नई दिल्ली. सरकार विवाह से जुड़े कानूनों में बड़े बदलाव की तैयारी में है। विवाह कानून में यह संशोधन बिल शुक्रवार को कैबिनेट की मंजूरी के लिए पेश किया जा सकता है, जिसके बाद इसे संसद के बजट सत्र में पेश किया जा सकता है।
अगर इन बदलावों को संसद से मंजूरी मिल गई तो तलाक और तलाकशुदा माता-पिता और उनके बच्चों के कानूनी अधिकारों में बड़ा बदलाव आ जाएगा। प्रस्तावित विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम, 2010 के तहत विवाह के बाद पति द्वारा अर्जित जायदाद में उसकी पत्नी की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाएगी। इसके अलावा नए कानून में गोद लिए गए बच्चों को कानूनन उतना ही हक मिलेगा, जितना किसी भी दंपती की संतान (जैविक) को मिलता है। इसके अलावा अगर इन संशोधनों ने अमली जामा पहना तो तलाक लेने के भी नियमों में बड़े बदलाव होंगे।
विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम को दो साल पहले राज्य सभा में पेश किया गया था। इसे बाद में संसद की कानून, न्याय से जुड़ी स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेज दिया गया था। प्रस्तावित बिल में 'विवाह संबंध टूटने और किसी भी सूरत में रिश्ता बहाल न होने' को भी तलाक मंजूर करने के लिए वजह माना गया है। संसद की स्थायी समिति ने पिछले साल मार्च में तलाक के लिए संयुक्त रूप से आवेदन करने से पहले कुछ समय प्रतीक्षा करने के नियम को खत्म करने का विरोध किया था।
कैबिनेट नोट के मुताबिक महिला को पुरुष के ऊपर एक अन्य अधिकार दिया जा सकता है, जिसमें 'शादी टूटने और दोबारा रिश्ता कायम न होने' की स्थिति में महिला के पास इस आधार पर अपील का अधिकार होगा, लेकिन पुरुष के पास ऐसा कोई कानूनी हक नहीं होगा।
स्थायी समिति की सिफारिश को आंशिक तौर पर मंजूर करते हुए सरकार ने तलाक से पूर्व प्रतीक्षा के समय को तय करने का अधिकार कोर्ट के विवेक पर छोड़ने का फैसला किया है। नए सिरे से ड्राफ्ट हुए बिल के मुताबिक अगर किसी बच्चे के माता-पिता तलाक लेकर किसी और से शादी करते हैं तो उस शख्स की संतान के अधिकार गोद लिए गए बच्चे की ही तरह होंगे। सरकार ने स्थायी समिति की उस सिफारिश को भी मान लिया है, जिसमें तलाक की स्थिति में महिला के पास पति की संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार दिए जाने की बात कही गई है। लेकिन संपत्ति में कितना हिस्सा तलाक ले रही महिला को मिलेगा, इसका फैसला कोर्ट केस दर केस करेगा।
अगर इन बदलावों को संसद से मंजूरी मिल गई तो तलाक और तलाकशुदा माता-पिता और उनके बच्चों के कानूनी अधिकारों में बड़ा बदलाव आ जाएगा। प्रस्तावित विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम, 2010 के तहत विवाह के बाद पति द्वारा अर्जित जायदाद में उसकी पत्नी की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाएगी। इसके अलावा नए कानून में गोद लिए गए बच्चों को कानूनन उतना ही हक मिलेगा, जितना किसी भी दंपती की संतान (जैविक) को मिलता है। इसके अलावा अगर इन संशोधनों ने अमली जामा पहना तो तलाक लेने के भी नियमों में बड़े बदलाव होंगे।
विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम को दो साल पहले राज्य सभा में पेश किया गया था। इसे बाद में संसद की कानून, न्याय से जुड़ी स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेज दिया गया था। प्रस्तावित बिल में 'विवाह संबंध टूटने और किसी भी सूरत में रिश्ता बहाल न होने' को भी तलाक मंजूर करने के लिए वजह माना गया है। संसद की स्थायी समिति ने पिछले साल मार्च में तलाक के लिए संयुक्त रूप से आवेदन करने से पहले कुछ समय प्रतीक्षा करने के नियम को खत्म करने का विरोध किया था।
कैबिनेट नोट के मुताबिक महिला को पुरुष के ऊपर एक अन्य अधिकार दिया जा सकता है, जिसमें 'शादी टूटने और दोबारा रिश्ता कायम न होने' की स्थिति में महिला के पास इस आधार पर अपील का अधिकार होगा, लेकिन पुरुष के पास ऐसा कोई कानूनी हक नहीं होगा।
स्थायी समिति की सिफारिश को आंशिक तौर पर मंजूर करते हुए सरकार ने तलाक से पूर्व प्रतीक्षा के समय को तय करने का अधिकार कोर्ट के विवेक पर छोड़ने का फैसला किया है। नए सिरे से ड्राफ्ट हुए बिल के मुताबिक अगर किसी बच्चे के माता-पिता तलाक लेकर किसी और से शादी करते हैं तो उस शख्स की संतान के अधिकार गोद लिए गए बच्चे की ही तरह होंगे। सरकार ने स्थायी समिति की उस सिफारिश को भी मान लिया है, जिसमें तलाक की स्थिति में महिला के पास पति की संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार दिए जाने की बात कही गई है। लेकिन संपत्ति में कितना हिस्सा तलाक ले रही महिला को मिलेगा, इसका फैसला कोर्ट केस दर केस करेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें