा यमुनाजी इनकी बहन है। ऐसा माना जाता है शनि का विवाह चित्ररथ (गंधर्व) की कन्या से हुआ।
शनि देव का स्वरूप
शनिदेव शरीर इंद्रनीलमणि के समान है। इनका रंग श्यामवर्ण माना जाता है। मस्तक पर स्वर्णमुकुट शोभित है एवं नीले वस्त्र धारण किए रहते हैं। शनि देव का वाहन कौआ है। शनिदेव की चार भुजाएं हैं। इनके एक हाथ में धनुष, एक हाथ में बाण, एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में वरमुद्रा सुशोभित है। शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान अति तेजस्वी बताया गया हैं।
नौ ग्रहों से शनि का संबंध
ज्योतिष में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु बताए गए हैं।
- इन ग्रहों में बुध और शुक्र शनि के मित्र ग्रह हैं।
- सूर्य, चंद्र और मंगल ये तीनों शनि के शत्रु ग्रह माने गए हैं।
- इनके अलावा गुरु से शनि सम भाव रखता है।
- शेष दो ग्रह राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। इन दोनों से भी शनि देव मैत्री भाव ही रखते हैं।
शनि देव की प्रकृति
शनि देव न्याय, श्रम और प्रजा के देवता हैं। यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं तो शनि उन्हें सुखी जीवन प्रदान करता है। किसानों के लिए शनि मददगार हैं। गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है। जो लोग किसी गरीब को परेशान करते हैं उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है। शनि पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। वायु इनका तत्व है। साथ ही शनि व्यक्ति के शारीरिक बल को भी प्रभावित करता है।
शनि आराधना का मंत्र
शनि आराधना के लिए कई मंत्र बताए गए हैं लेकिन सबसे सरल और प्रभावी मंत्र इस प्रकार है- मंत्र: ऊँ शं श्नैश्चराय नम:
ये 3 योग ज्योतिष के अनुसार सभी राशि के लोगों के प्रभावित कर रहे हैं। इन तीनों योगों में शनि ग्रह की महत्वपूर्ण भूमिका है, सभी राशियों पर शनि का प्रभाव सर्वाधिक रहेगा। अत: जानिए शनि से जुड़ी विस्तृत जानकारी...
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार 19 मई 2012 की दोपहर 2.30 बजे से वक्री शनि कन्या राशि में वापस प्रवेश करेगा। शनि 15 नवंबर को ही कन्या राशि से तुला में आए थे, लेकिन अपनी वक्री चाल के कारण वे कुछ समय के लिए फिर कन्या राशि में जाएंगे। 26 जून 2012 की सुबह 5.40 बजे से इनकी चाल मार्गी हो जाएगी। 1 अगस्त 2012 को वापस उच्च का होकर तुला राशि में लौट आएगा। हालांकि शनि के परिवर्तन की तिथि को लेकर कई पंचांगों में भेद है। फिर भी इस तिथि पर एकमत हुआ जा सकता है।
शनि खगोल विज्ञाम की नजर में..
खगोल विज्ञान के अनुसार शनि को सबसे सुंदर ग्रह माना जाता है। शनि के आसपास इसके उपग्रहों( लगभग 10 उपग्रह ) का समूह है, जो शनि के चारों ओर एक छल्ला सा दिखाई देता है,जिसके कारण शनि की सुंदरता बढ़ जाती है। वैसे तो सभी ग्रहों में गुरु यानि बृहस्पति ग्रह को सबसे बड़ा माना जाता है लेकिन इसके बाद शनि ही सबसे बड़ा ग्रह बताया गया है। शनि का व्यास लगभग सवा लाख किलोमीटर है। इसे अपनी ही धूरी पर एक चक्कर लगाने में लगभग 9 घंटे लगते हैं। ऐसा माना जाता है कि शनि 10 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से सूर्य की परिक्रमा करता है। शनि ग्रह सूर्य से लगभग डेढ़ अरब किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से शनि 10 किमी प्रति सेकंड की गति से सूर्य की परिक्रमा लगभग 30 वर्षों में कर लेता है।
शनि का राशि अनुसार सामान्य फल-
- वृषभ, कर्क, तुला, मकर के लिए शनि बहुत शुभ माना जाता है।
- मेष, सिंह, धनु, कुंभ के लिए शनि न तो अधिक शुभ है और ना ही अशुभ।
- मिथुन, कन्या, वृश्चिक एवं मीन के लिए शनि अशुभ माना जाता है।
12 राशियों के लिए शनि को मनाने के उपाय
मेष राशि:सरसों के तेल का दान किसी गरीब व्यक्ति को करें।
वृषभ राशि:इन लोगों को किसी गोशाला को ज्वार का दान करना चाहिए।
मिथुन राशि:उड़द के आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं।
कर्क राशि:शिवलिंग पर बिल्व पत्र अर्पित करें। किसी अपाहिज व्यक्ति को भोजन कराना शुभ रहेगा।
सिंह राशि:मां दुर्गा को गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। शनिदेव के चरणों में तेल चढ़ाएं।
कन्या राशि:किसी वट वृक्ष के पेड़ में जल अर्पित करें। रोटी बनाने का तवा दान करना शुभ रहेगा।
तुला राशि:गरीब कन्याओं को दूध और दही का दान करें। शनि देव का दर्शन करें।
वृश्चिक राशि:पीपल के पेड़ में जल चढ़ाएं। साबूत मसूर की दाल किसी सफाई कर्मचारी को दान करें।
धनु राशि:किसी अंधे व्यक्ति को भोजन कराएं। चने की दाल कुष्ठ रोगियों को दान करें।
मकर राशि:पक्षियों को दाना डालें और उनके लिए घर के बाहर एक बर्तन में पानी भरकर रखें।
कुंभ राशि:काली उड़द किसी बहती नदी में प्रवाहित करें। हनुमान चालिसा का पाठ करें।
मीन राशि: मिट्टी के बर्तन में शहद भरकर मंदिर में दान करें।
इन उपायों के साथ ही सभी राशि के लोग हनुमानजी का विशेष पूजन करें और शनि के निमित्त तेल का दान करें।
किन राशियों पर रहेगी साढ़ेसाती और ढैया
शनि 19 मई से राशि बदलकर तुला से कन्या में आएगा। वैसे तो शनि करीब ढाई साल तक एक ही राशि में रुकता है लेकिन अभी शनि वक्री है और इसी वजह से यह पीछे की ओर राशि बदलकर कन्या में जाएगा।
अब 19 मई से 1 अगस्त तक शनि कन्या राशि में रहेगा। इस कारण सिंह, कन्या, तुला राशि पर साढ़ेसाती हो जाएगी। मिथुन एवं कुंभ राशि पर पुन: ढैय्या का प्रभाव रहेगा। वृश्चिक, कर्क एवं मीन राशि शनि के सीधे प्रभाव से मुक्त हो जाएगी।
इन पांच राशियों पर शनि का सीधा असर रहेगा-
सिंह राशि के लिए यह स्थिति लाभकारी रहेगी।
कन्या राशि के लोगों को इस दौरान मिश्रित फल प्राप्त होंगे।
तुला राशि के लोगों को परिश्रम से लाभ प्राप्त होगा।
मिथुन राशि को सम्मान मिलेगा और यात्राएं करवाएगा।
कुंभ राशि वालों को धन प्राप्ति तथा जमीन से लाभ प्राप्त होगा।
देश-दुनिया पर क्या होगा असर?
पं. मनीष शर्मा के अनुसार शनि का वक्री होने का प्रभाव सभी राशियों पर पड़ेगा। इसके अलावा यह केवल प्राकृतिक आपदा का कारक बन सकता है। शनि का तुला राशि में वक्री होने से तूफान, चक्रवात, भूकंपन, बाढ़ आदि की संभावनाएं बन रही हैं। लोगों को मंहगाई का सामना कर पड़ सकता है। इसके अलावा व्यक्तिगत जीवन में यह किसी को परेशान नहीं करेगा। जिन राशियों में शनि का ढैय्या या साढ़ेसाती चल रही है उन्हें भी कुछ समय के लिए राहत होगी। अभी कन्या, तुला और वृश्चिक राशि पर साढ़ेसाती है। मीन तथा कर्क राशि पर ढैय्या चल रही है।
20 मई शनि जयंती और 21 मई सूर्य ग्रहण...
रविवार 20 मई को शनि जयंती है और सोमवार 21 मई को सूर्य ग्रहण होगा। सूर्य का ग्रहण का प्रभाव 12 घंटे पूर्व से ही प्रारंभ हो जाता है। अत: शनि जयंती के दिन से ही सूर्य ग्रहण का प्रभाव भी शुरू हो जाएगा। इस दिन शनि देव के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए विशेष पूजन-अर्चन किया जाना चाहिए। 21 मई को कंकड़ाकृति सूर्य ग्रहण होगा।
सूर्य ग्रहण (21 मई, रविवार) का प्रभाव
ज्योतिष के अनुसार कंकड़ाकृति सूर्य ग्रहण 21 मई, सोमवार (ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या) को होगा। इस दिन शनि जयंती का योग भी बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार यह ग्रहण कृत्तिका नक्षत्र, वृष राशि में होगा, जो भारत के केवल पूर्वी भाग में खण्डग्रास रूप में दिखाई देगा। ग्रहण का मोक्ष दूसरे दिन यानी 21 मई, सोमवार को सुबह 4.51 बजे होगा। यह ग्रहण वृष राशि में होने से प्राकृतिक आपदा से जन-धन की हानि के योग बन रहे हैं। सरकार और नागरिकों के बीच तनाव और संघर्ष की स्थिति बन सकती है। राष्ट्र को बड़े राजनेताओं की हानि हो सकती है। आकस्मिक दुर्घटना जैसे रेल हादसे, विमान हादसे के कारण जान-माल का नुकसान भी संभावित है। पड़ोसी देशों से संबंधों में भी कुछ मतभेद हो सकते हैं। ध्यान रहें, सूर्य ग्रहण का प्रभाव उन्हीं क्षेत्रों पर होगा जहां सूर्य ग्रहण दिखाई देगा। जिन स्थानों पर ग्रहण नहीं दिखाई देगा वहां इसका कोई प्रभाव नहीं होगा।
कौन हैं शनि देव?
सभी नौ ग्रहों में शनि देव का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। शनि देव को न्यायाधीश का पद प्राप्त है, अत: इनके द्वारा ही समस्त जीवों को उनके कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान किया जाता है। जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं ठीक वैसे फल शनि प्रदान करते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी माना जाता है। शनि देव को अर्पित की जाने वाली वस्तुओं में लोहा, तेल, काले-नीले वस्त्र, घोड़े की नाल, काली उड़द, काले रंग का कंबल शामिल हैं।
कब हुआ शनि का जन्म
शास्त्रों के अनुसार हिन्दी मास ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनिदेव का जन्म रात के समय हुआ था।
शनि के अन्य नाम
शनि अत्यंत धीमे चलने वाला ग्रह है और इसे सूर्य की परिक्रमा करने के लिए ३० वर्ष लगते हैं। इसलिए शनि को मंद भी कहते हैं। शनै:-शनै: अर्थात धीरे-धीरे चलने के कारण इसको शनैश्चराय भी कहते है। यह यमराज के बड़े भाई हैं इसलिए इन्हें यमाग्रज भी कहते हैं। रविपुत्र, नीलांबर, छायापुत्र, सूर्यपुत्र आदि अनेक नाम है।
शनि का पारिवारिक परिचय
शास्त्रों के अनुसार शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना गया है। इनकी माता का नाम छाया है। सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र होने के कारण इनका रंग काला है। मनु, यमराज शनि के भाई तथा यमुनाजी इनकी बहन है। ऐसा माना जाता है शनि का विवाह चित्ररथ (गंधर्व) की कन्या से हुआ।
शनि देव का स्वरूप
शनिदेव शरीर इंद्रनीलमणि के समान है। इनका रंग श्यामवर्ण माना जाता है। मस्तक पर स्वर्णमुकुट शोभित है एवं नीले वस्त्र धारण किए रहते हैं। शनि देव का वाहन कौआ है। शनिदेव की चार भुजाएं हैं। इनके एक हाथ में धनुष, एक हाथ में बाण, एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में वरमुद्रा सुशोभित है। शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान अति तेजस्वी बताया गया हैं।
नौ ग्रहों से शनि का संबंध
ज्योतिष में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु बताए गए हैं।
- इन ग्रहों में बुध और शुक्र शनि के मित्र ग्रह हैं।
- सूर्य, चंद्र और मंगल ये तीनों शनि के शत्रु ग्रह माने गए हैं।
- इनके अलावा गुरु से शनि सम भाव रखता है।
- शेष दो ग्रह राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। इन दोनों से भी शनि देव मैत्री भाव ही रखते हैं।
शनि देव की प्रकृति
शनि देव न्याय, श्रम और प्रजा के देवता हैं। यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं तो शनि उन्हें सुखी जीवन प्रदान करता है। किसानों के लिए शनि मददगार हैं। गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है। जो लोग किसी गरीब को परेशान करते हैं उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है। शनि पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। वायु इनका तत्व है। साथ ही शनि व्यक्ति के शारीरिक बल को भी प्रभावित करता है।
शनि आराधना का मंत्र
शनि आराधना के लिए कई मंत्र बताए गए हैं लेकिन सबसे सरल और प्रभावी मंत्र इस प्रकार है- मंत्र: ऊँ शं श्नैश्चराय नम:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें