काजू बादाम से "ग्वार" की होड़
बाड़मेर। ग्वार के दामों में बढ़ोतरी का यही सिलसिला रहा तो काजू बादाम के दाम बिकने लगेगी। जनवरी माह में शुरू हुआ ग्वार के दामों में उछाल थम नहीं रहा है। पिछले साल महज 28 रूपए किलो बिकने वाला ग्वार इस साल 240 रूपए प्रति किलो तक पहुंच गई है। किसान के घर अब ग्वार जवाब देने लग गई है लेकिन बाजार में मांग खत्म नहीं हो रही है।
ग्वार रेगिस्तानी इलाके की सबसे गरीब फसल मानी जाती थी। इसे बेचने के अलावा बचने पर गाय बकरी को दाले के रूप में खिलाकर खत्म करने की परंपरा रही है। जब कुछ भी खेत में निपजने की उम्मीद नहीं हों तब ग्वार बोया जाता है। कम पानी और मामूली सार संभाल में पैदा होने वाली यह फसल किसान का जितना पसीना बहता है उतना भी दाम नहीं देती है। फिर भी रेगिस्तान के मेहनतकश किसान ने इस फसल से कभी नाता नहीं तोड़ा है। धोरा धरती की पत्थर जैसी जमीन से पत्थर सी दिखने वाली ग्वार को बड़ी मात्रा में बोता रहा है।
इस बार ग्वार के दामों ऎसा उछाल आया कि किसान निहाल हो गए है और इसको चमत्कार से कम नहीं समझा जा रहा है। पिछले साल मात्र 28 रूपए किलोग्राम में बिकी ग्वार का दाम इस साल जनवरी में ही पचास रूपए हो गया था। फरवरी में सौ से हुई शुरूआत डेढ़ सौ रूपए तक पहुंची और मार्च में दाम 240 रूपए किलोग्राम हो गई है। 250 रूपए से काजू के दाम शुरू हो जाते हैं और 350 में बिदाम। यही उछाल रहा तो काजू बादाम और ग्वार एक दाम में बिकते नजर आएंगे।
क्यों आया उछाल
व्यापारियों की मानें तो विलायत मे ग्वार की मांग बहुत बढ़ गई है। इस मांग की पूर्ति के लिए यहां कंपनियां पहुंच गई है। इस कारण ग्वार में यह ज्वार आया है।
फिर भी ठगे ठगे
विडंबना यह है कि किसान इस बार खुद को ठगा महसूस कर रहे है। दिसंबर माह में 45 रूपए किलोग्राम के दाम आने पर अधिकांश किसानों ने ग्वार बेच दी। उन्हें लगा कि अब खूब हो गया लेकिन इसके बाद तो प्रतिदिन दाम बढ़ने लगे। अब जिसने जिस भाव बेची वह खुद को ठगा महसूस कर रहा है।
अब बीज का भी टोटा
इतने दाम बढ़ने पर किसान बची खुची ग्वार भी बेच रहे हैं। अगले साल बीज का भी उनके घर में टोटा आने की आशंका है।
सारी फसलें शर्मसार
ग्वार के सामने सारी नगदी फसलें शर्मसार हो गई है। जीरा 110, अरण्डी 33, मोठ 20, बाजरी, मतीरा 52 और तिल 50 रूपए किलोग्राम ही है। सबसे कम रहने वाला ग्वार सबसे आगे खड़ा हो गया है।
ग्वार ने निहाल किया
ग्वार ने किसानों को निहाल किया है। यह चमत्कारिक उछाल है, शायद भविष्य में कभी नहीं आए।
गौतम चमन
अनाज व्यापारी
थार पर मेहर
रेगिस्तान के जिन इलाकों में पेट्रोल नहीं मिला है, वहां इस साल ग्वार मिल गया है। गरीब लोग लखपति हो गए।
-ईश्वरसिंह, सरपंच, कोटड़ा
बाड़मेर। ग्वार के दामों में बढ़ोतरी का यही सिलसिला रहा तो काजू बादाम के दाम बिकने लगेगी। जनवरी माह में शुरू हुआ ग्वार के दामों में उछाल थम नहीं रहा है। पिछले साल महज 28 रूपए किलो बिकने वाला ग्वार इस साल 240 रूपए प्रति किलो तक पहुंच गई है। किसान के घर अब ग्वार जवाब देने लग गई है लेकिन बाजार में मांग खत्म नहीं हो रही है।
ग्वार रेगिस्तानी इलाके की सबसे गरीब फसल मानी जाती थी। इसे बेचने के अलावा बचने पर गाय बकरी को दाले के रूप में खिलाकर खत्म करने की परंपरा रही है। जब कुछ भी खेत में निपजने की उम्मीद नहीं हों तब ग्वार बोया जाता है। कम पानी और मामूली सार संभाल में पैदा होने वाली यह फसल किसान का जितना पसीना बहता है उतना भी दाम नहीं देती है। फिर भी रेगिस्तान के मेहनतकश किसान ने इस फसल से कभी नाता नहीं तोड़ा है। धोरा धरती की पत्थर जैसी जमीन से पत्थर सी दिखने वाली ग्वार को बड़ी मात्रा में बोता रहा है।
इस बार ग्वार के दामों ऎसा उछाल आया कि किसान निहाल हो गए है और इसको चमत्कार से कम नहीं समझा जा रहा है। पिछले साल मात्र 28 रूपए किलोग्राम में बिकी ग्वार का दाम इस साल जनवरी में ही पचास रूपए हो गया था। फरवरी में सौ से हुई शुरूआत डेढ़ सौ रूपए तक पहुंची और मार्च में दाम 240 रूपए किलोग्राम हो गई है। 250 रूपए से काजू के दाम शुरू हो जाते हैं और 350 में बिदाम। यही उछाल रहा तो काजू बादाम और ग्वार एक दाम में बिकते नजर आएंगे।
क्यों आया उछाल
व्यापारियों की मानें तो विलायत मे ग्वार की मांग बहुत बढ़ गई है। इस मांग की पूर्ति के लिए यहां कंपनियां पहुंच गई है। इस कारण ग्वार में यह ज्वार आया है।
फिर भी ठगे ठगे
विडंबना यह है कि किसान इस बार खुद को ठगा महसूस कर रहे है। दिसंबर माह में 45 रूपए किलोग्राम के दाम आने पर अधिकांश किसानों ने ग्वार बेच दी। उन्हें लगा कि अब खूब हो गया लेकिन इसके बाद तो प्रतिदिन दाम बढ़ने लगे। अब जिसने जिस भाव बेची वह खुद को ठगा महसूस कर रहा है।
अब बीज का भी टोटा
इतने दाम बढ़ने पर किसान बची खुची ग्वार भी बेच रहे हैं। अगले साल बीज का भी उनके घर में टोटा आने की आशंका है।
सारी फसलें शर्मसार
ग्वार के सामने सारी नगदी फसलें शर्मसार हो गई है। जीरा 110, अरण्डी 33, मोठ 20, बाजरी, मतीरा 52 और तिल 50 रूपए किलोग्राम ही है। सबसे कम रहने वाला ग्वार सबसे आगे खड़ा हो गया है।
ग्वार ने निहाल किया
ग्वार ने किसानों को निहाल किया है। यह चमत्कारिक उछाल है, शायद भविष्य में कभी नहीं आए।
गौतम चमन
अनाज व्यापारी
थार पर मेहर
रेगिस्तान के जिन इलाकों में पेट्रोल नहीं मिला है, वहां इस साल ग्वार मिल गया है। गरीब लोग लखपति हो गए।
-ईश्वरसिंह, सरपंच, कोटड़ा
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