शनिवार, 3 मार्च 2012

होली मनाने के लिए घर लौटने का सिलसिला शुरू


होली मनाने के लिए घर लौटने का सिलसिला शुरू



बाड़मेर होली को अब महज चार दिन बचे हैं। गांवों में फाल्गुन गीतों की गूंज देर रात तक सुनाई देने लगी है। परदेस गए कमाऊ पूत घर लौटने के साथ गांव-ढाणी में अपने दोस्तों से गले मिल पर्व को मनाने की तैयारी में जुटे है। पर्व को लेकर शुक्रवार को बाजारों में खरीदारी भी तेज होती दिखाई दी।

जिले में होली के पर्व को लेकर जबरदस्त उत्साह है। होली का पर्व नजदीक आने के साथ ही दूर -दूर तक छितराई ढाणियों में शाम ढलते ही फाल्गुनी गीत गूंजने शुरू हो गए हैं। मजदूरी के लिए परदेस गए कमाऊ सपूतों के घर लौटने का सिलसिला शुरू हो गया है। पड़ोसी राज्यों से आने वाली बसों व ट्रेनों में सैकड़ों युवा घरों की ओर लौट रहे हैं। हालत यह है कि गुजरात से आने वाली बसों की छत पर भी कई युवा जैसे तैसे पर्व पर घर पहुंचने की जुगत में सफर करते नजर आए। गुजरात के कांडला से आए किशन सिंह सोढ़ा ने बताया कि चार माह तक मजदूरी करने के बाद होली के पर्व पर अपने भाइयों के साथ होली खेलूंगा। अहमदाबाद से आए हिम्मताराम ने बताया कि दो साल बाद वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ होली का पर्व मनाएगा।

गूंजने लगे फाल्गुनी गीत. चंग रौ धमिड़ो तो म्हैं मेहळा बैठी सुणियौ रे.., होली

आई रे बालमा.. सरीखे फाल्गुनी गीत, चंग की थाप पर ठुमके लगाते युवक ओर लूर पर नृत्य करती महिलाएं। यह नजारा हर गांव ढाणी में देखने को मिल रहा है।

ढूंढ की तैयारियां शुरू. होली के पर्व पर बच्चों को ढूंढने की परंपरा आज भी कायम है। महिलाओं ने बच्चों की ढूंढ के लिए सामग्री खरीदना शुरू कर दी है। ननिहाल पक्ष की ओर से बच्चों की ढूंढ़ लाने का रिवाज है। ऐसे में जिन बच्चों के जन्म के बाद पहली होली है, उन्हें ढूंढने की रस्म अदायगी की जाएगी।

कल्याणपुर मौज-मस्ती के त्यौहार होली में चार दिन बचे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के गली-मौहल्लों में फागण के गीत गूंज रहे हैं। वहीं परंपरागत होली के गीतों की कैसेट व सीडियों की भी बाजार में खूब बिक्री हो रही है। पिछले कुछ सालों से देसी गीतों पर डीजे हावी हो चुका है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी होली के गीतों का देशी पैटर्न ही पसंद किया जाता है। नाचण दे चंग पे उड़ती निंदड़ली, मामी गावे फाग न फागण आयो जी, मेहमान एडी रे ठुमके रसीलो फागण, रंग-रंगीली होली डीजे पर नाचू फागण व गाया चरावण कुण जासी सरीखे गीत लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं।



कम सुनने को मिलती है चंग की आवाजें

होली के त्यौहार का मजा चंग की थाप के बिना अधूरा माना जाता है लेकिन वर्तमान में कैसेट व सीडी में बजने वाले होली गीतों की धुनों में चंग की थाप सुनाई नहीं दे रही है।

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