शनिवार, 3 मार्च 2012





एक प्रण परिवर्तन का', अभियान हुआ आगाज 
सेकड़ो बच्चों ऩे लिया परिवर्तन का प्रण 
होली तक विभिन्न आधारों से होगी समझाईस 
बाड़मेर 
होली बरसो से हर किसी के लिए जहा खास पर्व है । इस दिन जहा हर कोई सारे गिले शिकवे मिटा कर अपनाईयत के रंग में रंग जाता है लेकिन इस दिन रंगों के साथ होने वाले पानी के अपव्यय पर सोचना आज की सबसे बड़ी जरूरत है इस बात को आधार बना कर सीसीडीयू राजस्थान राज्य जल एवं स्वच्छता मिशन की ओर से शनिवार से एक प्रण परिवर्तन का अभियान शुरु किया । आगामी होली तक कई आधारों को लेकर जारी रहने वाले इस अभियान का आगाज स्थानीय सरस्वती विद्या मंदिर उच्च माध्यमिक विधालय से हुआ । सीसीडीयू के आईईसी कंसलटेंट अशोक सिंह राजपुरोहित ने बताया कि एक प्रण परिवर्तन का से अभियान के तहत आज के दोर में बदलाव का सबसे बड़ा आधार बनने वाले स्कूली विद्यार्थियों को इस बार होली पर पानी बचाने के पर्व के रूप में मनाने का प्रण दिलाने के मानस को धरातल पर उतरा गया । शनिवार को स्थानीय सरस्वती विद्या मंदिर उच्च माध्यमिक विधालय में सेकड़ो बच्चों को इस बात का प्रण दिलाया गया कि होली पर न तो केमिकल रंगो का उपयोग करेंगे और न ही पानी की फिजूलखर्ची करेगे । सीसीडीयू राजस्थान राज्य जल एवं स्वच्छता मिशन दवारा तैयार किये गए प्रण पत्र का वाचन तथा उस पर हर बच्चे को प्रण दिलाया गया। इस मोके पर सरस्वती विद्या मंदिर उच्च माध्यमिक विधालय की प्रधान पुष्प कंवर शेखावत ऩे बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि होली का यह सतरंगी त्योंहार रंगपंचमी तक हमें चाहेअनचाहे न सिर्फ रसायन व केमिकल मिश्रीत घातक रंगों के बल्कि उत्साह के चरमोत्कर्ष के समय धूल, मिट्टी व कीचड का भी रंगों की जगह प्रयोग करने वाले उत्पातियों के सम्पर्क में रखेगा । एक ओर इन केमिकल मिश्रीत रंगों के सम्पर्क में आने से जहाँ त्वचा में जलन व खुजली जैसी समस्याओं के साथ ही स्कीन एलर्जी व मुंहासों की समस्या का जनसामान्य को बहुतायद से सामना करना पडता है वहीं इनके आंखों में चले जाने से नजरों से जुडी समस्याएँ अंधत्व की सीमा तक प्रभावित व्यक्ति को हानि पहुँचा सकती हैं । इनसे बचने के लिये प्राकृतिक रंगों के प्रयोग की यदि बात की जावे तो संभव है कि आप तो इन प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कर रहे हों । इन स्थितियों में इसके घातक प्रभावों से स्वयं को यथासम्भव बचाते हुए ही इस त्यौंहार को मनाना सर्वश्रेष्ठ विकल्प हो सकता है । इस मोके पर विधालय के अर्जुनराम विश्नोई ऩे बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि होली बेशक रंगों का त्योहार है लेकिन इसमें रासायनिक रंगों के इस्तेमाल से न सिर्फ पानी का अपव्यय होता है बल्कि स्किन और आंखों के लिए भी नुकसानदायक है। इसलिए बेहतर है हम अबीरगुलाल के साथ सूखे रंगों से होली खेलें, ताकि त्योहार की उमंग भी बरकरार रहे और पानी बचाने में हम सहयोग भी दे सकें।गर्मी की शुरुआत हो चुकी है। आम दिनों में जहां एक व्यक्ति को प्रतिदिन 70 से 80 लीटर पानी बमुश्किल मिल पाता है वहीं गर्मी में डिमांड 90 से 100 लीटर तक पहुंच जाती है लेकिन मिलता उतना नहीं है। होली पर सबसे ज्यादा पानी बर्बादी की जाती है, खासकर रासायनिक रंगों के प्रयोग से अपव्यय और ब़ जाता है, क्योंकि ये रंग आसानी से छूटते नहीं हैं। इस होली पर यदि हम रासायनिक रंगों का इस्तेमाल न करें और पानी की बचत व त्वचा की रक्षा के लिए अबीरगुलाल के साथ सूखी होली खेलें तो 9 करोड़ 90 लाख लीटर पानी की बचत कर सकते हैं। इस मोके पर विधालय के अध्यापक जालम सिंह , जसवंत सिंह , मीना कोडेचा ऩे भी बच्चों को होली के पर्व को सादगी और अबीर गुलाल से मनाने की बात कही । आगामी दिनों में एक प्रण परिवर्तन का, अभियान के तहत विभिन्न मोहल्लों में जाकर परिवार के सभी सदस्यों के साथ साथ बच्चों को भी सीख दी जाएगी कि वे अपने आस पड़ौस के लोगों को भी होली के पर्व पर गुब्बारों, केमिकल रंगो और त्वचा पर हानिकारक प्रभाव डालने वाले रंगों का उपयोग करने से रोके। इस अभियान का मकसद ना केवल पानी का अपव्यय रोकना है बल्कि होली जैसे पावन पर्व का पारंपरिक स्वरूप लौटाना भी है साथ ही हर बाड़मेर वासी को इस बात को समझाना है कि होली पर रोज की खपत से तीन गुना ज्यादा पानी बर्बाद होता है। सूखी होली खेलें तो काफी पानी की बचत हो सकती है। हर्बल पावडर में नेचुरल डाई होती है। सिंथेटिक डाई के मॉलीक्यूल स्किन व कपड़े में अंदर की पोर के टैक्सचर में चले जाते हैं जो मुश्किल से निकलते हैं जबकि ऑर्गेनिक में ऐसा नहीं होता। पानी की बर्बादी रोकने के लिए गुलाल से होली खेलना ही समय की जरूरत है। । 

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