बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

शादी-शुदा बेटी मां-बाप के घर में मेहमान: कोर्ट

मुंबई. बालिग हो चुकी संतान को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए उनकी सहमति जरूरी है। बिना सहमति के बालिग बेटा या बेटी माता-पिता की मर्जी के बिना उनके घर में नहीं रह सकते हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने दादर पारसी कॉलोनी के निवासी 73 साल के बुजुर्ग और उनकी 35 साल की बेटी के बीच एक फ्लैट को लेकर चल रहे मुकदमे की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया। इस मामले में कोर्ट ने बेटी के फ्लैट पर दावे को खारिज कर दिया है।
कोर्ट के आदेश के अहम बिंदु इस तरह से हैं:
1.बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि यह माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने नाबालिग बच्चों की 18 साल की उम्र तक देखभाल करें।
2.बालिग हो जाने के बाद माता-पिता की मर्जी के बिना उनके घर में रहने के लिए संतान के पास कोई भी कानूनी अधिकार नहीं होता है।
3.बेटी के मामले में शादी के बाद वह अपने माता-पिता के घर में एक मेहमान होती है।
4.चूंकि, शादीशुदा बेटी के पास अपने ससुराल में कानूनी अधिकार मिले होते हैं, इसलिए वह अपने मायके में माता-पिता की मर्जी के बिना उनके घर पर कानूनी तौर पर कोई दावा नहीं कर सकती है।

क्या कहता है हिंदू लॉ
-हिंदू लॉ, 1956 की धारा 20 के मुताबिक अगर गैरशादीशुदा बालिग बेटी अपनी कमाई या किसी अन्य प्रॉपर्टी से खर्च नहीं चला सकती है तो फिर वह अपने पिता से गुजारे की मांग कर सकती है।

-गुजारे के तहत रहने के लिए घर, भोजन, कपड़े जैसी चीजें मुहैया करानी होती हैं। साथ ही बेटी की शादी की भी पिता पर जिम्मेदारी होती है।

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