डूब रहा रेगिस्तान का जहाज
बीकानेर। संख्यात्मक रूप में एक दशक में भारत के ऊंट विश्व के ऊंटों के मुकाबले सात पायदान नीचे चले गए हैं। यानि 2001 की विश्व पशु गणना में देश का तीसरा स्थान था, अब दसवें स्थान पर पहुंच गया है। ऊंटों की देखभाल समेत उनके पोषण पर सालाना करोड़ों रूपए खर्च करने के बावजूद इनकी घटती संख्या ने व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। रेगिस्तान के जहाज ऊंट की संख्या में निरंतर गिरावट ने पशु वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। विश्व पशु जनगणना के अनुसार वर्ष 2001 में ऊंटों की संख्या के लिहाज से भारत का सूडान व सोमालिया के बाद तीसरा स्थान आता था।
दस साल बाद हुई विश्व पशु गणना में ऊंटों के लिहाज से भारत का स्थान दसवें नम्बर पर आ टिका है। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैले रेत के समंदर में आवागमन का सुगम साधन माना जाने वाले ऊंट की दो प्रजातियों की संख्या में काफी कमी आ गई है। देश में ऊंटों की कुल चार प्रजातियां हैं, जिनमें से तीन तो अकेले राजस्थान में विचरण करती हैं। एक दशक पूर्व राजस्थान में जहां मेवाड़ी, जैसलमेरी व बीकानेरी नस्ल के ऊंटों की संख्या दस लाख से अधिक थी, वह आंकड़ा अब पांच लाख के नीचे आ चुका है। चौथी प्रजाति गुजरात के कच्छी नस्ल के ऊंटों की है। एक सर्वे के मुताबिक वर्तमान में कच्छी व मेवाड़ी नस्ल के ऊंटों की संख्या कम होती जा रही है।
वर्तमान में ऊंटों की संख्या
प्रजाति संख्या
बीकानेरी 4.20 लाख
जैसलमेरी 80 हजार
मेवाड़ी 30 हजार
कच्छी 30 हजार
क्यों कम हो रही संख्या
पशु वैज्ञानिक डॉ. टीके गहलोत के मुताबिक ऊंटों की संख्या में निरंतर कमी आने का कारण उनका पालन कम होना, चारागाह व आवास स्थलों का घटना है। इसके साथ-साथ कृषि में यांत्रिकीकरण भी ऊंटों की संख्या कम होने का कारण है। इनमें बढ़ रही नित नई बीमारियों का बड़ा कारण भरपूर मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलना है। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, पूर्ण पाच्य पोषक तत्वों और कैल्शियम की कमी के कारण ऊंट कमजोर तो ही जाता है साथ ही पेट सम्बन्धी बीमारियां भी हो जाती हैं। शरीर में फास्फोरस की कमी के कारण ऊंट को पायरा नामक रोग हो जाता है।
चार नस्लों पर अनुसंधान
बीकानेर स्थित राष्ट्रीय ऊष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में राजस्थान व गुजरात की चार नस्लों के ऊंटों पर अनुसंधान चल रहा है। केन्द्र में मेवाड़ी, जैसलमेरी, बीकानेरी के अलावा कच्छी ( गुजरात) नस्ल के तीन सौ से अधिक ऊंट हैं। मानव में होने वाली बीमारियों का इलाज ऊंटों के शरीर में पाए जाने वाले एंटीजन से किए जाने को लेकर भी केन्द्र में अनुसंधान शुरू किए हैं। (कार्यालय संवाददाता)
योजना बन गई हैं...
रेगिस्तान के जहाज" के संरक्षण के लिए अब इनके पालकों को सरकारी स्तर पर संगठित किया जाएगा। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने इसकी योजना बनाई है। जिसके तहत ऊंटों की नस्ल संवर्द्धन के लिए उनके विचरण स्थल पर ही काम होगा। ऊंटों कीनस्ल संवर्धन को लेकर रेंज स्तर पर ब्रीडिंग प्लान तैयार कर लिया गया है, इसे जल्द ही क्रियान्वित किया जाएगा।
डॉ. एन. वी. पाटील, निदेशक, उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र
बीकानेर। संख्यात्मक रूप में एक दशक में भारत के ऊंट विश्व के ऊंटों के मुकाबले सात पायदान नीचे चले गए हैं। यानि 2001 की विश्व पशु गणना में देश का तीसरा स्थान था, अब दसवें स्थान पर पहुंच गया है। ऊंटों की देखभाल समेत उनके पोषण पर सालाना करोड़ों रूपए खर्च करने के बावजूद इनकी घटती संख्या ने व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। रेगिस्तान के जहाज ऊंट की संख्या में निरंतर गिरावट ने पशु वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। विश्व पशु जनगणना के अनुसार वर्ष 2001 में ऊंटों की संख्या के लिहाज से भारत का सूडान व सोमालिया के बाद तीसरा स्थान आता था।
दस साल बाद हुई विश्व पशु गणना में ऊंटों के लिहाज से भारत का स्थान दसवें नम्बर पर आ टिका है। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैले रेत के समंदर में आवागमन का सुगम साधन माना जाने वाले ऊंट की दो प्रजातियों की संख्या में काफी कमी आ गई है। देश में ऊंटों की कुल चार प्रजातियां हैं, जिनमें से तीन तो अकेले राजस्थान में विचरण करती हैं। एक दशक पूर्व राजस्थान में जहां मेवाड़ी, जैसलमेरी व बीकानेरी नस्ल के ऊंटों की संख्या दस लाख से अधिक थी, वह आंकड़ा अब पांच लाख के नीचे आ चुका है। चौथी प्रजाति गुजरात के कच्छी नस्ल के ऊंटों की है। एक सर्वे के मुताबिक वर्तमान में कच्छी व मेवाड़ी नस्ल के ऊंटों की संख्या कम होती जा रही है।
वर्तमान में ऊंटों की संख्या
प्रजाति संख्या
बीकानेरी 4.20 लाख
जैसलमेरी 80 हजार
मेवाड़ी 30 हजार
कच्छी 30 हजार
क्यों कम हो रही संख्या
पशु वैज्ञानिक डॉ. टीके गहलोत के मुताबिक ऊंटों की संख्या में निरंतर कमी आने का कारण उनका पालन कम होना, चारागाह व आवास स्थलों का घटना है। इसके साथ-साथ कृषि में यांत्रिकीकरण भी ऊंटों की संख्या कम होने का कारण है। इनमें बढ़ रही नित नई बीमारियों का बड़ा कारण भरपूर मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलना है। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, पूर्ण पाच्य पोषक तत्वों और कैल्शियम की कमी के कारण ऊंट कमजोर तो ही जाता है साथ ही पेट सम्बन्धी बीमारियां भी हो जाती हैं। शरीर में फास्फोरस की कमी के कारण ऊंट को पायरा नामक रोग हो जाता है।
चार नस्लों पर अनुसंधान
बीकानेर स्थित राष्ट्रीय ऊष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में राजस्थान व गुजरात की चार नस्लों के ऊंटों पर अनुसंधान चल रहा है। केन्द्र में मेवाड़ी, जैसलमेरी, बीकानेरी के अलावा कच्छी ( गुजरात) नस्ल के तीन सौ से अधिक ऊंट हैं। मानव में होने वाली बीमारियों का इलाज ऊंटों के शरीर में पाए जाने वाले एंटीजन से किए जाने को लेकर भी केन्द्र में अनुसंधान शुरू किए हैं। (कार्यालय संवाददाता)
योजना बन गई हैं...
रेगिस्तान के जहाज" के संरक्षण के लिए अब इनके पालकों को सरकारी स्तर पर संगठित किया जाएगा। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने इसकी योजना बनाई है। जिसके तहत ऊंटों की नस्ल संवर्द्धन के लिए उनके विचरण स्थल पर ही काम होगा। ऊंटों कीनस्ल संवर्धन को लेकर रेंज स्तर पर ब्रीडिंग प्लान तैयार कर लिया गया है, इसे जल्द ही क्रियान्वित किया जाएगा।
डॉ. एन. वी. पाटील, निदेशक, उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र
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