प्याऊ की संस्कृति को लगी लगाम थार की परंपरा ख़त होती जा रही है
बाड़मेर लोक संस्कृति और परम्पराव के लिए जाना जाने वाला बाड़मेर अपनी लोक परम्पराव को भूलता जा रहा है .भीषण गर्मी में शहर तथा गाँवो में राहगीरों के लिए प्याऊ लगाने की परंपरा अब लगभग ख़तम सी हो गयी है .प्लास्टिक की बोतलों और पुचो ने आम आदमी की पहुँच प्याऊ तक समाप्त कर दी .बाड़मेर जैसलमेर मसि अक्सर गर्मी का मौसम शुरू होते ही आम राहगीरों के लिए पानी की प्याऊ लगाने के लिए होड़ सी मच जाती थी .प्याऊ पर दस बारह पानी से भरी मटकिया राखी जाती थी तथा लोग बारी बारी से अपनी सेवाए इन प्याऊ पर देकर अपने हाथो से राहगीरों को पानी पिला कर उनके हलक तट करते .पुरे शहर में जगह जगह पर प्याऊ दिखाई देती .हिन्दू धरम की मान्यता के अनुसार प्यासे को पानी पिला सबसे बड़ा धर्म मन जाता था ,हर व्यक्ति प्याऊ लगा कर पुण्य कमाना चाहते ,शहर के धन्ना सेठ ऐसे पुनीत कार्यो मई सदा आगे रहा कर बड़ी तादाद में प्याऊ खुलवाते .विशेष कर वैशाख और जेठ माह में तो लोगो को प्याऊ मई पानी के टेंकर डलवाने के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता.अब समय के साथ प्याऊ लगाने की परंपरा खोटी जा रही है शहर मई एक भी प्याऊ नहीं दिखाई देती .बाजारों में पानी की बोत्तालो तथा पाउच के बढ़ाते प्रचालन से लोगो तथा धर्मावलम्बियों ने भी प्याऊ लगाने से मूंह मोड़ दिया ऐसा नहीं है की लोग प्याऊ लगाना नहीं चाहते बल्कि अब शहरों मे प्याऊ लगाने लायक जगह ही नहीं बची ,खैर लोगो में आज भी प्याऊ लगाने की उत्सुकता जरूर है .समाज सेवी खुशवंत खत्री ने बताया की प्याऊ लगाने की परंपरा को ज़िंदा रखना निहायत जरूरी हे.
बाड़मेर लोक संस्कृति और परम्पराव के लिए जाना जाने वाला बाड़मेर अपनी लोक परम्पराव को भूलता जा रहा है .भीषण गर्मी में शहर तथा गाँवो में राहगीरों के लिए प्याऊ लगाने की परंपरा अब लगभग ख़तम सी हो गयी है .प्लास्टिक की बोतलों और पुचो ने आम आदमी की पहुँच प्याऊ तक समाप्त कर दी .बाड़मेर जैसलमेर मसि अक्सर गर्मी का मौसम शुरू होते ही आम राहगीरों के लिए पानी की प्याऊ लगाने के लिए होड़ सी मच जाती थी .प्याऊ पर दस बारह पानी से भरी मटकिया राखी जाती थी तथा लोग बारी बारी से अपनी सेवाए इन प्याऊ पर देकर अपने हाथो से राहगीरों को पानी पिला कर उनके हलक तट करते .पुरे शहर में जगह जगह पर प्याऊ दिखाई देती .हिन्दू धरम की मान्यता के अनुसार प्यासे को पानी पिला सबसे बड़ा धर्म मन जाता था ,हर व्यक्ति प्याऊ लगा कर पुण्य कमाना चाहते ,शहर के धन्ना सेठ ऐसे पुनीत कार्यो मई सदा आगे रहा कर बड़ी तादाद में प्याऊ खुलवाते .विशेष कर वैशाख और जेठ माह में तो लोगो को प्याऊ मई पानी के टेंकर डलवाने के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता.अब समय के साथ प्याऊ लगाने की परंपरा खोटी जा रही है शहर मई एक भी प्याऊ नहीं दिखाई देती .बाजारों में पानी की बोत्तालो तथा पाउच के बढ़ाते प्रचालन से लोगो तथा धर्मावलम्बियों ने भी प्याऊ लगाने से मूंह मोड़ दिया ऐसा नहीं है की लोग प्याऊ लगाना नहीं चाहते बल्कि अब शहरों मे प्याऊ लगाने लायक जगह ही नहीं बची ,खैर लोगो में आज भी प्याऊ लगाने की उत्सुकता जरूर है .समाज सेवी खुशवंत खत्री ने बताया की प्याऊ लगाने की परंपरा को ज़िंदा रखना निहायत जरूरी हे.
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