शुक्रवार, 9 मार्च 2012

लोक गायक फकीरा खान को बिस्मिलाह खान युवा पुरस्कार से नवाजा


लोक गायक फकीरा खान को 


बिस्मिलाह खान युवा पुरस्कार से नवाजा 

बाड़मेर। अंतराष्ट्रीय लोक एवं सुफी कलाकार मांगणियार फकीरा खां को राष्ट्रीय बिस्मिलाह खां युवा पुरस्कार 2010 से नवाजा गया । फकीरा खां को यह पुरस्कार अंतराष्ट्रीय स्तर पर राजस्थान की लोक कला, संस्कृति और भाषा में दिए गए योगदान के आधार पर राष्ट्रीय संगीत अकादमी दिल्ली द्वारा दिया गया । राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के संयोजक चंदनसिंह भाटी ने बताया कि बिशाला बाड़मेर निवासी मांगणियार लोक एवं सुफी कलाकार फकीरा खां जो समिति के सचिव भी है को राष्ट्रीय बिस्मिलाह खां 2010 युवा पुरस्कार के लिए चयन किया गया । राष्ट्रीय ख्याति दिलाने में दिए योगदान के लिए दिया जा रहा है, पुरस्कार स्वरूप फकीरा खां को प्रशस्ति पत्र और पच्चीस हजार रूपए का पुरस्कार प्रदान किया गया ।


फकीरा खां विगत बीस वर्षों से अधिक समय से लोक गायकी के जरिए राजस्थानी संस्कृति को अंतराष्ट्रीय ख्याति दिलाने में जुटे हुए है। फकीराखां थार क्षेत्र के सर्व श्रेष्ठ ोलक वादक भी है। जिन्होने सुफी तथा लोक गायकी को नया आयाम दिया। फकीरा खां ने 40 से अधिक देशों में कार्यक्रम कर राजस्थानी लोक संस्कृति तथा लोक गायकी को मकाम दिलाया। फकीरा खां अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर में सचिव पद पर रहते हुए राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए अहम योगदान दिया है। फकीरा खां के चयन पर समिति के संयोजक चंदनसिंह भाटी, जिला पाटवी रिड़मलसिंह दांता, उपाध्यक्ष इन्द्र प्रकाश पुरोहित, डॉ. लक्ष्मीनारायण जोशी, सांगसिंह लूणु, उर्मिला जैन, महासचिव विजय कुमार, प्रकाश जोशी, अनिल सुखाणी, दिलावर शेख, महिला परिषद की अध्यक्ष देवी चौधरी, मोटियार परिषद के पाटवी रघुवीरसिंह तामलोर, नगर अध्यक्ष रमेश सिंह ईन्दा, रहमान खान जायडु, कबुल खां, हरपालसिंह राव, भवेन्द्र जाखड़, भगवान आकोड़ा सहित सभी कार्यकर्ताओं खुशी जाहिर कर इसे बाड़मेर जिले के लिए गौरव बताया है।


जीवन परिचय


पश्चिमी राजस्थान की धोरो री धरती की कोख से ऐसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आई हैं, जिन्होंने ‘थार की थळी’ का नाम सात समंदर पार रोशन कर लोक गायिकी को नए शिखर प्रदान किए हैं। इसी कड़ी में एक अहम नाम है-फकीरा खान। लोक गायकी में सुफियाना अन्दाज का मिश्रण कर उसे नई उंचाईयां देने वाले लोक गायक फकीरा खान ने अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपना एक मुकाम बनाया है। राजस्‍थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले के छोटे से गांव विशाला में सन 1974 को मांगणियार बसर खान के घर में फकीरा खान का जन्‍म हुआ था। उनके पिता बसर खान शादी-विवाह के अवसर पर गा-बजाकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। बसर खान अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाकर सरकारी नौकरी में भेजना चाहते थे ताकि परिवार को मुफलिसी से छुटकारा मिले, मगर कुदरत को कुछ और मंजूर था। आठवीं कक्षा उतीर्ण करने तक फकीरा अपने पिता के सानिध्य में थोड़ी-बहुत लोक गायकी सीख गए थे। जल्दी ही फकीरा ने उस्ताद सादिक खान के सानिध्य में लोक गायकी में अपनी खास पहचान बना ली। उस्ताद सादिक खान की असामयिक मृत्यु के बाद फकीरा ने लोक गायकी के नये अवतार अनवर खान बहिया के साथ अपनी जुगलबन्दी बनाई। उसके बाद लोक गीत-संगीत की इस नायाब जोड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।


उन्‍होंने लोक संगीत की कला को सात समंदर पार ख्याति दिलाई। फकीरा-अनवर की जोड़ी ने परम्परागत लोक गायकी में सुफियाना अन्दाज का ऐसा मिश्रण किया कि देश-विदेश के संगीत प्रेमी उनके फन के दीवाने हो गए। फकीरा की लाजवाब प्रतिभा को बॉलीवुड़ ने पूरा सम्मान दिया। फकीरा ने ‘मि. रोमियों’, ‘नायक’, ‘लगान’, ‘लम्हे’ आदि कई फिल्मों में अपनी आवाज का जलवा बिखेरा। फकीरा खान ने अब तक उस्ताद जाकिर हुसैन, भूपेन हजारिका, पं. विश्वमोहन भट्ट, कैलाश खैर, ए.आर. रहमान, आदि ख्यातिनाम गायकों के साथ जुगलबंदियां देकर अमिट छाप छोडी। फकीरा ने 35 साल की अल्प आयु में 40 से अधिक देशों में हजारों कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोक गीत-संगीत को नई उंचाइयां प्रदान की। फकीरा के फन का ही कमाल था कि उन्‍होंने फ्रांस के मशहूर थियेटर जिंगारो में 490 सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये |


फकीरा ने अब तक पेरिस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, इजरायल, यू.एस.ए बेल्जियम, हांगकांग, स्पेन, पाकिस्तान सहित 40 से अधिक देशों में अपने फन का प्रदर्शन किया। मगर, फकीरा राष्‍ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर वर्ष 1992, 93, 94, 2001, 2003 तथा 2004 में नई दिल्‍ली के परेड ग्राउंड में दी गई अपनी प्रस्तुतियों को सबसे यादगार मानते हैं। फकीरा खान ने राष्‍ट्रीय स्तर के कई समारोहों में शिरकत कर लोक संगीत का मान-सम्मान बढ़ाया है। उन्होंने समस्त आकाशवाणी केन्द्रों, दूरदर्शन केन्द्रों और उपग्रह चैनलों पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं।

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