मंगलवार, 13 मार्च 2012

गेर में झलकी ग्रामीण संस्कृति



गेर महोत्सव के चौथे दिन कल्याणपुर गेर मंडल और गरासिया गेर मंडल के कलाकारों ने दी प्रस्तुति

 जालोर

हाथों में लाठी लिए, चंग की थाप पर वीर रस के फाल्गुनी गीतों पर झुमते गेरिए। नजारा था गेर महोत्सव के चौथे दिन सोमवार को कल्याणपुर गेर मंडल की धोका गेर का। कल्याणपुर के गेरियों ने चंग की थाप पर एक साथ जमीन पर बैठना और एक साथ उठकर लाठी को आसमान में घुमाने के बिरले अंदाज में नृत्य पेश कर अपनी कला को प्रदर्शित किया।

इस दौरान गेरियों ने नृत्य करते हुए 'जोधाणा रे किला माथे हलदी कांच फड़के रे...', 'नीला घोड़ा रा असवार बाबा रामसा पीर...' व 'तेल और 'सिंदूर चढ़े हनुमानजी रे आए मंगलवार...' वीर रस से ओतप्रोत फाल्गुनी गीत प्रस्तुत किया। इस गेर मंडल में कल्यापुर सरपंच दौलाराम कुंआ के नेतृत्व में रामाराम, छतराराम, सांवलाराम, रुपाराम, धन्नाराम, अचलाराम व मादाराम समेत २५ जनों ने नृत्य पेश कर सांस्कृतिक छटा बिखेरी। इससे पूर्व जालोर की पोलजी वरदाजी और विभिन्न समाजों के गेरियों ने धोती कुर्ता पहने सिर पर लाल पगड़ी और पैरों में घुंघरू बांधकर नृत्य पेश किया। गेर महोत्सव के चौथे दिन पूरा पांडाल पुरुषों व महिलाओं से भरा रहा। शेषत्नपेज १५

गेर महोत्सव में दूसरी गेर उपरलागढ़ (माउंट आबू) की गरासीया गेर मंडल ने अद्भुत कला पेश की। इस मौके भक्त प्रहलाद समिति के नैनाराम माली, मगसा मेवाड़ा, मिश्रीमल, सार्दुलाराम, लालराम घांची, तुलछाराम, सांवलाराम, खसाराम, मोहनलाल, छोगालाल व जयंतीलाल लुहार समेत कई जने मौजूद थे।

भाद्राजून. कस्बे समेत क्षेत्र के भोरडा, घाणा, बाला गांव में होली महोत्सव की धूम मची हुई है। चंग की थाप और ढोल-ढमाकों की धुन पर पैरों में घुंघरु बांधे गेरिए नृत्य करते हंै। इस दौरान कई स्थानों पर विभिन्न देवी-देवताओं के स्वांग रचकर गेरिए द्वारा रोचक प्रस्तुति दी जा रही है। गेर महोत्सव में क्षेत्र ग्रामीण आनंद ले रहे हंै।

खरल. ओटवाला गांव में ग्रामवासियों की ओर से शुरू किए सात दिवसीय गेर महोत्सव के चौथे दिन गेरियों ने शानदार नृत्य पेश किया। पारंपरिक वेश धारण किए गेरियों ने राजस्थानी संस्कृति की मिशाल पेश की। गेर महोत्सव में खरल, उम्मेदाबाद व सायला के गेरियों ने नृत्य प्रस्तुत किया। इसी प्रकार आलासन गांव के चामुंडा माता मंदिर में गेरियों ने प्रस्तुति दी। इस मौके कस्बे समेत आस पास गांवों के कई ग्रामीण मौजूद थे।

पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर दी गेर की प्रस्तुति : गेर महोत्सव में दूसरी गेर उपरला गढ़ (माउंट आबू) की गरासिया गेर के कलाकारों ने पारंपरिक वाद्ययंत्र ढोलक, कुड़ी, झालर व बांसूरी की मधुर धुन के साथ नृत्य पेश किया। गरासिया गेर के कलाकारों ने 'लिला मोरिया...', आबू गढ़ में देवी मरको बाजे...' व 'भुलू घांबल लिलो वाली वल्ली...' गीत के साथ मुंह से निकलने वाले आवाज लोगों को अपनी ओर बरबस ही खींच रही थी। महोत्सव के दौरान यह कला काफी आकर्षण का केंद्र रही। नृत्य के अंत में पूरा पांडाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंजायमान रहा। इस गेर मंडल में दौलाराम, मावाराम, लाजाराम, धीराराम, रणछाराम, मंताकाई, ऐमीया, केली देवी, जोमी देवी, मनुरी देवी व काली देवी समेत २२ जनों ने नृत्य पेश किया।



रामीण मुंगड़ा के गेरिए आज देंगे प्रस्तुति

भक्त प्रहलाद समिति के अध्यक्ष बंशीलाल सोनी ने बताया कि गेर महोत्सव के पांचवें दिन रामीण मुंगड़ा के गेरियों द्वारा रोचक प्रस्तुति दी जाएगी। वाघा पहने और सिर पर पगड़ी बांधे गेरिए अपनी कला प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही वरदाजी पोलजी गेर मंडल और भक्त प्रहलाद गेर मंडल द्वारा भी गेर की प्रस्तुति दी जाएगी।

देवी देवताओं को मनाने के लिए होती थी गरासिया गेर

उपरला गढ़ (माउंट आबू) की गरासिया गेर के मंशाराम ने बताया कि गरासिया गेर देवी देवताओं को मनाने के लिए खेली जाती थी। इस गेर में मुख्यत: गरासिया समुदाय के देव भाकर बाबा को समर्पित है। यह गेर होली के तीसरे दिन गांव के मुख्य चौराहे पर जोड़े के रूप खेली जाती है। गेर के बाद बाबा की पूजा अर्चना होती है। साथ ही समुदाय के लोगों द्वारा परिवार की खुशहाली की कामना की जाती है।

जालोर. गे महोत्सव के तहत पारंपरिक वेशभूषा में गेर खेलती महिलाएं।

जालोर. गेर महोत्सव के तहत पारंपरिक वेशभूषा में गेर खेलते कलाकार।

गेर में झलकी ग्रामीण संस्कृति







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